एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी के नाम पर कोचिंग में बढ़ती जा रही थी छठी और आठवीं के छात्रों की संख्या, मिलेगी बच्चों राहत

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Jitendra Shrivastava
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एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी के नाम पर कोचिंग में बढ़ती जा रही थी छठी और आठवीं के छात्रों की संख्या, मिलेगी बच्चों राहत

मनीष गोधा, JAIPUR. मेडिकल और इंजीनियरिंग एंट्रेंस टेस्ट में मजबूत तैयारी के लिए कोटा के कोचिंग संस्थानों में छठी और आठवीं कक्षा के छात्रों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी। कोटा के कोचिंग संस्थानों में छठी और आठवीं कक्षा के छात्रों का अधिकृत आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन बताया जा रहा है कि कोचिंग कर रहे कुल छात्रों में से 20 से 25% तक छात्र इन कक्षाओं के हो गए थे अब केंद्र सरकार की कोचिंग संस्थानों के बारे में जारी की गई। नई नीति के बाद बच्चों को कुछ राहत मिल सकेगी, क्योंकि न्यू एजुकेशन पॉलिसी-2000 के तहत गाइडलाइन फॉर रजिस्ट्रेशन रेगुलेशन कोचिंग सेंटर-2024 में 16 साल की उम्र से कम आयु के विद्यार्थियों को कोचिंग में प्रवेश नहीं देने और कक्षा दसवीं के बाद ही विद्यार्थियों को संस्थानों में प्रवेश देने के लिए निर्देशित किया है।

कोटा कोचिंग का सबसे बड़ा केंद्र

राजस्थान में कोटा कोचिंग का सबसे बड़ा केंद्र है और पूरे देश से मेडिकल और इंजीनियरिंग में प्रवेश लेने की इच्छा रखने वाले छात्र कोटा आते हैं। कोटा में इस समय लगभग ढाई लाख बच्चे विभिन्न कोचिंग संस्थानों में कोचिंग कर रहे हैं। कुछ वर्ष पहले कोचिंग के लिए आने वाले बच्चों में ज्यादातर 10वीं और 12वीं पास करने वाले छात्र हुआ करते थे लेकिन अब आठवीं और छठी कक्षा के बाद भी बच्चों को कोचिंग संस्थानों में प्रवेश दिया जाने लगा है।

हॉस्टल या पीजी में रेंट से रूम लेकर रह रहे

कोचिंग संस्थानों में कक्षा 6वीं या 8वीं से पढ़ने वाले विद्यार्थियों को प्री नर्चर कॅरियर फाउंडेशन कोर्स (PNCF) में शामिल किया जाता है। ये कोर्स कोटा के लगभग सभी बड़े कोचिंग संस्थान संचालित करते हैं, जिनमें हजारों की संख्या में स्टूडेंट पढ़ भी रहे हैं। ये स्टूडेंट या तो अपने माता-पिता के साथ ही कोटा में रहते हैं, या फिर हॉस्टल या पीजी में रेंट से रूम लेकर भी रह रहे हैं। इनके अलावा बड़ी संख्या उन छात्रों के भी है जो कोटा या आसपास के इलाकों में रहते हैं और इसी तरह की कोचिंग करते हैं।

इसलिए शुरू हुई ये प्रवृत्ति

कोटा में कोचिंग व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि छठी या आठवीं कक्षा के बच्चों को कोचिंग में प्रवेश देने की प्रवृत्ति पहले नहीं थी। यह पिछले चार-पांच साल से ही होने लगा है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि कोचिंग संस्थान इन बच्चों को छठी या आठवीं कक्षा से ही सामान्य पढ़ाई के साथ ही मेडिकल या इंजीनियरिंग में प्रवेश के हिसाब से भी तैयारी करना शुरू कर देते हैं। मेडिकल इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा 12वीं के बाद होती है और तब तक यह बच्चे कोचिंग के सिस्टम को बहुत हद तक समझ जाते हैं और बहुत से बच्चे पहले अटेम्प्ट में ही परीक्षा पास कर लेते हैं। इसके अलावा यह कोचिंग संस्थान प्रवेश परीक्षा की मुख्य कोचिंग में इन बच्चों को 50% से ऊपर भी स्कॉलरशिप दे देते हैं। यही कारण है कि कई पेरेंट्स को लगता है की शुरुआत से ही कोचिंग दिलवा दी जाए तो बच्चा पहली बार में ही प्रवेश परीक्षा पास भी कर लेगा और स्कॉलरशिप का भी फायदा मिल जाएगा।

कोचिंग के कई नुकसान भी है

पेरेंट्स अपना फायदा तो देख लेते हैं लेकिन इसके चलते बच्चों पर मानसिक तौर पर काफी दबाव पड़ता है। स्कूल शिक्षक रहे शिक्षाविद रामकृष्ण अग्रवाल कहते है कि यह फैसला बहुत अच्छा है और तुरंत लागू होना चाहिए क्योंकि इस प्रवृत्ति के कई नुकसान है...

1. बच्चों का स्कूल जाना बंद हो जाता है क्योंकि स्कूल की पढ़ाई कोचिंग में ही होती है। ऐसे में स्कूल की को-करिकुलर एक्टिविटीज और खेलकूद जैसी गतिविधियों से बच्चे दूर हो जाते हैं और उनका ओवरऑल डेवलपमेंट रुक जाता है।

2. इतनी जल्दी बच्चों को करियर की ओर धकेलने से वे किसी और विषय या विकल्प के बारे में सोच ही नहीं पाते।

3. स्कूलों में पढ़ाई का सिस्टम अलग होता है जबकि कोचिंग की पढ़ाई पूरी तरह से प्रवेश परीक्षा को ध्यान में रख कर कराई जाती है ऐसे में बच्चों को विषय की गहन जानकारी नहीं हो पाती और वे अन्य विषयों में कमजोर रह जाते हैं।

राजस्थान में भी जारी हुई थी ऐसी गाइड लाइन

कोटा में पिछले वर्ष कोचिंग छात्रों की आत्महत्या का आंकड़ा बहुत बढ़ गया था और 25 से ज्यादा ऐसे मामले सामने आ गए थे। इसे देखते हुए राजस्थान सरकार ने बच्चों का तनाव कम करने के लिए गाइडलाइन जारी की थी। उसे गाइडलाइन में हालांकि 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों को प्रवेश देने पर पाबंदी नहीं थी, लेकिन कई प्रावधान केंद्र की नीति जैसे ही थे जैसे उस गाइडलाइन में 5 दिन पढ़ाई, त्योहार पर छुट्टी, कम उम्र के बच्चों को प्रवेश नहीं, सिलेक्शन के दावे पर रोक, इन हाउस टेस्ट का परिणाम सार्वजनिक नहीं करना, गेटकीपर ट्रेनिंग, हर 3 महीने में पेरेंट्स टीचर मीटिंग, सीसीटीवी सर्विलेंस, स्टूडेंट की अटेंडेंस पर पूरी नजर, स्क्रीनिंग टेस्ट से एडमिशन व फीस रिफंड सहित कई नियम थे। केंद्र सरकार की इस गाइडलाइन में भी इनमें से कई नियम शामिल किए गए हैं। हालांकि, इस गाइडलाइन की भी पूरी पालना कुछ कोचिंग संस्थान फिलहाल नहीं कर रहे हैं।

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