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Photograph: (THESOOTR)
रवि अवस्थी,भोपाल।
मध्य प्रदेश के पांच विश्वविद्यालयों में एक भी असिस्टेंट प्रोफेसर नहीं,बाकी में इनके 70 फीसद पद खाली,93 विषयों के मास्टर ही नहीं हैं। हाईकोर्ट हो या विधानसभा विभाग से जुड़े अधिकतर मामलों में सरकार को बैकफुट पर आना पड़ रहा है।
जूनियर को बनाया,प्राचार्य,कोर्ट ने लगाई फटकार
मप्र हाईकोर्ट ने दो दिन पहले ही उच्च शिक्षा विभाग के उस फैसले को अमान्य कर दिया गया,जिसके तहत प्रदेश के 72 प्रधानमंत्री एक्सीलेंस कॉलेजों में जूनियर शिक्षकों को प्राचार्य बना दिया गया था। इस फैसले के खिलाफ विभाग हाईकोर्ट की डबल बैंच में अपील की तैयारी कर रहा है।
पक्ष रखने में कमी रही हो:ओएसडी
विभाग के ओएसडी राकेश श्रीवास्तव ने कहा कि प्रभारी प्राचार्यों की पदस्थापना को लेकर साल 2024 में बनी नीति को कोर्ट में मान्य हुई। इसी के तहत प्रभारी प्राचार्य पदस्थ किए गए। न्यायालय के ताजा फैसले को लेकर उन्होंने कहा,हो सकता है विभाग का पक्ष मजबूती से रख पाने में कोई कमी रही हो।
बहरहाल,इससे पहले भी विभाग को गुना के याचिकाकर्ता प्रो.बृजमोहन तिवारी के प्रकरण में हार का सामना करना पड़ा। याचिका क्रमांक 1187/25 को लेकर मंगलवार को आया हाईकोर्ट का फैसला भी विभाग की नीतियों के खिलाफ है। यानी विभाग को उच्च न्यायालय में दायर प्रकरणों में धड़ाधड़ हार का सामना करना पड़ रहा है।
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विधानसभा में भी बैकफुट पर सरकार
राज्य विधानसभा में भी उच्च शिक्षा विभाग को लेकर काफी तीखे सवाल सामने आ रहे हैं। इनमें अधिकांश में सरकार का जवाब या तो गोलमोल होते है या गलत जानकारी देने के आरोप लगते हैं। कुछ मामलों में तो विभागीय मंत्री को टाइपिंग की मिस्टेक बताकर पल्ला झाड़ना पड़ा। बीते साल 16 दिसंबर को तो हद हो गई।
एक सवाल के जवाब में विभागीय मंत्री इंदर सिंह परमार को कांग्रेस विधायक जयवर्धन के सवाल के जवाब में कहना पड़ा कि उनके पूर्व के प्रश्न में राघौगढ़ की जगह किसी और कॉलेज की जानकारी दे दी गई थी।
इस पर कांग्रेस विधायक ने मंत्री से नियमानुसार खेद जताने को कहा।बहरहाल,बात आई गई हो गई। पिछले मानसून सत्र में ही कुछ सवालों की जानकारी में लिपिकीय त्रुटि स्वीकार की।
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विभाग मुख्यालय में ओएसडी की भरमार
उच्च शिक्षा विभाग में मैदानीस्तर पर कुर्सियां खाली हैं। दूसरी ओर पढ़ाने से कतराने वाले कई शिक्षक जोड़-तोड़कर मुख्यालय में पदस्थ हैं। इनके अलावा प्रतिनियुक्ति पर सेवाएं देने वालों की कमी नहीं है। मुख्यालय में ओएसडी के सिर्फ चार पद स्वीकृत हैं,लेकिन इनके मुकाबले एक दर्जन अधिकारी इस पदनाम के साथ काम कर रहे हैं।
अर्थात, जो प्रतिनियुक्ति पर आया या अटैच हुआ, वह विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी बन गया। दूसरी ओर मुख्यालय में ही अपर संचालक वित्त का एकमात्र पद,संयुक्त संचालक वित्त के तीनों पद,उप संचालक वित्त को एक मात्र पद,अतिरिक्त संचालक के सातों पद,सहायक संचालक के 12 में से 11 पद का रिक्त है। विभाग में जमे ओएसडी इन पदों के लिए भी सेवाएं दे रहे हैं।
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इन विश्वविद्यालयों में नहीं हैं असिस्टेंट प्रोफेसर
राज्य विधानसभा के पिछले मानसून सत्र में विभाग को लेकर चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। बैहर से कांग्रेस विधायक संजय उइके के सवाल के जवाब में मंत्री इंदर सिंह परमार ने बताया कि प्रदेश के पांच सरकारी विश्वविद्यालयों में एक भी सहायक प्राध्यापक नहीं है।
ये विश्वविद्यालय हैं-राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय छिंदवाड़ा, महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर,रानी अवंतीबाई लोधी विश्वविद्यालय सागर, क्रांतिवीर तात्या टोपे विश्वविद्यालय गुना व क्रांति सूर्य टंट्या भील विश्वविद्यालय खरगोन शामिल नहीं है।
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93 कोर्स पढ़ाने वाले शिक्षक ही नहीं
मंत्री परमार ने विधानसभा में बताया कि मध्य प्रदेश के 17 सरकार विश्वविद्यालयों में भी शिक्षकों की कमी है। यहां स्वीकृत 1076 पदों में से सिर्फ 276 पदों पर असिस्टेंट प्रोफेसर ही सेवाएं दे रहे हैं।
इसी जवाब में कहा गया कि प्रदेश के सरकारी विश्वविद्यालयों में 93 पाठ्यक्रम ऐसे हैं , जिन्हें पढ़ाने वाले सहायक प्राध्यापक फिलहाल नहीं हैं। परमार ने कहा कि प्रदेश के विभिन्न कॉलेजों में वैकल्पिक व्यवस्था के बतौर अतिथि विद्वानों की नियुक्तियां की गई हैं।