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रवि अवस्थी, भोपाल।
क्या सरकारी भर्ती में फर्जी प्रमाण पत्र मान्य हो सकते हैं? सवाल चौंकाने वाला है लेकिन मध्यप्रदेश विधानसभा में आयुष मंत्री इंदर सिंह परमार का जवाब इसे सही ठहराता है। मंत्री जी ने लिखित में स्वीकार किया कि आयुष विभाग की प्रभारी उप संचालक डॉ. निधि गुप्ता का अनुभव प्रमाण पत्र भर्ती नियमों के अनुरूप है,जबकि विभागीय जांच रिपोर्ट ने साफ कहा था-प्रमाण पत्र फर्जी है।
विधानसभा में मंत्री का चौंकाने वाला जवाब
मध्यप्रदेश में फर्जी जाति और अनुभव प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी पाने के कई मामले पहले भी उजागर हो चुके हैं। लेकिन इस बार मामला विधानसभा तक पहुंचा। गत 4 अगस्त को विधायक केशव देसाई ने सवाल उठाया तो आयुष मंत्री इंदर सिंह परमार ने अपने लिखित जवाब में यह स्वीकार कर लिया कि डॉ. निधि गुप्ता का अनुभव प्रमाण पत्र भर्ती नियमों के अनुरूप है।
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जिस संस्था का प्रमाण-पत्र,उसी ने हाथ खड़े किए
दरअसल, आयुष विभाग ने 2015 में चिकित्सा अधिकारियों की भर्ती के लिए एमपी पीएससी के जरिए परीक्षा कराई थी। नियमों के मुताबिक, चयनित उम्मीदवार के पास पांच साल का कार्य-अनुभव होना जरूरी था।
चयनित उम्मीदवारों के दस्तावेजों की जांच में पाया गया कि मौजूदा प्रभारी उप संचालक डॉ. निधि गुप्ता ने सिर्फ 4 साल 9 दिन का अनुभव प्रमाण पत्र दिया। वह भी मंदसौर की जिस संस्था का था, उसने साफ इनकार कर दिया कि ऐसा कोई प्रमाण पत्र उन्होंने कभी जारी ही नहीं किया।
विभागीय रिपोर्ट के मुताबिक,संस्था ने यह भी लिखा कि डॉ निधि ने उनके यहां कभी काम ही नहीं किया। संस्था के इस खुलासे के बाद दस्तावेज सत्यापन समिति ने डॉ गुप्ता के अनुभव प्रमाण पत्र को सेवा भर्ती नियम व विज्ञापन की शर्तों के विपरीत करार देते हुए अमान्य किया।
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सिर्फ गुप्ता ही नहीं…चार और अफसर भी घेरे में
मूल जांच रिपोर्ट विभाग के तत्कालीन प्रभारी संयुक्त संचालक डॉ.सी पी शर्मा,उप संचालक डॉ पी.सी शर्मा व सहायक संचालक डॉ वंदना बौराना के हस्ताक्षर से जारी हुई।
रिपोर्ट ने यह भी उजागर किया कि सिर्फ गुप्ता ही नहीं अन्य चयनित उम्मीदवारों में वर्तमान में जिला आयुष अधिकारी उज्जैन डॉ मनीषा पाठक,जिला आयुष अधिकारी जबलपुर डॉ.सुरत्ना चौहान,जिला आयुष अधिकारी सतना डॉ नरेंद्र कुमार पटेल एवं जिला आयुष अधिकारी शाजापुर डॉ गिरिराज बाथम भी भर्ती नियमों की शर्तें पूरी नहीं करते। कुछ का अनुभव संविदा का था,तो कुछ का अधूरा।
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फर्जी पर लगाई वैधता की मुहर !
सत्यापन समिति की रिपोर्ट सामने आते ही चयनित चिकित्सा अधिकारियों को संरक्षित करने का खेल शुरू हुआ। इसके लिए मंत्रालय स्तर पर दूसरी समिति बनाकर रिपोर्ट पलट दी।
नई समिति ने अपने जवाब में कहा कि "प्रमाण पत्र पेश करना भर्ती नियमों के अनुरूप है"- यहां यह सवाल दबा दिया गया कि क्या फर्जी प्रमाण पत्र भी भर्ती नियमों में स्वीकार योग्य माने जाएंगे?
जबकि पहली जांच रिपोर्ट में विभागीय सेवा भर्ती नियमों का भी स्पष्ट हवाला दिया गया। बताया जाता है कि दूसरी रिपोर्ट को आधार बनाकर विधायक केश्व देसाई के प्रश्न का उत्तर तैयार हुआ।
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द्वितीय श्रेणी से सीधे प्रथम श्रेणी का पद
आयुष में चिकित्सा अधिकारी का पद द्वित्तीय श्रेणी का है,लेकिन संचालनालय स्तर पर अधिकारियों की कमी का हवाला देकर डॉ निधि गुप्ता को प्रभारी उप संचालक बनाया गया। यह पद प्रथम श्रेणी अधिकारी का है।