भजनलाल सरकार के 2 साल: नौकरशाही ने नहीं बदला चेहरा, कोर्ट को बार-बार चलाना पड़ा चाबुक, जानिए पूरा मामला

राजस्थान में भजनलाल सरकार के दो साल पूरे हो गए हैं। लेकिन सरकार की ब्यूरोक्रेसी में कोई बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है। सत्ता में आने से पहले भाजपा पूर्ववर्ती सरकार पर नौकरशाही के बेलगाम होने के आरोप लगाए थे। कोर्ट को सरकार के कई मामलों में दखल करना पड़ा।

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Kamlesh Keshote
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Photograph: (the sootr)

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योगेंद्र योगी 

Jaipur. राजस्थान की सत्ता में आने से पहले भाजपा ने पूर्ववर्ती कांग्रेस शासन में राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी के बेलगाम होने का आरोप लगाया था। लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद भी नौकरशाही के रवैए में अपेक्षित सुधार नहीं दिख रहा है।

भजनलाल सरकार के 2 साल के शासन के दौरान ढेरों मामलों में कोर्ट ने नौकरशाही के रवैए को लेकर न सिर्फ सख्त टिप्पणी की। बल्कि कई मामलों में कार्रवाई करने के निर्देश देने पड़े। 

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अफसरों के कारण 7 हजार अवमानना मामले

राजस्थान हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना के कारण 7,000 से अधिक अवमानना के मामले लंबित हैं। इनमें अधिकतर मामले सरकार के खिलाफ हैं। स्थिति यह है कि अदालती फैसलों को लागू नहीं किया जा रहा है। इससे अधिकारियों पर वेतन रोकने और अन्य सख्त एक्शन की तलवार लटक रही है। 

अवमानना के बढ़ते मामले दर्शाते हैं कि अदालती आदेशों के पालना में देरी और अनदेखी बड़ी समस्या बन गई है। खासकर जब सरकारी विभागों द्वारा फैसलों को टाल दिया जाता है। कई मामलों में तो सरकार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गई। लेकिन वहां से राहत न मिलने के बाद भी राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश की पालना नहीं हुई।

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क्या इसलिए सुधांश पंत ने छोड़ा था मुख्य सचिव पद 

देखा जाए तो दो साल में राजस्थान की नौकरशाही खींचतान में ही उलझी नजर आई। हालात इतने बिगड़ गए कि वरिष्ठ आईएएस सुधांशु पंत मुख्य सचिव का पद छोड़ कर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए विवश हो गए। बताया यही जाता है​ कि कुछ सख्त निर्णयों के कारण उनकी सत्तारूढ़ दल से उनकी पटरी नहीं बैठ रही थी। बात इतनी बिगड़ी कि सुंधाश पंत ने मुख्य सचिव का पद छोड़ने में ही अपनी भलाई समझी। 

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अरबों की जमीन पर अतिक्रमण,अफसरों पर कार्रवाई के निर्देश

पब्लिक अगेंस्ट करप्शन संस्था ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया कि राजस्थान सरकार ने 12 मार्च 2025 को सांगानेर की उन कॉलोनियों को नियमित करने का आदेश जारी किया। जो आवासन मंडल के लिए अवाप्त जमीन पर अवैध रूप से बसाई गई है। याचिका के अनुसार ये 87 कालोनियां B-2 बाईपास से सांगानेर के बीच के क्षेत्र में बसी हैं। इस भूमि के लिए आवासन मंडल की ओर से काश्तकारों को भुगतान किया जा चुका। लेकिन अधिकारियों ने भूमाफियाओं से मिलीभगत कर यहां कब्जे करवा दिए और अब नियमन करवाया जा रहा है। 
   
20 अगस्त 2025 को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि अवैध निर्माण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को कैसे नियमित किया जा सकता है। कोर्ट ने अवैध निर्माण को नियमित करने के राज्य सरकार के प्रयासों पर रोक लगा दी। वहीं सभी अवैध निर्माण हटाकर आठ सप्ताह में रिपोर्ट तलब की। कोर्ट ने दोषी अधिकरियों के खिलाफ कार्रवाई करने को भी कहा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से भी सरकार को झटका लगा। खंडपीठ ने राज्य सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया। जिसके जरिए सरकार जयपुर के सांगानेर क्षेत्र में अतिक्रमण को बचाना चाहती थी। 

