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Photograph: (the sootr)
जलवायु परिवर्तन से राजस्थान में बारिश की चाल बदल गई है। पश्चिम यानी रेगिस्तानी इलाकों, जहां बारिश का टोटा रहता था, वहां अब पूरब से अधिक पानी बरस रहा है। इस मानसून सीजन में पश्चिमी जिलों में पूरब से अधिक बारिश दर्ज की गई है।
यह स्थिति सिर्फ इस मानसून सीजन की नहीं है। पिछले डेढ़ दशक में राजस्थान में बारिश का पैटर्न तेजी से बदल रहा है। कभी सूखे के लिए जाना जाने वाला राजस्थान अब उतना सूखा नहीं रह गया है। राजस्थान अब उन चुनिंदा राज्यों में शामिल हो गया है, जहां सामान्य से ज्यादा बारिश हो रही है। प्रदेश में इस मानसून सीजन में अब तक 608.65 मिलीमीटर से अधिक बारिश हो चुकी है। यह सामान्य से 62.50 प्रतिशत से अधिक है।
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पश्चिमी राजस्थान में 68 फीसदी अधिक बारिश
अगर इसे क्षेत्रवार देखा जाए, तो पश्चिमी जिलों में पूर्वी हिस्से की अपेक्षा अधिक बरसात हुई है। पूर्वी राजस्थान में अब तक 840.2 मिमी बारिश हुई है, जो 534.8 मिमी औसत के मुकाबले 57 प्रतिशत अधिक है। इसके उलट, पश्चिमी राजस्थान में अब तक 407.2 मिमी पानी बरस चुका है। यह औसत 242.7 की अपेक्षा 68 प्रतिशत अधिक है। बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, जालोर, चूरू, हनुमानगढ़, नागौर, पाली और श्रीगंगानगर जिले पश्चिमी राजस्थान में माने जाते हैं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन का बारिश पर असर आया है।
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बन सकता है बारिश का नया रिकॉर्ड
मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में 2011 से लगातार किसी भी मौसम में सामान्य से कम वर्षा नहीं हुई है। इस दौरान सबसे कम बारिश 2018 में दर्ज की गई थी। तब राजस्थान में सिर्फ 393 मिमी पानी बरसा था। उस साल राजस्थान में माइनस 6 फीसदी बारिश दर्ज की गई थी। वहीं सबसे ज्यादा बारिश 2011 में 590 मिमी दर्ज की गई थी।
वर्तमान मानसून सीजन की बात करें तो राजस्थान में अब तक 608.65 मिमी बारिश दर्ज की चुकी है। मानसून वापसी में अभी कुछ दिन बाकी हैं, लेकिन मौसम विभाग का कहना है कि अभी प्रदेश में बारिश का सिस्टम पूरी तरह सक्रिय है। इस बार बारिश का नया रिकॉर्ड बन सकता है।
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तेजी से बदला बारिश का ट्रेंड
मौसम विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 1961 से 2010 और 1971 से 2020 के बीच 50 साल में राज्यों में बारिश के आंकड़े बदल गए हैं। कई राज्यों में जहां बारिश कम हुई है, वहीं कुछ में बढ़ी है। कहीं सामान्य बारिश दर्ज हुई है। राजस्थान उन प्रदेश में है, जहां बारिश का ट्रेंड सबसे ज्यादा और सबसे तेजी से बदला है। इस प्रदेश में बारिश का सबसे ज्यादा 10 से 33 फीसदी तक का इजाफा देखने को मिला है। जम्मू-कश्मीर, ओडिशा, पश्चिमी गुजरात और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में ट्रेंड जरूर बदला है, लेकिन राजस्थान जितना नहीं। मेघालय के चेरापूंजी में देश की सबसे ज्यादा बारिश होती थी। अब वहां पहले जैसी बारिश नहीं होती। पांच दशक में पूर्वोत्तर राज्यों में बारिश में 90 से 120 फीसदी की कमी आई है।
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बारिश का ऐसे बदल रहा ट्रेंड
वर्ष 2024 में एक जून से 30 सितंबर के बीच मानसून सीजन में पूरे राजस्थान में सामान्य से 56 फीसदी अधिक बारिश हुई। यहां 2024 में 678.4 मिलीमीटर बारिश हुई। इससे पहले 1917 में 844.2 मिमी और 1908 में 682.2 मिमी बारिश रिकॉर्ड की जा चुकी है। खास बात यह है कि पश्चिमी राजस्थान में सामान्य से 71 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है।
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इससे पहले 2022 में पूर्वी राजस्थान में निर्धारित आंकड़े से 25 प्रतिशत अधिक बारिश हुई, जबकि पश्चिमी राजस्थान में 58 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। वर्ष 2021 में पूर्वी राजस्थान में 16 प्रतिशत तथा पश्चिमी राजस्थान में 20 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई। 2020 में पूर्वी राजस्थान में माइनस 2 फीसदी बारिश हुई, जबकि पश्चिमी राजस्थान में 21 फीसदी ज्यादा बारिश हुई।
