राजस्थान में अशोक गहलोत की सक्रियता के क्या हैं मायने, सचिन पायलट ने क्यों बना ली है राज्य की सियासत से दूरी, जानिए असल वजह

राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत की अचानक बढ़ी सक्रियता, पायलट और डोटासरा के साथ उनकी रणनीतिक राजनीति पर नजर। राजस्थान में गहलोत का बढ़ता प्रभाव।

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Nitin Kumar Bhal
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Ashok Gehlot

बुधवार 30 जुलाई 2025 को बीकानेर दौरे पर अशोक गहलोत का स्वागत करते कार्यकर्ता। Photograph: (The Sootr)

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मुकेश शर्मा

राजस्थान में कांग्रेसियों और भाजपाईयों के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयान, उनके दौरे और गतिविधियां बेहद कौतुहल का विषय रहती हैं। प्रदेश में राजनीतिज्ञों और राजनीति में रुचि रखने वाले बेखूबी जानते हैं कि राजस्थान की राजनीति में गहलोत ही अकेले ऐसे नेता है, जो बिना किसी राजनीतिक मकसद के कुछ नहीं करते। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर कुछ समय से अशोक गहलोत की अचानक सक्रियता के पीछे क्या कारण हैं। 

अशोक गहलोत के पास फिलहाल पार्टी संगठन में कोई जिम्मेदारी भी नहीं है। इसके बावजूद वह लगातार भाजपा सरकार पर हमलावर ही नहीं हैं, बल्कि विभिन्न जिलों के दौरे और जनसभाएं ऐसे कर रहे हैं, मानो जल्द ही चुनाव होने वाले हों। सोशल मीडिया पर भी उनकी सक्रियता कमाल की है। मीडिया से वह निरंतर मु​खातिब रहते ही हैं। 

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चुनौती या कुछ और ...

कांग्रेस सरकार के दौरान अशोक गहलोत पर लगातार सवाल उठते रहे कि तीन बार पूरे पांच-पांच साल मुख्यमंत्री रहने के बावजूद वह पार्टी को सत्ता में रिपीट क्यों नहीं करा पाते हैं। पहली बार 1998 में 156 सीट के बहुमत से बनी उनकी सरकार 2003 में मात्र 56 सीट पर सिमट गई थी। दूसरी बार उनकी सरकार का कार्यकाल खत्म होने के बाद 2013 में आजादी के बाद राजस्थान में कांग्रेस का सबसे बुरा प्रदर्शन रहा और पार्टी मात्र 21 सीट पर सिमट गई थी। दोनों ही बार कांग्रेस अशोक गहलोत के नेतृत्व में चुनाव में उतरी थी। 

लेकिन, 2014 के बाद सचिन पायलट ने यह सवाल उठाना शुरु किया कि आखिर सबकुछ करने के बावजूद कांग्रेस हार क्यों जाती है! पायलट ने जब-जब यह बोला, तब तब यह मात्र एक सवाल नहीं था, बल्कि प्रत्यक्ष रुप से अशोक गहलोत की चुनाव जितवाने की काबिलियत पर भी प्रश्न था। गहलोत के तीसरे कार्यकाल में सचिन पायलट लगातार उनके लिए चुनौती बने रहे और कई मुद्दों पर उन्हें बुरी तरह घेरा। लेकिन, अशोक गहलोत अपने राजनीतिक कौशल के दम पर हर बार चुनौतियों को मात देते रहे। 

पायलट और गहलोत की राजनीतिक अदावत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में उनकी सक्रियता के यही मायने निकलते हैं कि वह आज भी किसी चुनौती का सामना करने को तैयार हैं। फिर चाहे मुकाबला भाजपा से हो या कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति और समीकरणों से। 

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एकमात्र प्रभावी नेता दिखने की रणनीति

