SC की रोक के बाद भी माफिया अरावली में खनन कर रहे, सरिस्का टाइगर रिजर्व पर मंडराया खतरा

सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद राजस्थान में अरावली की पहाड़ियों में खनन लगातार जारी है। इसके चलते सरिस्का टाइगर रिजर्व और पर्यावरण पर खतरा बढ़ गया है। इतनी सख्ती के बाद भी खनन माफिया नहीं मान रहे हैं, क्योंकि उनके हौसले बुलंद हैं।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur/Alwar. अरावली पर्वतमाला दुनिया की सबसे पुरानी पहाड़ी श्रृंखलाओं में से एक है, जो दिल्ली से लेकर गुजरात तक फैली हुई है। यह पर्वतमाला राजस्थान के 15 जिलों से होकर गुजरती है और उत्तर भारत के पर्यावरण को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन लगातार खनन और अतिक्रमण के कारण यह अपनी प्राकृतिक स्थिति खोती जा रही है, जिससे न केवल मौसम बल्कि आसपास के जीव-जंतु भी प्रभावित हो रहे हैं।

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सरिस्का पर बढ़ा संकट

सरिस्का टाइगर रिजर्व, जो न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस खनन के कारण गंभीर संकट का सामना कर रहा है। यहां के पर्वतों को ओम के आकार में देखा जा सकता है। इसे पांडवों के वनवास और भर्तृहरि की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने 2023 में अरावली के एक किमी के दायरे में खनन पर रोक लगाई थी। इसके बावजूद गतिविधियां बंद नहीं हो पाईं।

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सुप्रीम आदेश के बावजूद खनन में वृद्धि

2024 में सरकार ने यह दावा किया कि अरावली में खनन पूरी तरह से बंद हो चुका है, लेकिन टीम के मौके पर पहुंचने पर स्थिति कुछ और ही दिखी। कई खदानें बंद पाई गईं, लेकिन वहां मशीनें रखी हुई थीं, जो यह संकेत देती हैं कि खनन अभी भी चोरी-छिपे जारी है। इसके अलावा स्थानीय लोग भी इस बात का समर्थन करते हैं कि खनन गतिविधियां अभी भी चल रही हैं, जिससे पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान हो रहा है।

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नए नियमों से और अधिक खतरा

हाल ही में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अरावली के संरक्षित क्षेत्र के बारे में नया प्रस्ताव पेश किया है। इसके अनुसार, अब केवल 100 मीटर ऊंची पहाड़ियों को ही संरक्षित माना जाएगा, जबकि पहले 115 मीटर की ऊंचाई तक पहाड़ियों को संरक्षित क्षेत्र में रखा गया था। इस नए प्रस्ताव के तहत अरावली की 90 प्रतिशत पहाड़ियां संरक्षित क्षेत्र से बाहर हो जाएंगी, जिससे इन पर खनन की अनुमति मिल सकती है और अवैध गतिविधियां बढ़ सकती हैं।

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फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की आंतरिक रिपोर्ट में बताया गया है कि राजस्थान के 15 जिलों में अरावली की 12,081 पहाड़ियां 20 मीटर से ऊंची हैं, जिनमें से केवल 8.7 फीसदी पहाड़ियां 100 मीटर से ऊंची हैं। इसके अनुसार, नई परिभाषा के लागू होने पर 90 प्रतिशत पहाड़ियां संरक्षित क्षेत्र से बाहर हो जाएंगी। इससे न केवल पहाड़ियों का विनाश होगा, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा।

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पर्यावरणविदों की चेतावनी और अपील

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि मंत्रालय के द्वारा सुझाए गए नए नियमों पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। उनका मानना है कि पहाड़ियों की ऊंचाई समुद्र तल से मापी जानी चाहिए, न कि जमीन से। इसके अलावा 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों पर खनन की अनुमति देने से अवैध खनन गतिविधियों में वृद्धि होगी, जिससे अरावली पूरी तरह बर्बाद हो सकती है। सरकार को इस ड्राफ्ट की समीक्षा करनी चाहिए, ताकि इस क्षेत्र का बचाव किया जा सके।

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प्रमुख बिंदु

अरावली पर्वतमाला : यह दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जो राजस्थान के पर्यावरण को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
खनन के नुकसान : खनन से अरावली पर्वतमाला का पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है, खासकर सरिस्का टाइगर रिजर्व में।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश : सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में अरावली के एक किमी दायरे में खनन पर रोक लगाई थी, लेकिन यह आदेश लागू नहीं हो सका।
नए नियमों का प्रभाव : नए नियमों के अनुसार 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों पर खनन की अनुमति मिल सकती है, जिससे अरावली के अधिकांश हिस्से को खतरा होगा।
पर्यावरणविदों की चेतावनी : पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि नए नियमों को लेकर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए, ताकि अरावली का संरक्षण किया जा सके।

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