द सूत्र अभियान : वन टाइम फीस के समर्थन में सड़क पर उतरे युवा, 'द सूत्र' के अभियान को सराहा

मध्यप्रदेश में रोजगार को लेकर विकट स्थिति है। यहां नौकरी मिलना तो दूर, उससे पहले ही युवाओं से बेजा वसूली की जा रही है। एक तरह से युवाओं से परीक्षा फीस के नाम पर बेरोजगा टैक्स वसूला जा रहा है।

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Sourabh - 2024-10-04T142236.140
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सरकार के हर वादे के साथ उम्मीदें जुड़ती हैं, पर जब परिणाम सिर्फ आंकड़ों और जुमलों तक सिमट जाते हैं तो युवा खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं। रोजगार के नए अवसरों की उम्मीदें सिर्फ भाषणों में उड़ान भरती हैं, लेकिन जमीन पर हकीकत कुछ और ही होती है।

मध्यप्रदेश में तो रोजगार को लेकर और भी विकट स्थिति है। यहां नौकरी मिलना तो दूर, उससे पहले ही युवाओं से बेजा वसूली की जा रही है। एक तरह से युवाओं से परीक्षा फीस के नाम पर बेरोजगा टैक्स वसूला जा रहा है। हर परीक्षा के नाम पर ईएसबी युवाओं से भारी भरकम फीस वसूल रहा है।

'द सूत्र' अपनी जनसरोकारों से जुड़ी पत्रकारिता की कड़ी में युवाओं की सबसे बड़ी मांग 'वन टाइम फीस' का अभियान चला रहा है। हमारा अभियान अब अन आंदोलन का रूप ले रहा है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों से युवा 'द सूत्र' के अभियान से जुड़कर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। जबलपुर में युवाओं ने 'We Support The Sootr' के नारे लगाए। युवाओं ने कहा, सरकार को इस दिशा में कदम बढ़ाने ही होंगे। 

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'द सूत्र' की मुहिम को अभ्यर्थियों का भारी समर्थन

'द सूत्र' के अभियान 'वन टाइम फीस' को पूरे प्रदेश से छात्र-छात्राओं और अभ्यर्थियों का भारी समर्थन मिल रहा है। इसी कड़ी में जबलपुर में हमारी टीम ने कुछ अभ्यर्थियों से बात की, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। इन युवाओं ने इस मुहिम के लिए द सूत्र को धन्यवाद देते हुए सरकार से वन टाइम फीस की मांग की। प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेने वाली छात्राओं ने बताया कि इन परीक्षाओं की फीस तो एक बड़ा मुद्दा है ही। भोपाल और इंदौर जैसे दूर शहरों में पढ़ने वाले सेंटर पर आने-जाने और रुकने का खर्चा भी उन्हें भारी पड़ता है। 

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प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए युवाओं को हर बार फीस चुकानी होती है। ईएसबी और लोकसेवा आयोग की इन परीक्षाओं के लिए कभी 500 रुपए तो कभी 1 हजार रुपए की वसूली की जाती है। नौकरी की तलाश कर रहे बेरोजगारों के सामने परीक्षा की तैयारी से पहले फीस जुटाना बड़ी चुनौती होता है। क्योंकि ज्यादातर बेरोजगार गरीब और मजदूर परिवारों से आते हैं।

फीस वसूली से युवाओं में नाराजगी

प्रदेश के युवा बार-बार होने वाली फीस वसूली से परेशान हैं। सरकार रोजगार के अवसर मुहैया कराने में पिछड़ती जा रही है, लेकिन बेरोजगारों से फीस वसूली जारी है। मध्यप्रदेश में सरकार की फीस वसूली को लेकर युवाओं में नाराजगी है। ऐसे में द सूत्र ऐसे लाखों युवाओं की आवाज बना है। द सूत्र ने युवाओं की आवाज को सरकार तक पहुंचाने वन स्टेट, वन एग्जाम फीस कैंपेन शुरू किया है। द सूत्र के इस अभियान से प्रदेश के युवा ही नहीं समाज के हर वर्ग के लोग जुड़ रहे हैं। आमजन भी इस कैंपेन के समर्थन में आगे आकर सरकार के सामने अपने मजबूत तथ्य रख रहे हैं। 

