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Photograph: (the sootr)
रोहित पारीक @ अजमेर
राजस्थान के ग्रामीण इलाके के गंवई क्षेत्र में मेहनत-मजदूरी करने वाले रामलाल सैनी का दर्द है कि बेटे की शादी से पहले अपना छोटा सा घर बना लूंगा। यह सपना इसलिए भी है कि एक कमरे और रसोई के सहारे अपनी जिंदगी जी चुका रामलाल अपने घर में आने वाली दुल्हन के लिए सभी भौतिक सुविधाएं जुटाना चाह रहा है।
रामलाल ने वर्षों की कमाई जोड़कर यह सपना देखा था, लेकिन जब ईंटों के भाव पूछे तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। पहले जो हजार ईंटें 5000 रुपए में मिलती थीं, अब वही 6500 रुपए में मिल रही हैं। एक ट्रैक्टर ईंट मंगवाने पर उसे 3000-3500 रुपए ज्यादा चुकाने पड़ रहे हैं। रामलाल अब सोच में पड़ गया है कि घर बनाए या बेटे की शादी करे? केवल रामलाल ही नहीं, राजस्थान के सैकड़ों ऐसे रामलाल हैं, जो अपने सिर पर आशियाना सजाने की चाह में अब महंगाई के बोझ तले कमर को झुका रहे हैं।
ऐसा दर्द सिर्फ रामलाल का नहीं है, यह दर्द हर उस आम आदमी का है, जिसने पसीना बहाकर ईंट-पत्थर जोड़ने का सपना देखा था। राजस्थान सरकार ने ईंट-भट्ठों (Brick Kiln) से फैलने वाले प्रदूषण को थामने के लिए इस साल जनवरी में ईंट-भट्ठे साल में 9 महीने की बजाय केवल 6 माह चलाने का फरमान जारी कर दिया। यह अवधि भी जनवरी से जून तक तय की गई। जुलाई से दिसंबर तक उन पर ताला रहेगा। इस फैसले का असर सीधे बाजार पर पड़ा है। ईंटों की सप्लाई घट गई और दाम आसमान छूने लगे।
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ईंटों की कीमतों में हो गया इजाफा
राजस्थान सरकार के 22 जनवरी, 2025 के एक फैसले ने आम आदमी के आशियाने का सपना महंगा कर दिया है। सरकार के नए आदेश ने घर बनाने का सपना देख रहे लोगों की जेब पर बड़ा असर डाला है। अब ईंट-भट्ठों का संचालन साल में केवल 6 माह (1 जनवरी से 30 जून तक) ही होगा। वहीं 1 जुलाई से 31 दिसंबर तक फायरिंग पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। इस आदेश का असर जुलाई से साफ दिखने लगा है। नतीजा यह हुआ कि ईंटों की सप्लाई घट गई और बाजार में कीमतों में अचानक 1000 से 1700 रुपए प्रति हजार ईंट तक की बढ़ोतरी हो गई।
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अब कितना महंगा हुआ घर बनाना?
पहले 1000 ईंटें 5000 रुपए में मिलती थीं, अब 6500 रुपए तक। तूड़ी व लकड़ी से बनी ईंटें पहले 5000 की थीं, अब 6000 रुपए प्रति हजार। नतीजा, एक ट्रैक्टर ईंट मंगवाने पर आमजन को 3000 से 3500 रुपए अधिक चुकाने पड़ रहे हैं। इसका सीधा असर घर बनाने वाले परिवारों, मिस्त्रियों, ठेकेदारों और यहां तक कि सरकारी योजनाओं पर भी पड़ रहा है।
जेब खाली करने का फैसला
राजस्थान में ईंट बाजार पर ज्यादातर हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर और पंजाब व हरियाणा का कब्जा है। हालांकि राजस्थान के हर जिले में ईंट-भट्ठों का संचालन होता है और वहां बनी ईंटों से मध्यमवर्गीय परिवार अपने घर का सपना संजोते रहे हैं, लेकिन 70 प्रतिशत ईंट बाजार हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर और पंजाब व हरियाणा की ईंटों पर टिका है। सरकार के एक फैसले ने बीते लंबे समय से घर बनाने का मतलब सिर्फ चार दीवारें खड़ी करना नहीं किया, बल्कि जेब खाली करने को लेकर कर दिया।
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आधे साल के लिए छिन गई रोजी-रोटी