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रामगढ़ बांध अतिक्रमण: अफसरों के खिलाफ एक्शन का आदेश

राजस्थान हाईकोर्ट ने रामगढ़ बांध और उसके फीडर नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों में अतिक्रमण पर स्वतः संज्ञान लिया। कोर्ट ने इन जल स्रोतों के कैचमेंट एरिया में किसी भी भूमि के आवंटन और हस्तांतरण पर रोक लगा दी। इस मामले में जल संसाधन विभाग के एसीएस को गलत तथ्य पेश करने और निष्क्रियता के लिए जांच करने और दोषी पाए जाने पर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया गया है।

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IAS अफसरों का वेतन, पेंशन रोकने के आदेश

हाईकोर्ट ने अवमानना मामले में तीन वर्तमान और पूर्व आईएएस अफसरों की सैलेरी और पेंशन रोकने के आदेश जारी किए। इन तीन आईएएस अधिकारियों में से एक हेमंत गेरा अभी राजस्व मंडल के अध्यक्ष हैं। जबकि तारा चंद मीणा और राजेंद्र शंकर भट्ट नाम के दो अफसर सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने हेमंत गेरा की सैलरी और राजेंद्र शंकर भट्ट और तारा चंद मीणा की पेंशन रोकने के आदेश दिए। उदयपुर के जिला कलेक्टर और संभागीय आयुक्त कार्यालय में कार्यरत 9 कर्मचारियों को साल 1987 में राजकीय सेवा में स्थायी मानकर सरकार में पहले और दूसरे चयनित वेतनमान का लाभ दिया। लेकिन तीसरे वेतनमान से इन सभी को वंचित रखा गया था। इसके खिलाफ सभी कर्मचारी कोर्ट में गए थे। 

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अवैध खनन पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, प्रशासन नाकाम

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन सीजेआई बीआर गवई ने कहा था कि राजस्थान में माइनिंग लॉबी इतनी मजबूत है कि प्रशासन उस पर काबू नहीं कर पा रहा है। कोर्ट ने ये टिप्पणी रणथम्भौर अभयारण्य क्षेत्र से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अवैध खनन पर कड़ा रुख दिखाते हुए कहा कि सरकार ने कार्रवाई नहीं की तो जंगल और वन्यजीव दोनों खतरे में पड़ जाएंगे।

कोर्ट ने सीडब्ल्यूसी और राज्य सरकार से खनन प्रभावित क्षेत्रों की पूरी रिपोर्ट मांगी है। रणथम्भौर रिजर्व की 500 मीटर परिधि में 38 होटल और रिसॉर्ट बनाए गए हैं। इनमें से कई का निर्माण अवैध तरीके से हुआ है। कोर्ट ने इस पर गहरी नाराजगी जताई और राज्य सरकार से जवाब तलब किया। कोर्ट को ये भी बताया गया कि रणथम्भौर के आसपास ईको सेंसिटिव जोन में लगातार होटल और फार्म हाउस का निर्माण हो रहा है।

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मुख्य सचिव सहित 17 को अवमानना का नोटिस

राजस्थान हाईकोर्ट ने अदालती रोक के बावजूद चौमूं तहसील की ग्राम पंचायत हाडौता में सरकारी भूमि पर भारी चारा वाहनों की पार्किंग कराने पर मुख्य सचिव, पंचायती राज आयुक्त, प्रमुख राजस्व सचिव, कलेक्टर, यातायात उपायुक्त, एसडीएम और स्थानीय सरपंच सहित कुल 17 लोगों को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। सरकार ने ग्राम पंचायत और पंचायत समिति के अधिकारियों से मिलीभगत कर चारागाह भूमि और आम रास्ते को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया अपनाए भारी चारा वाहनों के लिए पार्किंग का ठेका दे दिया था।

