अरावली बचाने की मुहिम में उतरे पूर्व CM अशोक गहलोत, सोशल मीडिया पर DP बदलने से चर्चा तेज

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अरावली पहाड़ियों को बचाने के लिए SaveAravalli मुहिम का समर्थन किया है। उन्होंने इसका समर्थन करते हुए अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल फोटो बदलकर विरोध जताया है। गहलोत ने लोगों से भी अभियान से जुड़ने की अपील की है।

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Kamlesh Keshote
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अरावली पहाड़ियों को बचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। अशोक गहलोत ने अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल तस्वीर बदलकर SaveAravalli मुहिम का समर्थन किया। अशोक गहलोत ने साफ किया कि यह केवल एक तस्वीर बदलने का काम नहीं है। बल्कि यह अरावली की नई परिभाषा के खिलाफ एक मजबूत विरोध है। पूर्व सीएम की इस पहल के बाद नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भी सोशल मीडिया पर प्रोफाइल फोटो बदल लिया है। 

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अरावली की नई परिभाषा पर विरोध

नई परिभाषा के तहत 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली मानने से इनकार किया जा रहा है। अशोक गहलोत ने चेतावनी दी कि इस तरह के बदलाव पूरे उत्तर भारत के भविष्य पर गहरा संकट पैदा कर सकते हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे भी अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल तस्वीर बदलकर इस अभियान से जुड़ें और अपनी आवाज बुलंद करें।

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मरुस्थल और गर्म हवाओं से सुरक्षा 

अशोक गहलोत ने अरावली पहाड़ियों के महत्व को समझाते हुए कहा कि यह प्राकृतिक कवच के रूप में कार्य करती हैं। अरावली पहाड़ियां मरुस्थल के फैलाव और लू की तेज हवाओं से रक्षा करती हैं। अगर ये पहाड़ियां कमजोर हो जाती हैं, तो रेगिस्तान का विस्तार और गर्मी का असर बढ़ जाएगा। जिससे लाखों लोगों की जिंदगी मुश्किल हो सकती है।

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प्रदूषण से शहरों की सुरक्षा

पूर्व मुख्यमंत्री ने अरावली के जंगलों और पहाड़ियों को दिल्ली-एनसीआर जैसे बड़े शहरों के लिए फेफड़ों जैसी संज्ञा दी। यह पहाड़ियां धूल भरी आंधियों को रोकती हैं और हवा को साफ रखने में मदद करती हैं। गहलोत ने कहा कि यदि अरावली पहाड़ियां बची रहती हैं, तो प्रदूषण का असर कुछ हद तक कम हो सकता है। लेकिन इसके बिना हालात और भी भयावह हो सकते हैं। इससे लोगों की सेहत पर सीधा खतरा मंडराएगा।

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पानी की कमी और पर्यावरण का संकट

पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने यह भी बताया कि अरावली जल संरक्षण का मुख्य आधार है। ये पहाड़ियां बारिश के पानी को सोखकर भूजल स्तर को बढ़ाती हैं। यदि ये पहाड़ियां समाप्त हो जाती हैं, तो पीने के पानी की भारी कमी हो सकती है। इसके साथ ही जंगली जानवर गायब हो जाएंगे और पर्यावरण संतुलन बिगड़ जाएगा। आने वाली पीढ़ियां इसके खतरनाक परिणाम भुगत सकती हैं।

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केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से अपील

पूर्व सीएम गहलोत ने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वे अरावली की नई परिभाषा पर दोबारा विचार करें। उन्होंने कहा कि अरावली को मीटर या फीते से नहीं, बल्कि इसके पर्यावरणीय योगदान के आधार पर मापना चाहिए। यह मुहिम केवल राजस्थान की नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत की सुरक्षा से जुड़ी हुई है। अशोक गहलोत ने लोगों से अपील की कि वे इस अभियान में शामिल होकर आने वाली पीढ़ियों के लिए हरा-भरा और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करें।

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मुख्य बिंदु 

अरावली का समर्थन: अशोक गहलोत ने अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल तस्वीर बदलकर SaveAravalli मुहिम का समर्थन किया। उन्होंने यह कदम अरावली की नई परिभाषा के खिलाफ विरोध जताने के लिए उठाया।

प्रदूषण नियंत्रण: अरावली पहाड़ियां मरुस्थल के फैलाव और गर्म हवाओं से सुरक्षा प्रदान करती हैं। साथ ही ये प्रदूषण को भी नियंत्रित करती हैं और जल संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाती हैं।

सुप्रीम कोर्ट से अपील: अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि वे अरावली की नई परिभाषा पर पुनर्विचार करें और इसे पर्यावरणीय योगदान के आधार पर मापने की बात कही।

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