ईंट व्यापारी कुलदीप कुमावत कहते हैं कि सरकार के फैसले से पहले हजार ईंटें 5000 रुपए में मिलती थीं, लेकिन अब इनका दाम 6500 रुपए तक पहुंच गया है। तूड़ी व लकड़ी से बनी ईंटें भी 6000 रुपए प्रति हजार हो गई हैं यानी छोटा मकान बनाने में ही अब 30-35 हजार रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़ रहे हैं। यह रकम किसी गरीब के लिए सालभर की बचत होती है। सिर्फ घर बनाने वाले ही नहीं, बल्कि सैकड़ों मजदूर भी प्रभावित हुए हैं, जो इन भट्ठों पर काम कर अपने घर का चूल्हा जलाते थे। भट्ठे बंद होने से मजदूर गांव लौट गए। उनकी रोजी-रोटी आधे साल के लिए छिन गई है।
सरकार का दावा-प्रदूषण रोकने को कदम
सरकार कहती है कि यह कदम प्रदूषण रोकने के लिए है। मगर जनता पूछ रही है कि क्या प्रदूषण कम करने की कीमत सिर्फ गरीब और मध्यमवर्गीय आदमी ही चुकाए? क्या पर्यावरण बचाने के नाम पर हमारे सपनों का घर छीन लिया जाएगा? कुमावत कहते हैं कि सरकार के इस फैसले से प्रति ईंट डेढ़ रुपए का बोझ बढ़ गया है। ईंटों के दामों में उछाल के साथ निर्माण श्रमिकों की मजदूरी भी 800 से बढ़कर प्रतिदिन 1000 रुपए तक पहुंच गई है। पहले जहां 220 रुपए प्रति स्क्वायर फीट मजदूरी की दर थी, वहीं अब यह बढ़कर 270 से 300 रुपए हो गई है यानी प्रति मकान निर्माण पर अब डेढ़ लाख से अधिक राशि ज्यादा खर्च करनी पड़ रही है।
मजदूरों की रोजी-रोटी पर भी असर
चित्तौड़गढ़ जिले के करीब सवा सौ से अधिक ईंट-भट्ठों से बनी ईंटें न केवल जिले में, बल्कि प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, राजसमंद, सलूंबर और उदयपुर तक सप्लाई होती हैं। यहां करीब 10 से 15 हजार मजदूर काम करते थे, जो भट्ठों के बंद होते ही गांव लौट गए। अब वे 31 दिसंबर से पहले ही वापस लौटेंगे।
क्यों आई कमी?
इस बार मई में समय से पहले बारिश आ गई, जिससे भट्ठों का काम करीब 15 दिन पहले ही बंद करना पड़ा। स्टॉक कम होने से सप्लाई और भी घट गई। संचालकों के अनुसार, अब चूरू और हनुमानगढ़ से सस्ती ईंटें यहां लाई जा रही हैं। हालांकि उनकी क्वालिटी कम है, लेकिन बड़े निर्माण कार्यों में मजबूरी में उनका उपयोग किया जा रहा है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सख्ती
सरकार के आदेश अनुसार तय अवधि से बाहर यदि कोई ईंट-भट्ठा चलता मिला, तो उस पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जुर्माना और कानूनी कार्रवाई करेगा। अब लोगों के लिए घर बनाना ही नहीं, बल्कि हर तरह के निर्माण कार्य महंगे हो गए हैं। लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या पर्यावरण बचाने के लिए उठाया गया यह कदम आमजन की जेब पर कहीं भारी तो साबित नहीं हो जाएगा?
महंगाई से गड़बड़ाया बजट
सरकार का तर्क है कि प्रदूषण पर काबू पाने के लिए यह कदम उठाया गया है, लेकिन क्या पर्यावरण बचाने की कीमत सिर्फ आम आदमी ही चुकाएगा? मकान बनाने का सपना देख रहे लोग कहते हैं कि हमारे पास न तो महंगे फ्लैट खरीदने की ताकत है और ना ही बड़े कॉन्ट्रैक्टर को काम सौंपने के पैसे। अब अगर ईंट ही सोने के भाव बिकेंगी, तो गरीब और मध्यमवर्गीय आदमी अपना घर कैसे बनाएगा? किसी परिवार ने वर्षों की कमाई जोड़कर अपने सपनों का आशियाना बनाने की ठानी, लेकिन अब बजट गड़बड़ा गया है।
ठेकेदार और मिस्त्री भी परेशान
ठेकेदार और मिस्त्री भी परेशान हैं, क्योंकि काम तो करना है पर ग्राहक को यह महंगाई कैसे समझाएं? सोचिए, एक छोटा मकान बनाने में हजारों ईंटें लगती हैं, तो अब लोगों को हजारों रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़ेंगे। सरकार के आदेश अनुसार तय अवधि से बाहर यदि कोई ईंट-भट्ठा चलता मिला, तो उस पर कानूनी कार्रवाई होगी। पर कैसे यह कार्रवाई होगी, इसका जवाब न तो सरकारी तंत्र के पास है और ना ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का ऐसा कोई मैकेनिज्म है कि राजस्थान में चल रहे ईंट-भट्ठों तक पहुंच सके।
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