विजय शाह विवाद: पहले हाईकोर्ट ने फटकारा, अब सुप्रीम कोर्ट ने जताया अविश्वास

सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री विजय शाह के माफीनामे को खारिज करते हुए मामले की जांच के लिए SIT बनाने के आदेश दिए हैं। इस SIT में एमपी के मूल निवासी अफसर को शामिल न करने की बात भी कोर्ट ने कही है।

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Rohit Sahu
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मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने विजय शाह के माफीनामे को खारिज करते हुए मामले की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) बनाने के आदेश दिए हैं। हालांकि मंत्री जी को गिरफ्तारी से राहत दी गई है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी भी गौर करने वाली रही। पहले हाईकोर्ट की फटकार और सुप्रीम कोर्ट के अविश्वास से मध्य प्रदेश के अफसरों की जांच पर सवालिया निशान लगता है। 

क्या है मामला?

मंत्री विजय शाह ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मीडिया के सामने पाकिस्तान पर भारतीय सेना की कार्रवाई की जानकारी देने वाली सैन्य अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी पर आपत्तिजनक बयान दिया था। इस बयान के बाद विजय शाह के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठने लगी थी। मामले में हाईकोर्ट के स्वत: संज्ञान लेने के बाद FIR दर्ज हई।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने विजय शाह के माफीनामे को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में झूठे आंसू दिखाकर मंत्री को माफी नहीं दी जाएगी। कोर्ट ने SIT बनाने के आदेश दिए हैं, जिसमें तीन IPS अधिकारी होंगे, जिनमें एक IG और बाकी दो SP लेवल के अफसर होंगे। इनमें एक अधिकारी महिला होना अनिवार्य होगा। सभी अफसर मध्य प्रदेश कैडर के हो सकते हैं, लेकिन राज्य के मूल निवासी नहीं होने चाहिए।

एमपी पुलिस पर भरोसा कम होने के ये हो सकते हैं कारण

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच के लिए बनी SIT इस मामले पर बारीकी से जांच करेगी। इस एसआईटी में मध्य प्रदेश कैडर का अधिकारी हो सकता है लेकिन वह एमपी का मूल निवासी न हो। कोर्ट की यह टिप्पणी कई मामलों में महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस पूरे मामले के दौरान एमपी पुलिस ने कई लूप छोड़े। 

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कमजोर FIR

हाईकोर्ट के आदेश पर जब पुलिस ने FIR दर्ज की तो इसके अगले ही दिन सुनवाई में एमपी हाईकोर्ट ने कहा कि FIR में धाराओं के अनुसार "एक्शन ऑफ सस्पेक्ट" की क्लिएरिटी नहीं है। एफआईआर को ऐसा बनाया गया ताकि आसानी से रद्द की जा सके।  कोर्ट ने FIR की भाषा पर भी नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि मंत्री के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 के तहत अपराध बनता है, जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को अपराध घोषित करता है।

FIR में श्री शब्द

एमपी पुलिस ने मंत्री विजय शाह के सम्मान का भी पूरा ख्याल रखा है। पुलिस ने अपनी एफआईआर में दो-दो बार 'श्री' लिखा है। ऐसे में कांग्रेस पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल उठा रही है। साथ ही कहा है कि 24 घंटे से अधिक वक्त एफआईआर के बीत गए लेकिन उनकी गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई है।

जांच में देरी और जानकारी देने से किया इनकार

पुलिस ने अब तक मंत्री विजय शाह के बयान के मामले में जांच को गति नहीं दी है। बयान का वीडियो 6 दिन बाद जब्त किया। इसके बावजूद उसे फॉरेंसिक जांच के लिए नहीं भेजा गया है। इसके अलावा मंच पर मौजूद जिम्मेदारों से भी पूछताछ शुरू नहीं हुई है। पुलिस ने सिर्फ छापरिया के सरपंच और सचिव को बयान के लिए तलब किया है। पुलिस का कहना है कि मामला कोर्ट से जुड़ा है, इसलिए जांच की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी।

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अब क्या होगा?

अब SIT इस मामले की जांच करेगी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। कोर्ट की निगरानी में इस मामले की जांच होगी और दोषी को सजा दिलाने की कोशिश की जाएगी।

5 प्रमुख बिंदुओं में खबर समझिए

1. सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री विजय शाह के माफीनामे को खारिज कर दिया है।
2. कोर्ट ने मामले की जांच के लिए SIT बनाने के आदेश दिए हैं।
3. SIT में तीन IPS अधिकारी होंगे, जिनमें एक IG और बाकी दो SP लेवल के अफसर होंगे।
4. सभी अफसर मध्य प्रदेश कैडर के हो सकते हैं, लेकिन राज्य के मूल निवासी नहीं होने चाहिए।
5. एमपी के अफसरों पर भरोसा कम होने के कई कारण।

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