राजेश पायलट को दी श्रद्धांजलि, मनमुटाव छोड़ सचिन पायलट के साथ खड़े दिखे कांग्रेस नेता अशोक गहलोत

राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि पर दौसा में सर्वधर्म प्रार्थना सभा हुई, जिसमें कांग्रेस के कई बड़े नेता शामिल हुए। कार्यक्रम से पहले सचिन पायलट और अशोक गहलोत की मुलाकात ने सियासी हलचल मचाई। दोनों नेताओं के रिश्तों में बदलाव के संकेत मिलते हैं।

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The Sootr
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Photograph: (the sootr)

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JAIPUR. बुधवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि पर दौसा में सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन हुआ। सभा में राजस्थान के 8 सांसद, 25 विधायक और 36 से अधिक पूर्व मंत्री शामिल हुए। यह कार्यक्रम दौसा के जीरोता-भंडाना स्थित स्मारक पर हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजेश पायलट के पुत्र और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने की। यह पहला अवसर था, जब विधानसभा चुनाव 2023 के बाद इतनी बड़ी संख्या में कांग्रेस नेता एकत्र हुए।

इस कार्यक्रम से तीन दिन पहले जिस तरह कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आवास पर पहुंचे, उससे यह संकेत मिल रहे थे कि राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर दौसा पर बड़ा अयोजन होने वाला है। रिश्तों में खटास आने के बाद सचिन पूर्व सीएम गहलोत के आवास पर गए थे। चार साल बाद आवास पर दोनों नेताओं की हुई इस मुलाकात को लेकर सियासी गलियारों में कई मायने निकाले गए। हालांकि, सचिन ने दावा किया कि वे आयोजन का आमंत्रण देने गहलोत के आवास पर पहुंचे थे। सचिन से किए वादे के अनुरूप गहलोत ने स्मारक स्थल पर पहुंचकर पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट को श्रद्धांजलि दी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह देखना होगा कि गहलोत और सचिन के बीच रिश्ते भविष्य में गहरे होंगे या सियासी दीवार और लंबी होगी। 

सभा स्थल पर दिवंगत नेता राजेश पायलट के जीवन पर आधारित शॉर्ट फिल्म दिखाई गई। इसके बाद उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। गहलोत ने राजेश पायलट को श्रद्धाजंलि देने के बाद सोशल मीडिया एक्स पर कार्यक्रम के फोटो साझा किए और लिखा, पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट को पुण्यतिथि पर सविनय नमन। राजस्थान और देश की सेवा में आपकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। प्रदेश कांग्रस नेता गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि स्व.राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन करता हूं। देश व प्रदेश के विकास में आपके द्वारा दिया गया महत्वपूर्ण योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। कांग्रेस प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा भी सभास्थल पहुंचे। 

सभा स्थल पर पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता गहलोत ने कहा कि कहा, मैं और सचिन पायलट अलग कब थे। हम दोनों में खूब मोहब्बत है। ये तो मीडिया वाले अलग होने की बातें करते हैं। प्यार मोहब्बत हमेशा बनी रहती है... बनी रहेगी। दरअसल, गहलोत और पायलट के रिश्तों में लंबे समय से खटास की खबरें सुर्खियों में रही हैं।

इससे पहले सचिन पायलट ने सोशल मीडिया पर लिखा, आज मेरे पिता राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि पर उनका पुण्य स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं। उनकी जनसेवा, सच्चाई और साहस मेरे लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहेंगे। उन्होंने किसानों, युवाओं सहित हर वर्ग के लिए सम्मान और सशक्तिकरण का संकल्प लिया था। वे अपने विनम्र व्यवहार, कड़ी मेहनत और देश के प्रति समर्पण से हर दिल में अपनी जगह बना पाए। उनको मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि एवं कोटि-कोटि नमन।  

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गहलोत-पायलट के रिश्तों में खटास की वजह 

