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भोपाल। शिक्षा के मंदिरों से जहाँ चरित्र और नैतिकता की नींव रखी जाती है। वहीं, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित भोज मुक्त विश्वविद्यालय इन दिनों अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते कटघरे में खड़ा है। जिन राजा भोज के नाम पर यह विश्वविद्यालय स्थापित हुआ,उन्हीं की गरिमा को यह संस्थान अपने नियम विरुद्ध कारनामों से लज्जित करता रहा है।
सरकार से डरे नहीं, बल्कि और की नियुक्तियां
विश्वविद्यालय प्रशासन ने बीते वर्षों में 36 पदों पर बैकडोर एंट्री के जरिए मनचाही नियुक्तियां कर लीं। साल 2013 में न केवल इन्हें नियमित किया गया, बल्कि उनकी नियुक्ति को 2003 से प्रभावशील दर्शाया गया। जब मामला सार्वजनिक हुआ, तो सरकार ने इन सभी भर्तियों को रद्द कर दिया, मगर विश्वविद्यालय ने आदेशों को ठुकराते हुए कर्मचारियों की सेवाएं स्थगित कर दीं। इसके बाद 28 कर्मचारियों ने हाईकोर्ट से स्थगन आदेश ले लिया और आज भी सभी कर्मचारी नियमित वेतन, भत्ते और सुविधाएं ले रहे हैं।
यही नहीं,साल 2014 में एक बार फिर तीन दर्जन से अधिक बैकडोर नियुक्तियां की गईं। इस तरह 73 कर्मचारी बिना नियुक्ति पत्र हासिल किए बतौर नियमित कर्मचारी बन गए।
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जांच का वादा, कार्रवाई अब तक नहीं
राज्य विधानसभा के पिछले बजट सत्र में कांग्रेस विधायक नारायण सिंह पट्टा ने मामला उठाया। उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने जांच समिति गठित करने की बात कही, मगर दो महीने बीतने के बाद भी न तो समिति बनी, न ही जांच शुरू हुई। जब इस संबंध में उच्च शिक्षा विभाग के ओएसडी डॉ. अनिल पाठक से जानकारी चाही गई, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
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फैकल्टी भर्तियों पर भी हाईकोर्ट का सख्त रुख
केवल कर्मचारियों की नियुक्तियों में ही नहीं, बल्कि शिक्षकों की भर्तियों में भी गड़बड़ियां उजागर हुई हैं। जबलपुर हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय द्वारा 27 फैकल्टी पदों पर की गई नियुक्तियों को अवैध ठहराते हुए उन्हें निरस्त किया। साथ ही नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के आदेश दिए हैं। यह आदेश विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है।
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12 साल से स्टे,अब कराएंगे वेकैट: कुल सचिव
विश्वविद्यालय के कुल सचिव सुशील मंडेरिया ने बताया कि कर्मचारियों की नियुक्तियों को लेकर साल 2013 में हाईकोर्ट के स्थागनादेश को जल्द ही वेकैट कराने के प्रयास होंगे। जरूरत पड़ी तो नए अधिवक्ता की भी सेवाएं ली जाएंगी। फैकल्टी की भर्ती मामले में उन्होंने कहा कि चयनित शिक्षकों को नियुक्ति पत्र जारी नहीं किए गए थे। एक प्रकार से न्यायालय का फैसला विवि के पक्ष में ही रहा। बड़ा सवाल यह कि नियुक्ति पत्र तो पूर्व में पहली बार के भर्ती कर्मचारियों को भी नहीं दिए गए थे।
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सदन को गुमराह करने का आरोप
विधायक पट्टा ने सदन में भ्रामक जानकारी देने का आरोप उच्च शिक्षा विभाग पर लगाते हुए विभागीय कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने विभाग को इसी आशय का एक कड़ा पत्र भी लिखा। पट्टा ने कहा-सरकार विश्वविद्यालय प्रशासन पर न पहले लगाम कस पाई, न ही अब कोई स्पष्ट संकेत दिखते हैं।
भोज मुक्त विश्वविद्यालय का यह प्रकरण उच्च शिक्षा में व्याप्त नियंत्रणहीनता और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। जब न्यायालय के स्पष्ट आदेश और सदन की बहस के बावजूद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है-क्या शिक्षा का यह मंदिर व्यवस्था के हाथों गिरवी रख दिया गया है?
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