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Photograph: (The Sootr)
राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ब्यावर विधायक शंकर सिंह रावत की पुत्री कंचन चौहान पर फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर राजकीय सेवा में नायब तहसीलदार के पद पर नियुक्ति पाने का गंभीर आरोप लगा है। इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से शिकायत की गई है। शिकायतकर्ता फणीश कुमार सोनी ने इस संदर्भ में संयुक्त शासन सचिव (जेएसएआर) से मेल के जरिए शिकायत की, जिसके बाद मामले की जांच की दिशा तय की गई।
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विधायक शंकर सिंह रावत की पुत्री की क्या शिकायत की गई?
शिकायत में कहा गया है कि कंचन चौहान ने राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) द्वारा आयोजित आरएएस भर्ती परीक्षा में फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर नायब तहसीलदार के पद पर नियुक्ति प्राप्त की थी। उन्होंने बधिरता के प्रमाण पत्र का उपयोग किया था, जिसमें यह दावा किया गया था कि वह 40 प्रतिशत या उससे अधिक बधिर हैं।
यह मामला तब सामने आया, जब शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि कंचन चौहान ने दिव्यांगता प्रमाण पत्र में झूठी जानकारी दी, जिससे उन्हें राज्य की राजकीय सेवा में नियुक्ति प्राप्त हुई। शिकायत के बाद, अधिकारियों ने मामले की जांच शुरू की और इसे गंभीरता से लिया।
इस मामले में विधायक शंकरसिंह रावत ने आरोपों को निराधार बताया है। उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ता जमीनी मामले में नियम विरुद्ध मदद की उम्मीद लेकर आया, लेकिन गलत काम नहीं किया। इसको लेकर रंजिश में ऐसी शिकायत कर रहे हैं।
निदेशालय विशेष योग्यजन ने लिखा रजिस्ट्रार को पत्र
मामले की गंभीरता को देखते हुए, निदेशालय विशेष योग्यजन के अतिरिक्त निदेशक चन्द्रशेखर चौधरी ने राजस्व बोर्ड अजमेर के रजिस्ट्रार को इस मामले में कार्रवाई करने का निर्देश दिया। रजिस्ट्रार को इस मामले में उचित जांच करने और निदेशालय को जानकारी भेजने के लिए कहा गया है।
अधिकारियों ने अब यह निर्णय लिया है कि कंचन चौहान की दिव्यांगता की जांच की जाएगी। यह जांच की जाएगी कि क्या वह वास्तव में 40 प्रतिशत या उससे अधिक बधिर हैं, जैसा कि उनके दिव्यांगता प्रमाण पत्र में दावा किया गया है।
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फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र मामले में क्या बोलीं विधायक शंकर सिंह रावत की पुत्री?
कंचन चौहान पर लगाए गए आरोपों के बारे में जब उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने फोन नहीं उठाया। इस समय वह राजस्थान के करेड़ा तहसील में कार्यवाहक तहसीलदार के पद पर कार्यरत हैं, जहां उन्हें सितंबर 2024 में नियुक्त किया गया था। उनका कार्यक्षेत्र बधिरता प्रमाण पत्र पर आधारित है, जिस पर जांच की जाएगी।
यह मामला अब प्रशासन और सरकार के लिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि यह दर्शाता है कि कैसे कुछ लोग फर्जी प्रमाण पत्रों का उपयोग कर सरकारी नौकरियों में नियुक्ति पा सकते हैं। ऐसे मामलों में जल्दी और सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि इस प्रकार की धोखाधड़ी को रोका जा सके।
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कंचन चौहान कौन हैं?ब्यावर के हाउसिंग बोर्ड, चौधरी कॉलोनी में रहने वाली कंचन चौहान पूर्व में महिला एवं बाल विकास में सुपरवाइजर थी। उनके पति उपमन्यु चौहान सरकारी सेवा में ग्रामसेवक हैं। उनके पिता शंकर सिंह रावत ब्यावर से भाजपा विधायक हैं। इस समय वह राजस्थान के करेड़ा तहसील में कार्यवाहक तहसीलदार के पद पर कार्यरत हैं, जहां उन्हें सितंबर 2024 में नियुक्त किया गया था। | |
राजस्थान में दिव्यांगता प्रमाण पत्र के नियम और शर्तें
राजस्थान में दिव्यांगता प्रमाण पत्र जारी करने के लिए कुछ स्पष्ट नियम और शर्तें होती हैं। दिव्यांगता की प्रतिशतता का निर्धारण मेडिकल बोर्ड द्वारा किया जाता है, और यह प्रमाण पत्र केवल वही लोग प्राप्त कर सकते हैं जो चिकित्सा रूप से प्रमाणित हों। बधिरता का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को यह साबित करना होता है कि वह सुनने में सक्षम नहीं है या उसकी सुनने की क्षमता 40 प्रतिशत या उससे अधिक प्रभावित है। राजस्थान में फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र की जांच की जा रही है।
राजस्थान फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र मामला न केवल सरकारी सेवा के नियमों का उल्लंघन करता है, बल्कि यह उन वास्तविक व्यक्तियों के लिए भी अन्यायपूर्ण होता है जो अपनी स्थिति के कारण उचित रूप से लाभ उठाने के योग्य हैं। इसलिए इस मामले में जांच की आवश्यकता है कि कंचन चौहान द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रमाण पत्र सही था या नहीं।
फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र मामले में प्रशासनिक जवाबदेही क्या है?