राजस्थान में साल 2013 के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी हाईकमान ने साल 2014 में सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाकर भेजा। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 200 सदस्य विधानसभा में महज 20 सीट ही मिल पाई थी। सचिन पायलट की लगातार सक्रियता और कड़ी मेहनत के बाद 2018 में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी। गहलोत मुख्यमंत्री बनने में सफल हुए। सचिन पायलट को प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाया गया। बताया जाता है कि सचिन पायलट इसे ना खुश थे। कुर्सी की लड़ाई के चलते दोनों नेताओं के बीच दूरियां बढ़ती गई। 

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गहलोत सरकार पर सियासी संकट 

साल 2020 में सचिन पायलट ने कांग्रेस के 18 विधायकों को लेकर मानेसर में डेरा डाला था। पायलट का यह कदम सीधे तौर पर सरकार गिराने की साजिश के तौर पर देखा गया। सूत्र बताते हैं कि गहलोत ने सीधे तौर पर सचिन पायलट पर सरकार गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ नकारा निकम्मा जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। पार्टी हाई कमान ने इसे सचिन पायलट की अनुशासनहीनता मानते हुए उन्हें पार्टी प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। हालांकि साल 2021 में प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सुखजिंद्र सिंह रंधावा और केसी वेणुगोपाल ने जयपुर में दोनों नेताओं के बीच सुलह तो कराई। लेकिन यह सुलह लंबे समय नहीं टिक पाई। एक बार फिर अशोक गहलोत के विश्वसनीय विधायकों ने खेमेबाजी कर साफ संकेत दे दिया कि राजस्थान में कांग्रेस के सर्वमान्य नेता अशोक गहलोत ही है। इससे एक बार फिर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सियासी तनाव बढ़ गया। पार्टी पूरी तरह से धड़ेबाजी में बंट चुकी थी। यह भी एक बड़ी वजह रही कि साल 2023 में कांग्रेस को 69 सीटों पर ही सिमट कर रहना पड़ गया। 

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कांग्रेस नेतृत्व में डोटासरा और जूली की एंट्री 

सचिन पायलट को साल 2020 में सरकार गिराने की साजिश रचने के आरोप में संगठन और सरकार के सभी पदों से बर्खास्त करने के बाद पार्टी ने आनन-फानन में अशोक गहलोत की सिफारिश पर गोविंद सिंह डोटासरा को राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी। पीसीसी चीफ डोटासरा ने विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया। लोकसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 11 सीट पर बाजी मारी। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में भाजपा की भजनलाल सरकार का गठन हुआ। पार्टी ने दलित नेता टीकाराम जूली को नेता प्रतिपक्ष बनाने का फैसला किया। सूत्र बताते हैं कि इस फैसले में भी अशोक गहलोत का पूरा दखल रहा। अब राजस्थान कांग्रेस में गोविंद सिंह डोटासरा को भी तीसरे स्तंभ के तौर पर देखा जाने लगा है। डोटासरा की सक्रियता अब अशोक गहलोत और सचिन पायलट को भी चुभने लगी है। सियासी गलियारों में भी इस बात की चर्चा भी है। ऐसा माना जाता है कि दोनों नेताओं के करीब आने की यह भी एक बड़ी साबित हो सकती है। 

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दुर्घटना में हो गया था राजेश पायलट का निधन

राजेश पायलट का जन्म 10 फरवरी 1945 को उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद के बैदपुरा गांव में हुआ था। वह 29 अक्टूबर 1966 को वायुसेना में फ्लाइंग ऑफिसर बने। 13 साल तक उन्होंने सेवाएं दी। पायलट 1980 में पहली बार भरतपुर से सांसद बने। इसके बाद 1984, 1991, 1996, 1998 और 1999 में दौसा से सांसद चुने गए। राजेश पायलट को 1984 में राजीव गांधी की सरकार में भूतल राज्य मंत्री बनाया गया था। उनका 11 जून 2000 को दौसा से जयपुर जाते समय भंडाना गांव के पास सड़क हादसे में निधन हो गया था। कांग्रेस में उनकी गिनती दिग्गज नेताओं में होती थी।

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