जय ड्रिंक्स की सब-लीज ही गैर-कानूनी, तो ज्वैल्स ऑफ इंडिया भी अवैध, बड़ा सवाल-फिर कैसे मिल गया पट्टा

राजनीतिज्ञों व अफसरों के गठजोड़ से बेशकीमती सरकारी जमीन को कैसे हड़पा जाता है, इसका राजस्थान के जयपुर का ज्वैल्स ऑफ इंडिया अपार्टमेंट नायाब नमूना है। इस जमीन को बहुत ही धैर्य के साथ शातिराना अंदाज में हड़पा गया है।

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Amit Baijnath Garg
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जयपुर का ज्वैल्स ऑफ इंडिया अपार्टमेंट Photograph: (the sootr)

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मुकेश शर्मा @ जयपुर

राजस्थान में राजधानी जयपुर के जेएलएन मार्ग पर अरबों रुपए की सरकारी जमीन पर बना आलीशान ज्वैल्स ऑफ इंडिया अपार्टमेंट पूरी तरह गैर-कानूनी है। राजनीतिज्ञों व अफसरों के गठजोड़ से बेशकीमती सरकारी जमीन को कैसे हड़पा जाता है, इसका यह नायाब नमूना है। जेडीए के तत्कालीन विधि निदेशक दिनेश गुप्ता की इस मामले में विस्तृत विधिक राय बताती है कि सरकार की इस जमीन को हड़पने के लिए बहुत ही शातिराना अंदाज में बेहद धैर्य के साथ ​काम को अंजाम दिया गया।  

जिस जमीन पर ज्वैल्स ऑफ इंडिया अपार्टमेंट जयपुर की आलीशान इमारत खड़ी है, वह उस 205 बीघा 3 बिस्वा सरकारी जमीन का हिस्सा है, जो इंडस्ट्री लगाने के लिए कैपस्टन मीटर को 1965 में लीज पर दी गई थी। लीज डीड की शर्त के अनुसार कैपस्टन मीटर को दो साल के भीतर जमीन पर फैक्ट्री शुरू करनी थी। लीज डीड की शर्त और तत्कालीन कानून के अनुसार दो साल में फैक्ट्री नहीं लगने पर जमीन वापस सरकार के पास चली जानी चाहिए थी, लेकिन कैपस्टन मीटर ने जमीन लेने के बाद 60 साल बाद भी इस जमीन पर फैक्ट्री तो लगाई नहीं, बल्कि अपने परिवार की कंपनी जय ड्रिंक्स को जमीन का कुछ हिस्सा गैर-कानूनी तरीके से सब-लीज पर दे दिया। 

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सरकारी मिलीभगत से कानून रखा ताक पर

जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) के तत्कालीन विधि निदेशक दिनेश गुप्ता की राय के अनुसार, कानून के अनुसार व लीज डीड की शर्त के अनुसार दो साल में इंडस्ट्री नहीं लगाने पर सरकार को बिना इस बात की चिंता किए कि सब-लीज वाले ने जमीन का औद्योगिक इस्तेमाल किया है या नहीं, जमीन वापिस लेनी चाहिए थी, क्योंकि इस मामले में राजस्थान लैंड रेवेन्यू रूल्स-1959 (इंडस्ट्रीयल एरिया अलॉटमेंट) के प्रावधान लागू होंगे, चाहे लीज डीड में इसका उल्लेख हो या नहीं। 

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इसलिए प्रारंभ से ही है गैर-कानूनी

विधिक राय में बताया गया कि कैपस्टन मीटर ने जमीन मिलने के दो साल बाद 1967 में उसमें से 30 एकड़ भूमि जय ड्रिंक्स को बॉटलिंग प्लांट लगाने के लिए सौंप दी। इसके लिए उसने सरकार से अनुमति लेना बताया, लेकिन सब-लीज देने का सरकारी आदेश रिकॉर्ड में ही नहीं है। इसलिए सब-लीज प्रारंभ से ही गैर-कानूनी है। साथ ही जय ड्रिंक्स के औद्योगिक गतिविधि करने से स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं है, क्योंकि जमीन कैपस्टन मीटर को दी गई थी, ना कि जय ड्रिंक्स या अन्य किसी सब-लीज वाले को। तय समय सीमा और उसके बाद भी में जमीन पर इंडस्ट्री नहीं लगने के बावजूद अफसरों से मिलीभगत के कारण जमीन को वापस सरकार के कब्जे में नहीं लिया गया। 

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एक बार लीज हुई, तो हमेशा लीज ही रहेगी

यह सु​स्थापित कानून है कि एक बार अगर किसी जमीन को सरकार ने लीज पर दिया है, तो वह हमेशा ही लीज पर रहेगी। यदि लीज 99 साल की है, तो भी लीज लेने वाले को मालिकाना हक नहीं होंगे। इसलिए कैपस्टन मीटर के जमीन पर लीज अधिकार कभी भी मालिकाना हक में परिवर्तित नहीं हुए हैं। अवाप्ति से मुक्ति के बाद कैपस्टन को दी गई जमीन वास्तविक तौर पर कैपस्टन मीटर को लीज पर दी गई जमीन ही है। इसलिए यह साफ है कि सरकार की अनुमति के बिना सब-लीज, दान या बिक्री या अन्य किसी तरीके से किसी को भी जमीन ट्रांसफर करना गैर-कानूनी है। 

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शक के दायरे में जय ड्रिंक्स की सब-लीज

