राजस्थान में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र से कर रहे नौकरी, अब पड़ेगा भुगतना, जानें पूरा मामला और कैसे हुआ खुलासा

राजस्थान में दिव्यांग (Divyang) कोटे से सरकारी नौकरी पाने वाले कई कर्मचारी फर्जी मेडिकल रिपोर्ट के साथ पाए गए हैं। 29 में से केवल 5 सही दिव्यांग।

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Nitin Kumar Bhal
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Photograph: (The Sootr)

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राजस्थान (Rajasthan) में दिव्यांग कोटे (Divyang quota) के तहत सरकारी नौकरियों में नियुक्ति पाने वाले कर्मचारियों की मेडिकल रिपोर्ट ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। राज्य सरकार द्वारा नियुक्त मेडिकल बोर्ड ने इन कर्मचारियों की जांच की तो परिणाम चौंकाने वाले रहे। पहले चरण में 29 कर्मचारियों की जांच रिपोर्ट जारी की गई, जिनमें से केवल 5 कर्मचारियों को ही दिव्यांग श्रेणी में योग्य पाया गया, जबकि 24 कर्मचारी फर्जी पाए गए। यह मामला उन लोगों के लिए एक चेतावनी है जो सरकारी नौकरी में दिव्यांग कोटे का लाभ उठाने के लिए फर्जी प्रमाणपत्र का सहारा लेते हैं।

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क्या है दिव्यांग कोटे से सरकारी नौकरी पाने की प्रक्रिया?

राजस्थान में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए एक विशेष कोटा तय किया गया है, जिसके तहत उन्हें सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्राप्त होता है। यह कोटा उन लोगों के लिए है, जो शारीरिक रूप से विकलांग हैं और जिन्हें समाज में बराबरी का अधिकार नहीं मिल पाता। सरकार ने उन्हें रोजगार के अवसर देने के लिए इस कोटे की शुरुआत की। दिव्यांग श्रेणी के तहत आने वाले उम्मीदवारों को नौकरी पाने में कई प्रकार की रियायतें दी जाती हैं, लेकिन इस सुविधा का दुरुपयोग न हो, इसके लिए कड़ी जांच भी की जाती है।

क्या थी दिव्यांग कोटे के जांच की प्रक्रिया?

राज्य सरकार द्वारा मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि दिव्यांग कोटे से नौकरी प्राप्त करने वाले सभी कर्मचारी वास्तव में विकलांग हैं या नहीं। इस जांच में कई कर्मचारियों के प्रमाणपत्रों को भी खारिज किया गया है, क्योंकि ये फर्जी पाए गए थे। बोर्ड ने विभिन्न श्रेणियों जैसे बधिरता, दृष्टिहीनता और लोकोमोटर विकलांगता (Locomotor disability) पर कर्मचारियों की जांच की और तय किया कि वे वास्तव में दिव्यांग हैं या नहीं।

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मेडिकल रिपोर्ट में फर्जी प्रमाणपत्रों की पुष्टि

पहली खेप में 29 कर्मचारियों की मेडिकल रिपोर्ट आई, जिनमें से 24 कर्मचारियों के प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए। सबसे बड़ी संख्या बधिरता (Hearing impairment) श्रेणी के कर्मचारियों की थी। इनमें से 13 कर्मचारी ऐसे थे जिन्हें आयोग्य (Ineligible) पाया गया, और वे अपने प्रमाणपत्रों को सही साबित नहीं कर सके। इसी तरह, दृष्टिहीनता (Visual impairment) श्रेणी में 6 और लोकोमोटर श्रेणी में 5 कर्मचारी आयोग्य पाए गए। यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन कर्मचारियों ने दिव्यांग कोटे का लाभ उठाकर सरकारी नौकरियों में भर्ती होने की कोशिश की थी, जबकि उनकी शारीरिक स्थिति इसके लिए उपयुक्त नहीं थी।

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दिव्यांग कोटे में कौन से कर्मचारी फर्जी पाए गए?

