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रवि अवस्थी,भोपाल।
देश में यह शायद पहला विश्वविद्यालय होगा जो अपने ही विद्यार्थियों को चेतावनी दे रहा है-“डिग्री लो,लेकिन इस्तेमाल मत करना,वरना जेल जाना पड़ेगा।”
रोजगारमूलक शिक्षा की दुहाई देने वाली सरकार के बीच भोपाल स्थित अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय ऐसे पाठ्यक्रम चला रहा है, जिनसे न तो नौकरी मिलेगी, न मान्यता। उलटे, डिग्री या डिप्लोमा लेकर इलाज करने की कोशिश की तो यह दंडनीय अपराध की श्रेणी में गिना जाएगा।
इलाज किया तो अपराधी
विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. राजीव वर्मा ने 14 अगस्त को अधिसूचना जारी कर साफ़ कर दिया कि प्राथमिक चिकित्सा उपचार, आधारभूत स्वास्थ्य संरक्षण और इलेक्ट्रो होम्योपैथी जैसे कोर्स सिर्फ जन-जागरूकता और ज्ञानवर्धन के लिए हैं।
अगर कोई अभ्यर्थी इन डिग्रियों के आधार पर इलाज करता है, तो यह अपराध माना जाएगा और कार्रवाई होगी।
झोलाछाप तैयार, जिम्मेदारी नहीं
विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर डाली गई अधिसूचना में यह भी लिखा गया है कि यदि कोई छात्र नियम तोड़ता है और किसी अप्रिय स्थिति में फंसता है तो विवि जिम्मेदार नहीं होगा। यानी विवि को साफ़ पता है कि उसकी शिक्षा झोलाछाप डॉक्टर तैयार कर रही है,लेकिन उसने पहले ही पल्ला झाड़ लिया।
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दो लाख से ज्यादा विद्यार्थियों का भविष्य अधर में
विश्वविद्यालय में उक्त कोर्सेज बीते पांच सालों से संचालित कर रहा है। इनकी अवधि तीन माह से एक वर्ष है। बताया जाता है कि अब तक करीब दो लाख विद्यार्थी विश्वविद्यालय से संबंधित पाठ्यक्रमों में उपाधियां हासिल कर चुके हैं। वर्तमान में भी करीब तीन सौ विद्यार्थी यह शिक्षा ले रहे हैं। बड़ा सवाल यही कि यदि यह शिक्षा किसी काम की ही नहीं तो इन बच्चों का भविष्य क्या है?
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छात्रों की जेब खाली,विवि की तिजोरी भरी
विश्वविद्यालय में सिर्फ चिकित्सा से जुड़े कोर्सेज पर गौर करें तो विश्वविद्यालय प्रबंधन इनके लिए 28 से 30 हजार रुपए तक शिक्षण व अन्य शुल्क वसूल रहा है।
शुरुआत ही पांच सौ रुपए कीमत का आवेदन पत्र खरीदने से होती है। इसमें प्राथमिक चिकित्सा उपचार पत्रोपाधि के लिए मय परीक्षा शुल्क 28,800,प्राकृतिक फार्मा के लिए 23 हजार व योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के 13 हजार रुपए शामिल हैं। इनके अलावा भी विश्वविद्यालय के कई अन्य शुल्क हैं। जो छात्रों को अदा करने होते हैं।
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फटकार के बाद सतर्क हुआ विश्वविद्यालय
गैर रोजगारमूलक पाठ्यक्रमों को लेकर विश्वविद्यालय प्रबंधन एक राय नहीं है। विश्वविद्यालय प्रशासन में रहे शैलेंद कुमार जैन ने इसका विरोध किया तो उन्हें चिकित्सा पाठ्यक्रमों की जिम्मेदारी से हटा दिया गया।बताया जाता है कि हाल ही में आयुष विभाग की ओर से भी विश्वविद्यालय पाठ्यक्रमों को लेकर आपत्ति की गई। इसके बाद ही विश्वविद्यालय प्रबंधन सतर्क हुआ और पाठ्यक्रमों को लेकर संशोधित अधिसूचना जारी की गई।
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अधिसूचना से कमियां दूर करने का प्रयास : कुलसचिव
विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो.राजीव वर्मा ने कहा कि मैं मूलत: उच्च शिक्षा से हूं।विवि में पदस्थापना के बाद आयुष पाठ्यक्रमों को लेकर जो कमियां नजर आई। इस अधिसूचना के जरिए इन्हें दूर करने का प्रयास किया गया है। विश्वविद्यालय पाठ्यक्रमों की निरंतरता को लेकर विचार कर रहा है। जल्दी ही इस बारे में फैसला लिया जाएगा।