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Photograph: (the sootr)
रोहित पारीक @ अजमेर
सोचिए, अगर कोई व्यक्ति दोनों पैरों से दिव्यांग हो और उसे रोडवेज बस से सफर करना पड़े, तो उसके सामने कितनी मुश्किलें खड़ी होंगी। न बस स्टैंड पर व्हीलचेयर, ना प्लेटफॉर्म पर चढ़ने के लिए स्लोप और ना ही बस में चढ़ने के लिए रैंप या नीचे हैंडल। ऐसे में उसके पास एक ही विकल्प बचता है कि किसी की मदद लेना।
सवाल यह है कि जब राजस्थान रोडवेज (rajasthan roadways) की गाइडलाइन में स्पष्ट है कि दिव्यांग यात्रियों को ये सारी सुविधाएं मिलनी चाहिए, तो फिर ये सब कागजों में ही क्यों सिमटा हुआ है? पूरे राजस्थान में 52 डिपो संचालित कर रहे राजस्थान रोडवेज के पास इसका कोई जवाब नहीं है। जयपुर समेत प्रदेशभर के रोडवेज डिपो और बस स्टैंड पर दिव्यांगजन के लिए सुविधाओं का आज भी अभाव है।
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दिव्यांग बहनों के लिए कौनसी सुविधा?
सरकार हर साल रक्षाबंधन पर महिलाओं को दो दिन मुफ्त यात्रा का तोहफा देती है। बसों में खचाखच भीड़ रहती है। ऐसे में दिव्यांग बहनों के लिए अलग से व्यवस्था का सवाल उठना लाजिमी है। भीड़ भरी बसों में रैंप न होना, गेट के पास नीचे हैंडल ना होना दिव्यांग यात्रियों के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन जाते हैं।
5000 से ज्यादा बसें, लेकिन किसी में नहीं सुविधा
दिव्यांगों के लिए काम करने वाली संस्था स्वाबलंबन फाउंडेशन के डॉ. वैभव भंडारी कहते हैं कि राजस्थान में 5000 से अधिक बसें राज्य परिवहन विभाग और निजी ऑपरेटर चलाते हैं, लेकिन एक भी बस दिव्यांगों के अनुकूल नहीं है। व्हीलचेयर, रैंप या अनुकूल सीट जैसी सुविधाएं कहीं नहीं हैं। यही हाल अन्य राज्यों जैसे असम, उत्तराखंड और नागालैंड में भी है।
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2019 में आदेश, 2025 में भी हालात जस के तस
केंद्र सरकार ने 2019 में ही आदेश दिया था कि दिव्यांगों की सुविधाओं के बिना किसी भी बस को फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं दिया जाएगा, लेकिन राजस्थान की हकीकत ये है कि न रोडवेज और ना ही निजी बसों में इस आदेश की पालना हुई। न रैंप बनाए गए, ना हैंडल लगाए गए। राज्य में एक भी बस ऐसी नहीं है, जिसमें व्हीलचेयर उपयोगकर्ता आराम से यात्रा कर सके।
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कानून है, लेकिन पालना नहीं
केंद्रीय मोटरयान नियम 1989 और दिव्यांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम 2016 के तहत सार्वजनिक वाहनों को दिव्यांगजन-अनुकूल बनाना अनिवार्य है। इसके बावजूद हालात ज्यों के त्यों हैं। गाड़ियां प्लेटफॉर्म से दूर खड़ी की जाती हैं, जिससे दिव्यांग यात्रियों के लिए बस में चढ़ना ज्यादा कठिन हो जाता है।
2021 में नियम संशोधन केवल कागजों तक
मार्च, 2021 में राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम ने सभी जिला परिवहन अधिकारियों और फिटनेस सेंटरों को पत्र लिखकर निर्देश दिए थे कि बसों में व्हीलचेयर और बैसाखी रखने की अलग से जगह बनाई जाए। फिटनेस चेकलिस्ट में दिव्यांगों के लिए विशेष मापदंड जोड़े गए। नियमों के मुताबिक, बसों में व्हीलचेयर उपयोगकर्ताओं के लिए जगह और चढ़ने-उतरने की सुविधा होनी चाहिए। बैसाखी और अन्य उपकरण रखने के लिए स्थान तय होना चाहिए। सवाल वही है कि क्या किसी ने इन नियमों को जमीन पर उतारा? राजस्थान के 52 डिपो में से एक भी डिपो ऐसा नहीं है, जहां बसें इन मापदंडों पर खरी उतरती हों।
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दिव्यांगजन पूछते हैं, कब तक रहें सहारे पर?
नियम हैं, गाइडलाइन हैं, आदेश हैं। मगर सुविधा नहीं। नतीजा ये कि दिव्यांगजन हर सफर में अपनी गरिमा और आत्मनिर्भरता खो बैठते हैं। राजस्थान रोडवेज के 52 डिपो पर यह समस्या सालों से जस की तस बनी हुई है। अब सवाल यह है कि सरकार रक्षाबंधन जैसे मौकों पर मुफ्त यात्रा का तोहफा तो देती है, लेकिन दिव्यांगजन की बुनियादी यात्रा सुविधाओं पर कब ध्यान देगी?
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