मेडिकल बोर्ड की जांच में जो कर्मचारी फर्जी पाए गए, उनमें से कई उच्च पदों पर कार्यरत थे। इन कर्मचारियों में सहायक प्राध्यापक महेन्द्रपाल, सवाई सिंह गुर्जर, हंटु गुर्जर, मनीष कटारा, बिकेश कुमार, भानुप्रताप, रणजीत सिंह, विनोद कंवर शेखावत जैसे नाम शामिल थे। इनके अलावा, स्टेनोग्राफर केशव व कविता यादव, कनिष्ठ सहायक नफीस, वीडीओ पवन कुमार जैसे कर्मचारियों के प्रमाणपत्र भी फर्जी पाए गए।

35 कर्मचारियों की मेडिकल रिपोर्ट अभी बाकी

राज्य सरकार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए आगामी दिनों में और कर्मचारियों की मेडिकल रिपोर्ट आने का दावा किया है। फिलहाल, 35 कर्मचारियों की मेडिकल रिपोर्ट अभी बाकी है। इसके बाद राज्य सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाएगा कि ऐसे कर्मचारियों को दंडित किया जाए और दिव्यांग कोटे का गलत फायदा उठाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। साथ ही, जो लोग वाकई दिव्यांग हैं, उन्हें सही तरीके से नौकरी मिल सके, यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

सीएस ने फर्जी प्रमाणपत्र मामले में यह दिए आदेश

मुख्य सचिव आईएएस सुधांशु पंत (Chief Secretary Sudhanshu Pant) ने अस्पतालों को सख्ती से जांच के निर्देश दिए हैं। वहीं, विभागीय सचिव आईएएस राजेश अग्रवाल (Rajesh Agrawal) ने अधिकारियों की लापरवाही पर चिंता जताई। अब मेडिकल कॉलेज स्तर पर विशेषज्ञों के बोर्ड गठन के निर्देश दिए गए हैं, जिससे प्रमाण-पत्र में पारदर्शिता बनी रहे।

फर्जी प्रमाण पत्र से किसे है खतरा?

  • जो असली दिव्यांग (Real Disabled People) हैं, उनका हक मारा जा सकता है।

  • सरकारी व्यवस्था पर जनता का भरोसा (Trust) कमजोर हो रहा है।

  • फर्जी प्रमाण-पत्र बनवाने वालों पर कानूनी शिकंजा कस रहा है।

समाधान और सुझाव

सरकार को चाहिए कि हर प्रमाण-पत्र का डिजिटल सत्यापन हो। साथ ही, दोषी डॉक्टर, कर्मचारी एवं अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए। जनता को भी सजग रहना होगा और फर्जीवाड़ा दिखने पर तुरंत शिकायत करनी चाहिए।

राजस्थान में बेरोजगारी और सरकारी नौकरी के हालात क्या हैें

राजस्थान में लगभग 28% आबादी युवा (15-29 वर्ष) है। कामकाजी आयु वाली जनसंख्या 2021 में 4.9 करोड़ थी, जो हर साल बढ़ती जा रही है। 2025 में राजस्थान में शहरी इलाकों में युवाओं की बेरोजगारी दर 16.1% पहुंच गई है, जो पूरे भारत (6.4%) से कहीं ज्यादा है। औसतन, राजस्थान की कुल बेरोजगारी दर लगभग 4.9% से 5.1% है, लेकिन युवाओं में यह दर 12-16% तक रह रही है। अनुमान है कि हर साल राजस्थान में लाखों नए युवा रोजगार बाजार में आते हैं। केवल 2025 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बेरोजगार युवाओं की संख्या लाखों में है, जिसमें हर वर्ष 8-10 लाख नए नाम जुड़ जाते हैं। सरकारी नौकरियों की उपलब्ध संख्या की तुलना में, एक ही भर्ती परीक्षा में लाखों युवा आवेदन करते हैं। बड़ी संख्या में बेरोजगार युवा हर साल परीक्षा के बाद भी चयन प्रक्रिया में रह जाते हैं।

राजस्थान में बेरोजगारी के मुख्य कारण

  • अधिक आवेदक, कम पद: सरकारी नौकरियों की अपेक्षा, युवाओं का अनुपात अत्यधिक है।
  • निजी क्षेत्र की सीमाएं: निजी क्षेत्र की नौकरियां अपेक्षाकृत कम और अस्थायी हैं।
  • स्किल गैप: कई युवा शिक्षा या कौशल की कमी के कारण योग्य नहीं हो पाते।
  • फर्जी प्रमाण-पत्र: कुछ युवा गलत तरीके अपनाते हैं, जिससे असली जरूरतमंद वंचित हो जाते हैं।

फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्र मामले की गंभीरता और इसके प्रभाव

क्यों है यह मामला चिंता का विषय?