हाईकोर्ट ने 8 नवंबर को यहां पार्किंग करने पर रोक लगाते हुए संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा था। इसके बावजूद इस जमीन पर पार्किंग ठेकेदार से मिलीभगत कर अवैध पार्किंग कराई गई। ऐसे में दोषी अफसरों को अवमानना के लिए दंडित किया जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब तलब किया।

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टेंडर मामले में मुख्य सचिव सहित दो को अवमानना का नोटिस

हाईकोर्ट ने अदालती आदेश के बावजूद सरकारी टेंडरों के जुडे दस्तावेज वेबसाइट पर सार्वजनिक नहीं करने पर मुख्य सचिव सुधांश पंत और प्रमुख खाद्य सचिव सुबीर कुमार को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। अदालत को बताया कि राजस्थान ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक प्रोक्योरमेंट एक्ट की धारा 17 में प्रावधान है कि सरकारी टेंडर से संबंधित सभी दस्तावेज वेबसाइट पर अपलोड कर सार्वजनिक किया जाए।

इसके पीछे उद्देश्य है कि आमजन को संबंधित टेंडर के सभी पहलुओं की जानकारी मिले। इसके बावजूद टेंडर में मिलीभगत करने के लिए टेंडर और उसकी प्रक्रिया को सार्वजनिक नहीं किया जाता।हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका निस्तारित कर दी कि राज्य सरकार इस एक्ट की पालना करे। खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब तलब किया।

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दो IAS सहित तीन पर अवमानना का मामला

एक कॉलेज व्याख्याता को कॅरियर एडवांसमेंट स्कीम का लाभ देने से जुड़े मामले में करीब 3 साल पहले कोर्ट ने आदेश दिया था। उस आदेश की पालना अभी तक नहीं हुई। कोर्ट के आदेशों की अवमानना करने पर हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है। कोर्ट ने सीनियर आईएएस भवानी सिंह देथा, तत्कालीन कॉलेज आयुक्त शुचि त्यागी और संयुक्त निदेशक कॉलेज शिक्षा आरसी मीणा को 28 मार्च को तलब किया।

जस्टिस उमाशंकर व्यास ने कहा कि अगर ये अफसर हाईकोर्ट में आकर खेद प्रकट करें तो इनके प्रति नरम रवैया अपनाया जा सकता है। साथ ही उन्हें यह भी आश्वस्त करना होगा कि भविष्य में कोर्ट के आदेशों की समय पर पालना करेंगे। अगर ऐसा नहीं होता है तो कोर्ट अपने हिसाब से एक्शन लेने के लिए स्वतंत्र होगा। 

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2 वरिष्ठ IAS को सुनाई सजा

कुछ दिन पहले ही राजस्थान के दो सीनियर IAS अफसरों को वाणिज्यिक अदालत ने अवमानना के मामले में 3-3 महीने की सजा सुनाई थी। यह सजा अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के अधिकारियों प्रवीण गुप्ता और भास्कर ए. सावंत को सुनाई गई थी। हालांकि अगले ही दिन इन अफसरों ने कमर्शियल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट से इन दोनों अफसरों को राहत मिल गई और ये अफसर जेल जाने से बच गए।

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सुप्रीम कोर्ट ने लगा दिया लाख का जुर्माना

राजस्थान सरकार ने वर्ष 2001 में एक अंशकालिक मजदूर के पक्ष में एक श्रम अदालत के फैसले को लागू नहीं किया और उसे लगातार 22 साल तक मुकदमेबाजी में घसीटती रही। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में 8 दिसंबर के राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राजस्थान राज्य की अपील को खारिज कर दिया।

जबकि राजस्थान सरकार को इस दौरान हुए खर्च के रूप में 10 लाख रुपए का भुगतान मजदूर को करने का आदेश दिया। श्रम न्यायालय ने श्रमिक को सेवा में वापस बहाल करने का आदेश दिया था। श्रम न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली राज्य की याचिका को बाद में हाईकोर्ट ने भी खारिज कर दिया था।

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