राजस्थान की सियासत में अभी अशोक गहलोत सर्वाधिक अनुभवी जननेता हैं। जनता में भी उन्हें भरपूर समर्थन हासिल है। यह उनके लगातार चल रहे दौरों में उमड़ी भीड़ से दिखता है। कांग्रेस में उनके अतिरिक्त अन्य कोई नेता भाजपा सरकार की हर पॉलिसी पर सवाल भी नहीं उठा रहा है या उनके जितना मुखर नहीं है। वह भाजपा सरकार के हर दावे या काम की अपने कार्यकाल से तुलना करके तत्काल जवाब देते हैं। कांग्रेस के वर्तमान में 66 विधायक,133 विधायक प्रत्याशी, पूर्व मंत्री, विभिन्न निगम और बोर्ड के पूर्व चेयरमैन व अध्यक्ष आदि कोई शायद ही कभी कुछ बोलता हो। गहलोत के अलावा सिर्फ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा हैं, जो हर मुद्धे पर भाजपा सरकार को घेरते हैं। जानकारों का मानना है कि गहलोत तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं। ऐसे में भाजपा सरकार की नीतियों और काम पर बोलना और अपनी पार्टी को राजनीतिक दिशा बोध देना भी उनकी नैतिक जिम्मेदारी है।  

 

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Photograph: (The Sootr)

 

पायलट की सोची-समझी रणनीति या कुछ और

दूसरी ओर राजस्थान में गहलोत के बाद दूसरे सबसे प्रभावी नेता सचिन पायलट ने 2023 के चुनाव के बाद से ही राजस्थान की राजनीति से दूरी बना रखी है। हालांकि वह कांग्रेस महासचिव और छत्तीसगढ़ के प्रभारी हैं। इस कारण भी वह राजस्थान में पूरा समय नहीं दे पाते हैं। कहा जा रहा है कि पायलट सोची-समझी रणनीति के तहत राजस्थान से दूरी बनाए हुए हैं। जानकारों का मानना है कि समय से पूर्व प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने से फायदा कम और नुकसान ज्यादा है। दूसरी ओर कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि पायलट के सक्रिय होने से राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को ताकत मिलेगी, जबकि वह ऐसा नहीं होने देना चाहते। क्योंकि वह नहीं चाहते कि आने वाले समय में एक नया नेता उनके मुकाबले में खड़ा मिले। पायलट को यह भी पता है कि यदि ऐसा समय आया कि गहलोत को उनमें और किसी अन्य नेता में से किसी एक को चुनना पड़ा तो गहलोत किसी भी स्थिति में उनका साथ तो नहीं देगें। इसलिए ही पायलट सोची-समझी रणनीति के तहत राजस्थान में ज्यादा सक्रिय नहीं है। 

 

डोटासरा तेजी से बढ़ा रहे हैं प्रभाव

गोविंद सिंह डोटासरा दोनों नेताओं के बीच संतुलन बनाए हुए हैं। वह राजस्थान में गहलोत के बाद भाजपा सरकार की नीतियों व काम पर लगातार सवाल उठाने में अग्रणी बने हुए हैं। उन्होंने पायलट की विफलता से सबक लेते हुए न केवल अपनी एक टीम बना ली है बल्कि टीम को सक्रिय भी रखे हुए हैं। उनके नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 11 सीट जीतने से पार्टी हाईकमान में उनकी छवि भी बेहतर हुई है।

 

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FAQ

1. गहलोत की बढ़ती राजनीतिक सक्रियता का कारण क्या है?
अशोक गहलोत की बढ़ती सक्रियता भा.ज.पा सरकार और कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के चुनौती (Challenge) का सामना करने के लिए है।
2. क्या सचिन पायलट ने राजस्थान की राजनीति से दूरी बनाई है?
हां, सचिन पायलट ने सोची-समझी रणनीति (Strategic Planning) के तहत राजस्थान की राजनीति से दूरी बनाई है और वह वर्तमान में कांग्रेस महासचिव हैं।
3. गोविंद सिंह डोटासरा की भूमिका किस तरह बढ़ रही है?
गोविंद सिंह डोटासरा ने अपनी सक्रियता और लोकसभा चुनाव में सफलता के बाद राजस्थान कांग्रेस (Rajasthan Congress) में अपनी छवि को बेहतर किया है।

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