अभियान से सबसे ज्यादा जुड़ रहे कॉलेज के छात्र

कॉलेज स्टूडेंट की सबसे ज्यादा प्रतिक्रियाएं 'द सूत्र' के पास पहुंच रही हैं। ये छात्र इसलिए भी जागरुक हैं क्योंकि आने वाले एक-दो साल में वे भी रोजगार की तलाश में निकलेंगे। तब उन्हें भी आज के बेरोजगारों की तरह मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। छात्रों का कहना है केंद्र सरकार वन नेशन, वन इलेक्शन की बात कर रही है और प्रदेश सरकार उसके समर्थन में है। ऐसे में सीएम डॉ.मोहन यादव को यह भी सोचना चाहिए जितना भला वन नेशन वन इलेक्शन से देश का होगा, उससे ज्यादा राहत प्रदेश में वन स्टेट वन एग्जाम फीस लागू कर युवाओं को दी जा सकती है। 

युवाओं में भी बार-बार फीस की वसूली को लेकर नाराजगी है लेकिन वे चाहते हैं सरकार जल्द से जल्द वन स्टेट वन एग्जाम फीस लागू कर दे। युवा चाहते हैं मध्यप्रदेश के सीएम डॉ.मोहन यादव प्रदेश में स्थापना दिवस यानी 1 नवम्बर को युवाओं को ये तोहफा देकर नजीर पेश कर सकते हैं। ऐसा करके सरकार युवाओं को अपने पाले में ला सकती है। युवाओं का यह भी कहना है रोजगार के अवसर मुहैया कराना सरकार का दायित्व है तो फिर फीस वसूली क्यों। 

बेरोजगारी टैक्स हो गई परीक्षा फीस

सरकारें सुशासन और रामराज की बातें करती हैं, पर क्या वाकई रामराज और सुशासन की अवधारणा भी कोई समझता है। सरकार जिस तरह युवाओं से परीक्षा फीस के नाम पर रुपए ले रही है, वह तो एक तरह से बेरोजगारी टैक्स ही हो गया। इसे देखकर रामराज से जुड़ी तुलसीदास जी की एक चौपाई याद आती है। जब भरत भगवान श्रीराम के पास पहुंचे तो उन्होंने पूछा कि राज्य में कर यानी टैक्स की व्यवस्था कैसे कर रहे हैं? तो उनका जवाब था कि जैसे इच्छवाकु वंश करता है, वैसे ही कर रहे हैं। इसके जवाब में राम ने कहा, हमें टैक्स ऐसे लेना चाएिह जैसे सूरज लेता है...
बाबा तुलसी दास जी ने इसे दोहावली में रूपांतरित कर लिखा कि  
बरसत हर्षत सब लखें कर्षत लखे न कोय..
तुलसी प्रजा शुभाग से भूप भानु सा होय...

यानी सूर्य जिस तरह पृथ्वी से अनजाने में ही अपना टैक्स ले लेता है। यानी वह पानी खींच लेता है और किसी को पता तक नहीं चलता। फिर जब वह जल को बादल के रूप में जुटाकर वहां बरसाता है, जहां जरूरत होती है तो हर कोई खुश हो जाता है। 
सरकार को भी लोगों को ऐसे ही राहत देना चाहिए। 'द सूत्र' का ध्येय वाक्य है कि हम सिर्फ भगवान से डरते हैं... हम अपने उसी ध्येय वाक्य पर चलते हुए युवाओं के 'वन टाइम फीस' का अभियान लेकर आएं हैं। हमें उम्मीद है कि रामराज की दुहाई देने वाली मोहन सरकार इस दिशा में कदम बढ़ाकर युवाओं को राहत देगी।

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