प्रशासनिक अधिकारियों पर यह जिम्मेदारी है कि वे इस प्रकार के मामलों में कड़ी कार्रवाई करें। अगर किसी ने फर्जी दस्तावेज़ के आधार पर सरकारी सेवा में प्रवेश किया है, तो उसे तुरंत निलंबित किया जाना चाहिए और मामले की गहन जांच की जानी चाहिए। इस प्रकार के मामलों में प्रशासनिक जवाबदेही का पालन करते हुए, निष्पक्ष जांच और सजा का प्रावधान होना चाहिए।
राज्य सरकार को राजस्थान में फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र से नौकरी मामलों में नागरिकों को जागरूक करना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति इस प्रकार के धोखाधड़ी के रास्ते पर न चले। साथ ही, सरकारी सेवा में नियुक्ति के लिए जरूरी दस्तावेजों की जांच के दौरान अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए।
राजस्थान में बेरोजगारी और सरकारी नौकरी के हालात क्या हैेंराजस्थान में लगभग 28% आबादी युवा (15-29 वर्ष) है। कामकाजी आयु वाली जनसंख्या 2021 में 4.9 करोड़ थी, जो हर साल बढ़ती जा रही है। 2025 में राजस्थान में शहरी इलाकों में युवाओं की बेरोजगारी दर 16.1% पहुंच गई है, जो पूरे भारत (6.4%) से कहीं ज्यादा है। औसतन, राजस्थान की कुल बेरोजगारी दर लगभग 4.9% से 5.1% है, लेकिन युवाओं में यह दर 12-16% तक रह रही है। अनुमान है कि हर साल राजस्थान में लाखों नए युवा रोजगार बाजार में आते हैं। केवल 2025 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बेरोजगार युवाओं की संख्या लाखों में है, जिसमें हर वर्ष 8-10 लाख नए नाम जुड़ जाते हैं। सरकारी नौकरियों की उपलब्ध संख्या की तुलना में, एक ही भर्ती परीक्षा में लाखों युवा आवेदन करते हैं। बड़ी संख्या में बेरोजगार युवा हर साल परीक्षा के बाद भी चयन प्रक्रिया में रह जाते हैं। राजस्थान में बेरोजगारी के मुख्य कारण
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ब्यावर विधायक शंकर सिंह रावत की पुत्री का फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र मामला क्या है?
शिकायतकर्ता सोनी ने बताया कि कंचन चौहान द्वारा फर्जी और जाली बधिर दिव्यांग प्रमाणपत्र के आधार पर सरकारी नौकरी प्राप्त की। विधायक इस प्रकरण में स्वयं को निर्दोष बताते हुए यह कहते हैं कि उन पर झूठा आरोप है और यदि अपने रसूख और पहुंच का दुरुपयोग नहीं किया है, तो यह स्पष्ट हो कि कंचन चौहान ने जिस नवोदय विद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है। जिस विश्वविद्यालय (उदयपुर) से डिग्री प्राप्त की है। जिस वर्ष और जिस संस्थान (मुखर्जी नगर, दिल्ली) में प्रतियोगी परीक्षा की कोचिंग ली है वहां उसकी दिव्यांगत का उल्लेख है या नहीं। 2018 से पहले भरे हुए यूपीएससी के फार्म व और सबसे महत्वपूर्ण इनमें बधिरता किस वर्ष से उत्पन्न हुई है? इसका खुलासा होना चाहिए। कंचन चौहान का नया मेडिकल परीक्षण किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में गठित मेडिकल बोर्ड द्वारा कराया जाना आवश्यक है। यह न केवल सरकारी नौकरी में ईमानदारी और पारदर्शिता की रक्षा का विषय है, बल्कि बेरोजगार और योग्य अभ्यर्थियों के साथ न्याय का भी प्रश्न है। अत: इस गंभीर प्रकरण पर त्वरित संज्ञान लेते हुए निष्पक्ष और उच्च-स्तरीय जांच हो, क्यों कि जिन डॉक्टर ने फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट बनाया वो स्वेच्छिक सेवानिवृति ले चुके हैं।
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