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बारिश वाले इलाके अब लगातार सूखाग्रस्त
रिपोर्ट के अनुसार, 1950 तक प्रतापगढ़, बांसवाड़ा और दक्षिणी राजस्थान के अन्य क्षेत्रों में अच्छी बारिश हुआ करती थी, जबकि जैसलमेर और उत्तरी राजस्थान के कई हिस्सों में लगभग सूखे जैसे हालात थे, लेकिन 1951 से 2015 की अवधि में यह तस्वीर बदल गई। अब जोधपुर, बीकानेर जैसे पश्चिमी-उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में दक्षिण-पूर्वी राजस्थान की तुलना में अधिक वर्षा होने लगी है। वहीं पहले अधिक वर्षा वाले दक्षिणी क्षेत्र अब लगातार सूखाग्रस्त होते जा रहे हैं। जयपुर और मध्य राजस्थान के अन्य इलाके, जो पहले सामान्य वर्षा क्षेत्र थे, अब सूखे की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं।
इसी तरह 1901 से 1951 की अवधि के दौरान पूर्वी-दक्षिणी प्रतापगढ़, उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और हाड़ौती क्षेत्र में सर्वाधिक वर्षा होती थी, लेकिन 1951 से 2015 की अवधि में यह प्रवृत्ति बदल गई। जोधपुर, चूरू, झुंझुनूं जैसे शुष्क क्षेत्रों को छोड़कर पूरे राज्य में वार्षिक मानसूनी वर्षा में गिरावट दर्ज की गई है। जैसलमेर व उसके आसपास के क्षेत्रों में गैर-मानसून वर्षा अपेक्षाकृत अधिक देखी जा रही है, जबकि हाड़ौती क्षेत्र में यह स्थिति लगभग समाप्त हो गई है।
बाढ़ के चलते घरों में घुसा केमिकल वाला पानी! मामला सिर्फ जोजरी का नहीं है, पूरे राजस्थान में नदियां प्रदूषित हो गई है
— Rajasthan Niti (@RajasthanNiti) September 5, 2025
जोजरी नदी के प्रदूषण ने पश्चिम राजस्थान में जो दर्दनाक तस्वीर पेश की, उसकी चर्चा पूरे देश में हुई. लेकिन यह मामला सिर्फ जोजरी तक सीमित नहीं है. जोजरी से लूणी तक… pic.twitter.com/YnOfBH8jI6
राजस्थान के लिए पानी का कितना महत्व है इस दृश्य से समझिए
— 🇮🇳Jitendra pratap singh🇮🇳 (@jpsin1) July 24, 2025
लूणी नदी जो एक बरसात में बनने वाली नदी है का पानी 22 जुलाई को जब गुड़ामलानी रतनपुरा गांव में पहुंचा तो लोगों ने पारंपरिक रस्म गुलाल चुनड़ी ओढ़ाकर स्वागत किया, pic.twitter.com/GlCFN4JfLF
जलवायु परिवर्तन से पैटर्न में आया बदलाव
राजस्थान में मौसम वैज्ञानिक राधेश्याम शर्मा का कहना है कि राजस्थान और पश्चिमी भारत में तापमान में बढ़ा है। इसके उलट पूर्वी भारत के राज्यों में कमी देखी गई है। यह जलवायु परिवर्तन का प्रभाव है। यह द्विध्रुवीय बदलाव का संकेत है यानी पूर्वी भारत में कम बारिश और पश्चिमी भारत में ज्यादा बारिश। यह आवश्यक नहीं है कि राजस्थान में अभी जो बारिश बढ़ रही है, वह आने वाले 10 से 50 साल में भी ऐसी रहेगी, लेकिन यह हकीकत है कि बारिश के पैटर्न में बदलाव आया है। भारी बारिश की घटनाएं भी बढ़ रही हैं, यह जलवायु परिवर्तन का ही हिस्सा है।
बदल रही जयपुर की जलवायु
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश के इस बदलते पैटर्न से प्रदेश की खेती में बदलाव आएगा। हाल ही में जोधपुर स्थित केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) ने प्रदेश के कृषि जलवायु जोन को करीब 46 साल बाद नए सिरे से परिभाषित किया है। उसने अपनी रिपोर्ट में अधिकतर जोन में आने वाले जिले और क्षेत्र बदल दिए हैं। यह रिपोर्ट लागू करने के लिए प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजी गई है। काजरी वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे कृषि नीति निर्धारण करने, फसल पैटर्न, सिंचाई, एमएसपी खरीद जैसे निर्णयों में बड़ा बदलाव आएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि जयपुर की जलवायु सीकर-झुंझनूं जैसी शुष्क हो गई है। अब जैसलमेर से अधिक बीकानेर रेगिस्तानी जिला है।
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