मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान के विधानसभा चुनाव में राजस्थान को स्वास्थ्य का अधिकार कानून पारित करने वाला देश का पहला राज्य बताकर प्रचारित किया गया था। राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने इसे अपनी फ्लैगशिप स्कीम के रूप में प्रचारित किया हुआ था, लेकिन हकीकत यह है कि कानून पारित किए जाने के बावजूद कांग्रेस की सरकार इसके नियम अधिसूचित नहीं करवा पाई। इसके चलते यह लागू ही नहीं हो पा रहा है। हालांकि अकेले इस कानून के साथ ही स्थिति नहीं है। पिछली सरकार ने अपने अंतिम कार्यकाल के अंतिम सत्र में 20 से ज्यादा कानून पारित किए थे। उनमें से ज्यादातर को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
राजस्थान ऐसा कानून लाने वाला बन गया था पहला राज्य
21 मार्च 2023 को “राजस्थान स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम 2022” विधानसभा में पारित कर राजस्थान ऐसा कानून लाने वाला देश का पहला राज्य बन गया था। देश में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण कानून माना गया था क्योंकि यह कानून अस्पतालों को इस बात के लिए बाध्य करता था कि यदि आपात स्थिति में कोई मरीज उनके पास पहुंच रहा है तो उन्हें उसका इलाज करना होगा। वे इलाज के लिए मना नहीं कर सकते थे।
स्वास्थ्य अधिकार पर संकट
कानून पारित होने के 9 महीने में भी इसके नियम नोटिफाई नहीं होने के पीछे एक बड़ा कारण निजी अस्पतालों का दबाव बताया जा रहा है। जब यह कानून पारित हो रहा था, तब राजस्थान में निजी अस्पतालों ने बड़ा आंदोलन किया था। सरकार को उनके दबाव में कानून के प्रावधानों में कुछ बदलाव भी करने पड़े थे। इसके बाद ही कानून पारित हो पाया था। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस कानून को जमकर प्रचारित किया था, लेकिन स्थिति यह है कि इस कानून को आए 9 माह बीत जाने के बाद भी अभी तक ना तो इस कानून के नियम बन पाए हैं और ना ही यह कानून लागू हो पाया है। पूर्व सरकार द्वारा नियमों को तैयार करने के लिए जुलाई 2023 में इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलीरी साइंस के निदेशक डॉ. एस.के. सरीन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन तो किया गया था, लेकिन नियम अब तक तैयार नहीं हो पाए हैं। अब राज्य में सरकार बदलने के साथ इस कानून के भविष्य को लेकर कई तरह कि आशंकाएं भी जताई जा रही हैं।
कानून का लेकर अब क्या ?
इस कानून को तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले स्वास्थ्य विषयों पर कार्यरत संगठनों और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का एक राज्यव्यापी नेटवर्क है। जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान से जुड़े छाया पचोली और राजन चौधरी का कहना है कि इस कानून को सरकार प्रभावी रूप से लागू किया जाता तो यह राज्य की जन स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ कर लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को बढ़ाने और आमजन के उपचार में अपनी जेब से होने वाले व्यय को कम करने में अत्यंत कारगर साबित हो सकता था। लेकिन अब सरकार बदल गई है और अब इसका कानून का क्या होगा। इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। हालांकि जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान (JSA राजस्थान) से जुड़े राज्यभर के 70 से अधिक संस्थाओं और संगठनों ने मुख्य मंत्री भजनलाल शर्मा के नाम एक ज्ञापन में इस कानून के नियम बनाने और अधिसूचना में देरी को लेकर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उन्हें इस कानून को जल्द से जल्द लागू करने कि मांग की है।
इनका कहना है कि कानून में मरीजों को कई तरह के अधिकार दिए गए हैं। कानून लागू नहीं होने के चलते मरीज को अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा है और यह कानून की अवहेलना हैं।
अंतिम सत्र में पारित कानूनों को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं
राजस्थान में पिछली सरकार के समय विधानसभा के अंतिम सत्र में लगभग 20 कानून पारित किए गए थे। यह 17 जुलाई अगस्त में था। इस दौरान पिछली सरकार ने गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए कोष बनाने, न्यूनतम आय की गारंटी देने, किसानों को ऋण राहत के लिए आयोग बनाने, उदयपुर और कोटा में विकास प्राधिकरण गठित करने, राज्य मेला प्राधिकरण गठित करने जैसे अहम बिल पारित किए गए थे। लेकिन आधिकारिक सूत्रों की मानें तो इनमें से ज्यादातर कानूनों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। इसका कारण यह है कि विधानसभा कानून तो पारित कर देती है, लेकिन कानून को लागू करने के लिए संबंधित विभाग को उसके नियम भी तैयार करने पड़ते हैं। यह नियम तैयार करने में समय लगता है और इन्हें नोटिफाई भी करना पड़ता है। इसके बाद ही कानून को लागू माना जाता है। ये कानून जुलाई-अगस्त में पारित हुए। इसके बाद सरकार चुनाव की तैयारी में जुट गई और नौ अक्टूबर को तो आचार संहिता ही लागू हो गई थी। भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा में इनमें से ज्यादातर कानून का विरोध किया था। ऐसे में सत्ता परिवर्तन के बाद कानून किस रूप में लागू हो पाएंगे यह देखने वाली बात होगी।