दिव्यांग कोटे के तहत सरकारी नौकरियां प्रदान करने का उद्देश्य समाज के कमजोर और असहाय वर्गों को आर्थिक व सामाजिक रूप से सशक्त बनाना है। जब इस व्यवस्था का दुरुपयोग फर्जी सर्टिफिकेट के माध्यम से होता है, तो वास्तविक दिव्यांगों के अधिकारों का हनन होता है।

यह स्थिति सरकारी तंत्र की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाती है। सरकारी संसाधनों का गलत उपयोग और प्रशासनिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार इस तरह के मामलों से सामने आता है।

भ्रष्टाचार का सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव

  • वास्तविक दिव्यांग लाभ से वंचित रह जाते हैं।

  • सरकारी नौकरी में गलत तरीके से नियुक्त कर्मचारियों के कारण कार्यक्षमता प्रभावित होती है।

  • पदों की उपलब्धता कम हो जाती है, जिससे सरकारी कामकाज बाधित होता है।

  • समाज में विश्वास की कमी होती है।

इस समस्या से निपटने के लिए उठाए गए कदम

1. मेडिकल बोर्ड जांच में सख्ती और पारदर्शिता

सरकार ने मेडिकल बोर्ड की जांच प्रक्रिया को और अधिक सख्त कर दिया है। मेडिकल रिपोर्ट को सत्यापन के लिए उच्च स्तरीय जांच विभागों को सौंपा गया है।

2. फर्जीवाड़े के खिलाफ राजकीय स्तर पर कानूनी कार्रवाई

फर्जी प्रमाणपत्रों के मामले में संबंधित कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई शुरू की जा रही है। इनमें नौकरी से बर्खास्तगी और कानूनी मुकम्मल कार्रवाई शामिल है।

3. दिव्यांगों की सहायता और जागरूकता

सरकारी विभाग दिव्यांग लोगों को जागरूक कर रहा है कि वे फर्जी दस्तावेजों के दुष्परिणामों से बचें और केवल सही तरीके से आवेदन करें।

4. भविष्य में रोकथाम के उपाय

ऑनलाइन डाटाबेस और डिजिटल मेडिकल रिपोर्ट प्रणाली को अपनाकर दस्तावेजों के सत्यापन में तेजी और पारदर्शिता लाई जा रही है।

FAQ

1. राजस्थान में दिव्यांग कोटे में कितने कर्मचारी फर्जी पाए गए हैं?
पहली जांच में 29 में से 24 कर्मचारी फर्जी (Fake) मेडिकल रिपोर्ट के साथ पाए गए हैं।
2. राजस्थान में किस दिव्यांग वर्गों में सबसे अधिक फर्जी प्रमाणपत्र पाए गए?
सबसे अधिक फर्जी प्रमाणपत्र श्रवण बाधित श्रेणी में पाए गए हैं।
3. राजस्थान में दिव्यांग कोटा फर्जीवाड़े की जांच कैसे की जा रही है?
राजस्थान सरकार ने मेडिकल बोर्ड के माध्यम से सख्त जांच और सत्यापन की प्रक्रिया शुरू की है।
4. राजस्थान में दिव्यांग कोटा फर्जी सर्टिफिकेट मिलने पर क्या कार्रवाई होती है?
ऐसे कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त किया जाता है और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी होती है।
5. राजस्थान में दिव्यांग कोटा फर्जी सर्टिफिकेट समस्या से कैसे निपटा जा रहा है?
मेडिकल जांच प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाया जा रहा है, डिजिटल सत्यापन प्रणाली लागू की जा रही है, और जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।

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