जयपुर में ऐतिहासिक ज्यौणार, एक साथ दाल-बाटी-चूरमा जीम रहे 50 हजार लोग

जयपुर शहर में इस तरह की ज्यौणार 110 साल बाद हुई। सांगानेरी गेट स्थित अग्रवाल कॉलेज परिसर में सुबह से जयपुरवासियों ने दाल-बाटी-चूरमे का लुत्फ उठाना शुरू किया।

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Amit Baijnath Garg
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राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर अपनी सदियों पुरानी ज्यौणार परंपरा को जीने के लिए रविवार को तैयार रहा। राजा-महाराजाओं के दौर की इस भव्य रसोई को फिर से जीवंत किया गया। जयपुर में मां अन्नपूर्णा का जयकारा लगाते हुए 50 हजार शहरवासी एक साथ जीमण कर रहे हैं। यह कार्यक्रम सुबह 9 बजे से शुरू हुआ। इस आयोजन के लिए 17 हजार 300 किलो सामग्री से दाल-बाटी-चूरमा तैयार किया गया।

दुनिया भर में प्रसिद्ध जयपुर की ज्यौणार 

हेरिटेज निगम महापौर कुसुम यादव ने बताया कि रविवार को दुनिया भर में प्रसिद्ध जयपुर की ज्यौणार का आयोजन किया जा रहा है। इसमें सुबह 9 बजे से पूरा शहर एक साथ बैठकर जीमण कर रहा है। ये ज्यौणार राजाओं के जमाने में होती थी और अब 11 दशक बाद इसका आयोजन हुआ। इसमें करीब 50 हजार जयपुरवासी राजस्थानी भोजन दाल-बाटी-चूरमा का जीमण कर रहे हैं। व्यवस्था के नजरिए से शहर भर में कूपन बंटवाए गए थे।

पूरी गुलाबी नगरी हो रही शामिल

इस आयोजन में शहर के सभी व्यापार मंडल, समाजों के प्रमुख, मंदिर-मठों के प्रतिनिधि, साधुसंत और आमजन शामिल हुए। ये जयपुर की परंपरा रही है कि जब राजा-महाराजा कोई युद्ध जीत कर आते थे या कोई खुशी का अवसर होता था, तो इसी तरह का आयोजन किया जाता था। उसी परंपरा को राजस्थान सरकार के डेढ़ साल की उपलब्धियों को प्रदर्शित करते हुए निभाया जा रहा है।

इस तरह बन रहा भोजन

ज्यौणार में 17,300 किलो सामग्री से दाल-बाटी-चूरमा तैयार किया गया। इन्हें बनाने में 12,500 किलो बेसन और आटा, 160 पीपा गाय का घी, 1,500 किलो दाल, 1,200 किलो मावा और 1,200 किलो शक्कर का उपयोग किया गया। 

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ऐसी रही पार्किंग की व्यवस्था 

ज्यौणार के दिन यानी कि रविवार को दोपहिया वाहन घाटगेट स्कूल में पार्क किए गए। इसके अलावा संजय बाजार, घाटगेट, रामनिवास बाग, रामलीला मैदान में चौपहिया वाहन पार्क किए गए। निशक्तजनों के लिए व्हीलचेयर की व्यवस्था की गई। वहीं वृद्धजनों के लिए 50 ई-रिक्शा भी अग्रवाल कॉलेज परिसर में लगाए गए।

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ज्यौणार के लिए भोजन तैयार करते हलवाई। Photograph: (the sootr)

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FAQ

1. जयपुर में ज्यौणार की परंपरा कब से चली आ रही है?
जयपुर में ज्यौणार की परंपरा राजा-महाराजाओं के समय से चली आ रही है। जब कोई युद्ध जीतने के बाद खुशी का मौका होता था, तो शहरवासियों के साथ दाल-बाटी-चूरमा जैसे पारंपरिक व्यंजन वितरित किए जाते थे।
2. इस आयोजन में कितनी सामग्री का उपयोग किया गया?
इस आयोजन के लिए कुल 17,300 किलो सामग्री का उपयोग किया गया, जिसमें 12,500 किलो बेसन, 1,600 पीपे गाय का घी, 1,500 किलो दाल, 1,200 किलो मावा और 1,200 किलो शक्कर शामिल थे।
3. ज्यौणार के आयोजन के लिए पार्किंग की व्यवस्था कैसे की गई थी?
ज्यौणार के आयोजन के दौरान, दोपहिया वाहनों के लिए घाटगेट स्कूल में पार्किंग की व्यवस्था की गई थी, जबकि चौपहिया वाहनों के लिए संजय बाजार, घाटगेट, रामनिवास बाग और रामलीला मैदान में पार्किंग की सुविधा दी गई थी। इसके अलावा, वृद्धजनों के लिए 50 ई-रिक्शा की व्यवस्था भी की गई थी।

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