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Photograph: (The Sootr)
रोहित पारीक @ अजमेर
राजस्थान सरकार के हरियालो राजस्थान अभियान ने आंकड़ों में तो बुलंदी छू ली हैं, लेकिन जियो टैगिंग की सच्चाई इन दावों पर सवाल खड़े कर रही है। शिक्षा विभाग का कहना है कि प्रदेश के 66,853 विद्यालयों में अब तक 5 करोड़ 24 लाख 10 हजार पौधे लगाए गए हैं। मगर इनमें से केवल 2 करोड़ 13 लाख 68 हजार पौधों की जियो टैगिंग हो पाई है। यानी, करीब 57 प्रतिशत पौधों का डिजिटल रिकॉर्ड ही नहीं है।
हरियालो राजस्थान अभियान के पौधों के अस्तित्व पर संदेह
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की पहल हरियालो राजस्थान अभियान में बिना जियो टैगिंग वाले लगभग 3 करोड़ पौधों की स्थिति को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं। क्या ये पौधे वास्तव में लगाए गए हैं? अगर लगाए गए तो उनकी देखभाल कौन कर रहा है? और यदि जियो टैगिंग नहीं है तो निगरानी और सत्यापन कैसे संभव होगा? यही वजह है कि अभियान की पारदर्शिता अब चर्चा का विषय बन गई है।
जियो टैगिंग एक तकनीक है, जिसके जरिए किसी पौधे की सटीक लोकेशन और स्थिति का डिजिटल सबूत तैयार होता है। फोटो खींचते समय पौधे के साथ उसका अक्षांश और देशांतर भी दर्ज हो जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि पौधा वास्तव में लगाया गया है और उसकी देखभाल हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि जियो टैगिंग पारदर्शिता और जवाबदेही की कुंजी है।
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राजस्थान सरकार का हरियालो राजस्थान अभियान क्या है ?राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने राज्यव्यापी हरित अभियान की शुरुआत करते हुए मिशन हरियालो राजस्थान के तहत पाँच वर्षों में 50 करोड़ पेड़ लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
अभियान का लक्ष्य
शहरी वन पहल
अन्य संरक्षण प्रयास
अभियान के दीर्घकालिक लाभ
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हरियालो राजस्थान में जिलों की रैंकिंग क्या है ?
राज्य सरकार ने जियो टैगिंग (Geo-tagging) के आधार पर जिलों की रैंकिंग भी जारी की है। भरतपुर (Bharatpur), डीग (Deeg), और भीलवाड़ा (Bhilwara) ने इस प्रक्रिया में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है।
भरतपुर (Bharatpur) ने 7,87,393 पौधों में से 7,63,987 पौधों की जियो टैगिंग की, जो कि 97% है।
डीग (Deeg) में 5,89,220 में से 5,68,775 पौधे टैग हुए हैं।
भीलवाड़ा (Bhilwara) में 22,28,036 में से 18,57,516 पौधों की जियो टैगिंग की गई है।
वहीं, बांसवाड़ा (Banswara), प्रतापगढ़ (Pratapgarh), और धौलपुर (Dholpur) जैसे जिलों में प्रदर्शन कमजोर रहा है, जहां जियो टैगिंग की प्रक्रिया ठीक से लागू नहीं हो पाई है।
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हरियालो राजस्थान अभियान में कमजोर जिले
राज्य के कुछ जिले जैसे बांसवाड़ा (Banswara), प्रतापगढ़ (Pratapgarh), और धौलपुर (Dholpur) इस अभियान में पीछे हैं। इन जिलों में जियो टैगिंग की प्रक्रिया धीमी रही है, और पौधों के अस्तित्व पर सवाल उठ रहे हैं। यह समस्या इस बात को उजागर करती है कि जियो टैगिंग (Geo-tagging) के बिना अभियान की सफलता पर संदेह हो सकता है।
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सख्ती से लागू हो जियो टैगिंग की प्रक्रिया
राज्य के विशेषज्ञों का मानना है कि अगर राज्य सरकार (State Government) जियो टैगिंग की प्रक्रिया को सख्ती से लागू करती है, तो पौधारोपण अभियान की पारदर्शिता और साख (Credibility) दोनों में सुधार हो सकता है। अगर यह प्रक्रिया ठीक से लागू नहीं होती, तो यह अभियान "फोटो खिंचवाने और रिपोर्ट बनाने" तक ही सीमित रह जाएगा। राजस्थान के वन मंत्री संजय शर्मा और राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को हरियालो राजस्थान की स्थिति पर ध्यान देना होगा।
हरियालो राजस्थान अभियान की साख दांव पर
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकार जियो टैगिंग की प्रक्रिया को सख्ती और प्राथमिकता से लागू करे, तो पौधारोपण अभियान की साख और पारदर्शिता दोनों मजबूत होंगी। वरना यह योजना केवल "फोटो खिंचवाने और रिपोर्ट बनाने" तक सीमित रह जाएगी। हरियालो राजस्थान का असली हरा भविष्य तभी सुनिश्चित होगा, जब पौधे सिर्फ लगाए ही नहीं जाएंगे, बल्कि उनका डिजिटल सबूत और जीवित रहना भी तय होगा।
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