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Photograph: (The Sootr)
राजस्थान (Rajasthan) के मानगढ़ धाम में भील प्रदेश को लेकर आदिवासी एकजुट हुए। यह स्थल आदिवासियों की शहादतस्थली के रूप में जाना जाता है। इस समागम में राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से हजारों आदिवासी शामिल हुए। नेताओं ने इसे एक पुराने संघर्ष और आजादी के बाद के अन्याय के खिलाफ एक नए आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया।
BAP सांसद रोत ने जारी किया भील प्रदेश का नक्शा, मंत्री खराड़ी बोले-अलगाव की बात करना सियासत
जल-जंगल-जमीन और संस्कृति की रक्षा का संकल्प
भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा और 'आदिवासी परिवार' संगठनों के तहत आयोजित 'भील प्रदेश संदेश यात्रा' में आदिवासी नेताओं ने भाषण दिए और आदिवासी लोकगीतों के साथ जल-जंगल-जमीन और संस्कृति की रक्षा का संकल्प लिया। बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने अपने भाषण में कहा कि 2016 में मंत्री नंदलाल मीणा ने कहा था कि वह भील प्रदेश के लिए अपनी मंत्री की कुर्सी भी छोड़ देंगे, अगर इस क्षेत्र की मांग पूरी नहीं होती।
भील प्रदेश की मांग के पीछे के तर्क
भील प्रदेश की मांग पर जोर देते हुए आदिवासी नेताओं ने कई मुद्दे उठाए। इन मुद्दों में प्रमुख थे:
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संवैधानिक अधिकारों का हनन : आदिवासियों को संवैधानिक अधिकारों का पूरा लाभ नहीं मिल रहा है।
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संस्कृति, भाषा और पहचान का खतरा : जनजातीय संस्कृति, भाषा और पहचान को खत्म करने का प्रयास हो रहा है।
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पंचायती राज विस्तार अधिनियम का पालन नहीं : यह अधिनियम जमीनी स्तर पर प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पा रहा है।
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ग्रामसभा के अधिकारों का हनन: आदिवासी ग्रामसभाओं के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
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जमीन अधिग्रहण और विस्थापन: आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है और उन्हें विस्थापित किया जा रहा है।
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जंगलों पर पारंपरिक अधिकारों का हनन: आदिवासियों के पारंपरिक अधिकारों को खत्म किया जा रहा है।
विवाद: नक्शे पर बवाल
भील प्रदेश की मांग को लेकर डूंगरपुर-बांसवाड़ा सांसद राजकुमार रोत द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए नक्शे ने विवाद खड़ा कर दिया। इस नक्शे को लेकर उदयपुर सांसद मन्नालाल रावत और जनजाति विभाग मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने रोत की आलोचना की। मंत्री खराड़ी ने फेसबुक पर पोस्ट किया कि यह नक्शा आदिवासी समाज में विभाजन और नफरत फैलाने की साजिश है।
यदि सरकार वास्तव में आदिवासी हितैषी है, तो आदिवासियों की जो मांग वर्षों से चली आ रही है, "भील प्रदेश" जो आदिवासी समुदाय के अस्तित्व और पहचान को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है। इस मांग को पूरा किया जाना चाहिए। #हमारी_मांग_भीलप्रदेश
— Rajkumar Roat (@roat_mla) July 15, 2025
भील राज्य की माँग को लेकर गोविंद गुरु के नेतृत्व में 1913 में 1500 से अधिक आदिवासी मानगढ़ पर शहीद हुए थे।
— Rajkumar Roat (@roat_mla) July 15, 2025
आजादी के बाद भील प्रदेश को चार राज्य में बांटकर इस क्षेत्र की जनता के साथ अन्याय किया। गोविंद गुरु के नेतृत्व में शहीद हुए 1500 से अधिक शहीदों के सम्मान में भील प्रदेश… pic.twitter.com/EUjdNiQYdu
विरोध में भाजपा के नेता
उधर, भील प्रदेश की मांग के विरोध में भी स्वर उठ रहे हैं। हालांकि, ये स्वर एक ही पार्टी यानि राजस्थान में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से ही हैं। उदयपुर सांसद मन्नालाल रावत, जनजाति विभाग मंत्री बाबूलाल खराड़ी और राजेन्द्र राठौड़ ने इस मांग को लेकर विरोध जताया है। भाजपा नेता राजेन्द्र राठौड़ ने तो इस मांग को प्रदेशद्रोह तक करार दे दिया था।
राजस्थान की आन, बान और शान को तोड़ने की साजिश कभी सफल नहीं होगी।
— Rajendra Rathore (@Rajendra4BJP) July 15, 2025
बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद श्री राजकुमार रोत द्वारा जारी किया गया तथाकथित "भील प्रदेश" का नक्शा एक शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण राजनीतिक स्टंट है। यह न केवल गौरवशाली राजस्थान की एकता पर चोट है बल्कि… pic.twitter.com/KmuQeDL5jY
इसलिए महत्वपूर्ण है मानगढ़ धाम
मानगढ़ धाम, जहां 1913 में गोविंद गुरु के नेतृत्व में 1500 से ज्यादा आदिवासी शहीद हुए थे, वहां आदिवासियों ने अपनी ताकत और एकजुटता का प्रदर्शन किया। सांसद रोत ने 15 जुलाई को एक्स पर एक पोस्ट लिखते हुए कहा कि आजादी के बाद भील प्रदेश को चार राज्यों में बांटकर आदिवासी समुदाय के साथ अन्याय किया गया।
जानें भील प्रदेश का पूरा मामला क्या है?भील प्रदेश की मांग का इतिहास 108 साल पुराना है। 17 नवंबर 1913 को राजस्थान-गुजरात सीमा पर मानगढ़ की पहाड़ियों में ब्रिटिश सेना ने सैकड़ों भील आदिवासियों की हत्या कर दी थी। मानगढ़ नरसंहार से पहले भील समाज सुधारक गोविंद गुरु ने इस मांग की शुरुआत की थी। इस घटना को ‘आदिवासी जलियांवाला’ के रूप में भी जाना जाता है। तब से भील समुदाय अनुसूचित जनजाति के विशेषाधिकारों के साथ एक अलग राज्य की मांग करता रहा है। भील प्रदेश में कौन से इलाके शामिल हैं?प्रस्तावित भील प्रदेश में चार राज्यों- राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के 43 जिलों को शामिल करने की बात कही गई है। इसमें राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही, उदयपुर, झालावाड़, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां और पाली जिले शामिल हैं। गुजरात के अरवल्ली, महीसागर, दाहोद, पंचमहल, सूरत, बड़ोदरा, तापी, नवसारी, छोटा उदेपुर, नर्मदा, साबरकांठा, बनासकांठा और भरुच, मध्य प्रदेश के इंदौर, गुना, शिवपुरी, मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, देवास, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी, अलीराजपुर और महाराष्ट्र के नासिक, ठाणे, जलगांव, धुले, पालघर और नंदुरबार जिले शामिल हैं। भील प्रदेश की मांग क्यों उठ रही है?भील प्रदेश की मांग कर रहे लोगों का कहना है कि आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और सिंचाई जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी है। आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल किया जा रहा है और उनके जल-जंगल-जमीन के अधिकारों का हनन हो रहा है। उनका तर्क है कि भील प्रदेश का गठन इन समस्याओं का समाधान करेगा और पांचवीं-छठी अनुसूची के प्रावधान लागू करने में मदद करेगा। |
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