MP High Court : मप्र हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के संबंध के मामले में एक अहम टिप्पणी करते हुए महिला की अपील खारिज कर दी। इसी के साथ अदालत ने फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखा है। मामला ऐसा है कि एक युवक-युवती की शादी 2013 में हुई। नवविवाहित जोड़ा सिर्फ तीन दिन साथ रहा। फिर महिला मायके चली गई। बाद में उसने पति पर दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज करा दिया। इसके बाद पति ने तलाक के लिए फैमिली कोर्ट सतना में याचिका लगाई। फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट का रुख किया। अब हाल ही में हाईकोर्ट ने महिला की याचिका खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। साथ ही एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अमरनाथ (केशरवानी) की खंडपीठ ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि पत्नी द्वारा पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना पति के साथ क्रूरता के समान है।
पत्नी ने पति के ऊपर ये आरोप लगाया
पत्नी ने आरोप लगाया कि पति के साथ उसके वैवाहिक संबंध विवाह से लेकर 28 मई, 2013 तक बने रहे। उसके बाद पति और उसके परिवार के सदस्यों ने दहेज के रूप में 1,50,000/- रुपए और कार की मांग करके उसे परेशान करना शुरू कर दिया। उसने दावा किया कि चूंकि उसकी परीक्षा जून 2013 तक होना थी, इसलिए वह पति और उसके पिता के साथ अपने ससुराल नहीं जा सकी। इस कारण उसके ससुराल वाले नाराज हो गए और फिर से दहेज की मांग करने लगे। उसके बाद पति उसे कभी भी उसके ससुराल वापस ले जाने नहीं आया। यह भी कहा गया कि वह अपने पति के साथ अपने ससुराल में रहने के लिए तैयार है, लेकिन दहेज की मांग के कारण वह वैवाहिक संबंधों से अलग हो गई। इन आधारों पर पत्नी ने पति द्वारा दायर तलाक याचिका खारिज करने की प्रार्थना की।
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29 मई, 2013 को पत्नी के भाई उसे अपने साथ ले गए
इधर इस मामले में पति ने तलाक की याचिका में बताया कि हमारी शादी 26 मई, 2013 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी, लेकिन पहली रात को ही पत्नी ने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया और कहा कि वह उसे पसंद नहीं करती और उसने अपने माता-पिता के दबाव में शादी की है। इसके बाद 29 मई, 2013 को पत्नी के भाई उसके घर आए और पत्नी को अंतिम परीक्षा दिलवाने अपने साथ ले गए, जो 30 मई, 2013 को होना थी। अगले दिन जब परिवार के सदस्य पत्नी को लिवाने गए तो उसके माता-पिता ने पत्नी को उसके साथ भेजने से इनकार कर दिया और तब से पत्नी अपने ससुराल वापस नहीं लौटी। फैमिली कोर्ट सतना के प्रधान न्यायाधीश ने पक्षकारों की दलीलों पर मुद्दे तय कर पक्षकारों द्वारा दिए गए बयान दर्ज किए। पक्षकारों के दिए मौखिक और साक्ष्यों को देखने के बाद न्यायाधीश ने पति के आवेदन को स्वीकार कर लिया और धारा 13(1)(आई-ए), (आई-बी) एचएम एक्ट में तलाक का आदेश पारित कर दिया।
बिना किसी ठोस कारण ससुराल से गई ये माना
आदेश को चुनौती देते हुए पत्नी ने हाईकोर्ट में दलील दी कि दहेज की मांग के दबाव तथा प्रतिवादी-पति और उसके परिवार के सदस्यों ने उसके साथ किए दुर्व्यवहार के कारण वह अपने माता-पिता के साथ रहने लगी। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि पत्नी ने स्वेच्छा से पति का साथ नहीं छोड़ा, जबकि पति ने लगातार दलील दी कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ झूठा दहेज का मामला दर्ज कराया है। विवाह के बाद उसकी पत्नी केवल तीन दिन ही ससुराल में रही। इसके बाद वह बिना किसी ठोस कारण के ससुराल से चली गई। तब से वे अलग-अलग रह रहे हैं, इसलिए फैमिली कोर्ट का आदेश उचित है। एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अमरनाथ (केशरवानी) की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-1 (आई-ए) और (आई-बी) में तलाक के लिए पति के आवेदन स्वीकार करने वाला फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां...
- मामले के साक्ष्यों और पक्षों द्वारा प्रस्तुत तर्कों का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने पाया कि पत्नी ने स्वीकार किया कि विवाह होने के बाद वह केवल तीन दिन ही अपने ससुराल में रही और जब पति के परिवार के सदस्यों ने उसे वापस आने के लिए कहा तो वह वापस नहीं आई।
- न्यायालय ने यह भी पाया कि उसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सीधी न्यायालय के समक्ष इस तथ्य को स्वीकार किया कि अपीलकर्ता और प्रतिवादियों (पति-पत्नी) के बीच कोई शारीरिक संबंध स्थापित नहीं हुआ था।
- न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी-पति का यह कथन सिद्ध होता है कि पहली रात को पत्नी ने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया था।
- इस संबंध में न्यायालय ने कहा कि पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से पत्नी का इनकार प्रतिवादी के प्रति क्रूरता के समान है।
- इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने पाया कि यह स्वीकार किया गया कि पत्नी केवल तीन दिन ही अपने ससुराल में रही। इस अवधि के दौरान, पक्षों के बीच कोई सहवास नहीं था और तब से अपीलकर्ता/पत्नी और प्रतिवादी/पति 11 वर्षों से अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं।
- इसके मद्देनजर, यह देखते हुए कि पक्ष अलग हो गए और अलगाव काफी समय तक जारी रहा। पति ने तलाक की याचिका दायर की, न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के निर्णय और आदेश में कोई अवैधता नहीं पाई। इसलिए पत्नी की अपील खारिज कर दी गई।