/sootr/media/media_files/2025/07/29/artificial-rain-2025-07-29-12-37-16.jpg)
पानी के लिए तरस रहे जयपुर के रामगढ़ बांध पर 31 जुलाई को पहली बार कृत्रिम बारिश की जाएगी। यह प्रयोग भारतीय मौसम वैज्ञानिकों और अमरीकी कंपनी के अधिकारियों की संयुक्त पहल है।
यह तकनीकी रूप से एक ऐतिहासिक कदम है, जो राजस्थान के लिए उपयोगी साबित हो सकता है । इस कार्य में ड्रोन और एआई (Artificial Intelligence) तकनीक की मदद ली जा रही है।
कृत्रिम वर्षा के लिए तैयारियां
कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने इस परियोजना की तैयारियों की समीक्षा की है। इस प्रक्रिया के तहत, वैज्ञानिक बादलों की गतिविधियों पर नजर बनाए हुए हैं। नासा के उपग्रह, आइएमडी के रडार और चलित वेदर स्टेशन सिस्टम का उपयोग कर बादलों की स्थिति को ट्रैक किया जा रहा है। सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों को बादलों में छिड़कने की योजना है, ताकि वर्षा हो सके।
पीएम सूर्यघर योजना : 20% कन्वर्जन रेट के साथ पिछड़ रहा राजस्थान, कई छोटे राज्य भी हमसे आगे
कृत्रिम बारिश के लिए ट्रायल
31 जुलाई से 15 दिनों तक ड्रोन द्वारा कृत्रिम बारिश का ट्रायल किया जाएगा। इसमें डेटा परीक्षण के बाद हर दिन दो बार ड्रोन से सोडियम क्लोराइड का छिड़काव किया जाएगा। इस ट्रायल के बाद, बांध क्षेत्र में कृत्रिम बारिश के 60 ऑपरेशन किए जाएंगे। यह पयार्वरण के लिए ठीक है या नहीं यह सवाल भी उठ रहा है। राजस्थान में कृत्रिम बारिश प्रयोग पर सबकी निगाह है।
क्या है कृत्रिम बारिश
कृत्रिम बारिश के लिए वैज्ञानिकों द्वारा सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसी सामग्री को बादलों में डाला जाता है। यह प्रक्रिया तब संभव होती है जब बादल 40 प्रतिशत से अधिक आकाश में हों। इन रसायनों को विमान या ड्रोन से छिड़ककर बादलों के भीतर बर्फ के क्रिस्टल बनाए जाते हैं, जिससे वर्षा होती है।
राजस्थान भाजपा में बढ़ी हलचल ! जानिए क्या हैं भजनलाल शर्मा और वसुंधरा राजे की दिल्ली यात्रा के मायने
उदयपुर में जर्जर स्कूल भवन गिरा, गनीमत रही कि बच्चों की जान बची, कब सुधरेगी स्थिति?
क्या है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग एक तकनीकी प्रक्रिया है, जिसमें बादलों में रासायनिक पदार्थों का छिड़काव किया जाता है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से सूखे क्षेत्रों में वर्षा लाने के लिए उपयोग की जाती है। चीन जैसे देशों में इस तकनीक का व्यापक इस्तेमाल किया जाता है, ताकि बारिश की कमी को दूर किया जा सके।
क्या भारत में कृत्रिम बारिश हुई है?
भारत में भी कई बार कृत्रिम बारिश कराई गई है। उदाहरण के तौर पर, 1983, 1984-87 और 1993-94 के दौरान तमिलनाडु में क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन चलाए गए थे। इसके अलावा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी इस तकनीक का प्रयोग किया गया है।
फायदे और चुनौतियां
इससे पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जलवर्धन किया जा सकता है। इससे न सिर्फ कृषि को लाभ मिलता है, बल्कि जलस्रोतों की भरपाई भी हो सकती है। जल संकट की समस्या के समाधान के लिए जलस्रोत संरक्षण water conservation और जल संरक्षण आवश्यक है।
कृत्रिम बारिश से जुड़े खतरे
इस प्रक्रिया को लेकर वैज्ञानिकों के बीच बहस जारी है। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि इससे पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है, और इसके प्रभाव लंबे समय तक नहीं रहते। इसके अलावा, इस प्रक्रिया से पर्यावरणीय असंतुलन भी उत्पन्न हो सकता है।
राजस्थान 31 जुलाई को एक ऐसे ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनेगा, जब एक अभिनव प्रयोग सम्पन्न होगा। दो दशकों से जलविहीन रामगढ़ बांध में कृत्रिम बारिश के लिए विभागीय एवं तकनीकी स्तर पर समस्त तैयारियां पूर्णता के अंतिम चरण में हैं। यह देश में प्रथम अवसर होगा, जब ड्रोन तकनीक के माध्यम से कृत्रिम बारिश की जाएगी। यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो यह जल
FAQ
1. कृत्रिम बारिश क्या है?तकनीकी प्रक्रिया है, जिसमें बादलों में रासायनिक पदार्थों का छिड़काव करके वर्षा कराई जाती है। यह प्रक्रिया सूखे और जलविहीन क्षेत्रों में पानी की कमी को दूर करने के लिए की जाती है।2. क्या कृत्रिम बारिश भारत में सफल रही है?भारत में विभिन्न राज्यों जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सफल रही है। इन प्रयासों से जलस्रोतों की भरपाई की गई और कृषि उत्पादन को बढ़ावा मिला।3. पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है?इसके प्रभाव पर वैज्ञानिकों के बीच मतभेद हैं। कुछ मानते हैं कि यह पर्यावरणीय असंतुलन का कारण बन सकता है, जबकि कुछ इसे फायदेमंद मानते हैं।
संकट से ग्रस्त राजस्थान के लिए जलापूर्ति की दिशा में एक क्रांतिकारी एवं स्थायी समाधान का मार्ग प्रशस्त होगा। 31 जुलाई को दोपहर 3 बजे कृत्रिम बारिश के लिए यंत्रों का प्रक्षेपण किया जाएगा।किरोड़ी लाल मीणा, कृषि मंत्री, राजस्थान
क्या राजस्थान के रामगढ़ बांध में कृत्रिम वर्षा कराई जा रही है?
FAQ