कैपस्टन मीटर ने सरकार के 7 नवंबर, 1966 की अनुमति से जय ड्रिंक्स को सब-लीज देना बताया है, लेकिन इस पत्र का उल्लेख जेडीए में इस मामले की बची हुई फाइल में नहीं है और ना ही सब-लीज की डीड में उक्त अनुमति-पत्र का डिस्पैच नंबर दर्ज है। कैपस्टन मीटर ने कभी भी जेडीए या सरकार के साथ हुए पत्राचार में इस अनुमति-पत्र का उल्लेख नहीं किया है और ना ही कभी पत्र संलग्न किया। इसलिए सरकार से जय ड्रिंक्स का सब-लीज देने का कोई पत्र जारी होना पूरी तरह से संदेहास्पद है। 

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जय ड्रिंक्स के नाम लीज डीड की प्रमाणिकता संदिग्ध

कैपस्टन मीटर ने जय ड्रिंक्स के नाम 21 मार्च, 1967 को सब-लीज की थी, लेकिन लीज डीड में कैपस्टन और जय ड्रिंक्स के प्रतिनिधियों के नाम नहीं हैं, बल्कि दोनों कंपनियों की मुहर लगी है। इसमें निदेशक तो लिखा है, लेकिन निदेशक के नाम नहीं हैं। रिकॉर्ड के अनुसार, चुन्नीलाल व महावीर प्रसाद जयपुरिया ने यह सब-लीज की डीड की। दोनों ही बेनीप्रसाद जयपुरिया के बेटे हैं।

उन्होंने महावीर प्रसाद से एडवांस के तौर पर 22,500 तथा विकास शुल्क के 15 हजार रुपए लिए, लेकिन डीड की तस्दीक में यह कहीं भी साफ नहीं है कि आखिर दोनों किसका प्रतिनिधित्व कर रहे थे! एक भाई महावीर प्रसार ने दूसरे भाई चुन्नीलाल को 30 एकड़ जमीन दे दी थी। लीज डीड से यह भी साफ नहीं है कि क्या महावीर प्रसाद जयपुरिया ने स्वयं ही स्वयं को या महावीर व चुन्नीलाल ने महावीर प्रसाद से एडवांस व विकास शुल्क लिया है या नहीं! 

गंगाधर ही शक्तिमान...

कैपस्टन और जय ड्रिंक्स की जमीन का डिमार्केशन भी कभी नहीं हुआ, ​बल्कि अनेक अवसरों पर महावीर प्रसाद जयपुरिया ही दोनों कंपनियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इससे साफ है कि जय ड्रिंक्स ​कोई अलग कंपनी नहीं है। सरकारी जमीन हड़पने के लिए इसे कागजों में बनाया गया है। इसलिए कैपस्टन की ओर से जय ड्रिंक्स के पक्ष में की गई लीज डीड पर संदेह करने के वाजिब व तर्कसंगत कारण हैं। प्रथमदृष्ट्या सब-लीज 30 एकड़ जमीन पर जय ड्रिंक्स के पक्ष में थर्ड पार्टी अधिकार उत्पन्न करने के लिए किया गया ढकोसला व कागजी ट्रांजेक्शन है।  

मालिक नहीं बन गए, बल्कि...

अवाप्ति से मुक्ति के बाद कैपस्टन मीटर की 48 एकड़ जमीन की लीज पुनर्जीवित हो गई। इसी प्रकार जय ड्रिंक्स की जमीन की स्थिति भी सब-लीज वाली हो गई। हालांकि यह सब-लीज गैर-कानूनी है। दूसरे शब्दों में अवाप्ति से मुक्ति के बाद कैपस्टन मीटर जमीन की लीज होल्डर और जय ड्रिंक्स सब-लीज होल्डर ही रहे, ना कि जमीन के मालिक बन गए।  

यदि अवाप्ति से मुक्ति के बाद जमीन का मालिक कैपस्टन मीटर और जय ड्रिंक्स प्रा. लि. को माना जाए, तो यह साफ है कि अवाप्ति और अवाप्ति से मुक्ति का खेल कैपस्टन और जय ड्रिंक्स को जमीन का मालिकाना हक देने के लिए ही रचा गया था।  

किसी भी स्थिति में नहीं हो सकता भू-उपयोग परिवर्तन

एक मई, 1986 को 18 एकड़ जमीन जय ड्रिंक्स की फैक्ट्री के लिए अवाप्ति से मुक्त की गई थी। इसलिए इस जमीन का भू-उपयोग परिवर्तन किसी भी स्थिति में नहीं हो सकता था, क्योंकि यह जमीन मूलत: कैपस्टन मीटर को दी गई 205.8 बीघा जमीन का ही हिस्सा है। जमीन की लीज डीड में ही जमीन का भू-उपयोग औद्योगिक से किसी अन्य कैटेगरी में नहीं करने की शर्त लिखी है। 

दूसरा कारण अवाप्ति से मुक्ति के एक मई, 1986 के आदेश में भी भू-उपयोग बदलने पर रोक है। तत्कालीन राजस्थान लैंड रेवेन्यू रूल्स-1959 के तहत औद्योगिक श्रेणी की जमीन का भू-उपयोग नहीं बदल सकता। इसलिए जय ड्रिंक्स को दिया गया 72,967 वर्गमीटर का पट्टा और इस जमीन पर बहुमंजिला आवासीय और व्यावसायिक निर्माण की अनुमति देना भी पूरी तरह गैर-कानूनी है।

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