झालावाड़ स्कूल हादसा : धीरे-धीरे दूर हो रहा बाल मन का डर, मास्टरजी घर-घर जाकर पढ़ा रहे
राजस्थान के झालावाड़ स्कूल हादसे के बाद बच्चों के डर को दूर करने के लिए शिक्षक घर-घर जाकर बच्चों की काउंसलिंग करने के साथ उन्हें पढ़ाई भी करवा रहे हैं।
राजस्थान में झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में स्कूल गिरने से सात बच्चों की मौत के बाद सदमे में आए स्कूली बच्चों का डर अब खत्म होने लगा है। हादसे में घायल हुए बच्चे अस्पताल में स्वस्थ होने लगे हैं। शिक्षक भी घर-घर जाकर सदमे में आए बच्चों के बाल मन में समाए डर को निकालने के लिए न केवल काउंसलिंग कर रहे हैं, बल्कि उन्हें पढ़ा भी रहे हैं। इन बच्चों को सरकार ने नए बैग व किताबें उपलब्ध कराई हैं।
शिक्षकों का कहना है कि बच्चे अब स्कूल खुलने और कक्षाएं लगने का इंतजार कर रहे हैं। हादसे के कारण ढहा दिए गए स्कूल भवन के बनने तक पढ़ाई सुचारू हो, इसके लिए वैकल्पिक इंतजाम किए जा रहे हैं। अधिकारियों का दावा है कि सरकार के प्रयासों का नतीजा है कि 10 दिन पहले हुए इस हादसे के बाद अब बच्चों के मन से काफी हद तक डर दूर हुआ है।
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का कहना है कि हादसे के बाद बच्चों के मन में जो डर पैदा हुआ, उसे कम करने के लिए संवेदनशील पहल की गई है। बच्चों से मिलने, उन्हें समझाने के लिए शिक्षकों को घर-घर जाकर बात करने के लिए कहा गया है। बच्चों को पढ़ाई भी करवाई गई है। फिलहाल ये प्रयास किए जा रहे हैं कि बच्चों के लिए भयमुक्त शैक्षणिक वातावरण बनाया जा सके। बच्चों की काउंसलिंग से उनका डर दूर हो रहा है।
खेल-खेल में सीखने की कवायद
शासन सचिव कृष्ण कुणाल के अनुसार, घटना के वक्त अस्पताल में भर्ती बच्चों की देखरेख के लिए कर्मचारियों की 24 घंटे की ड्यूटी लगाई गई। जो बच्चे स्वस्थ होकर घर पहुंच गए, उनके लिए डोर टू डोर जाकर खेल-खेल में सीखने की गतिविधियां हो रही हैं। बालकों के घर-घर जाकर शिक्षकों द्वारा नोटबुक्स, किताबें, नए बैग और ड्रेस देकर स्कूल में आने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
माध्यमिक शिक्षा निदेशक सीताराम जाट का कहना है कि अभिभावकों ने गांव में ही अपना निजी मकान देकर बच्चों को शिक्षण कार्य करवाने के लिए आग्रह किया है। इस पर उन्हीं के मकान को स्कूल में बदलने के लिए सुरक्षित भवन का रूप दिया गया है। मकान में कक्षा कक्ष, प्रार्थना सभा, पीने के पानी और शौचालय की व्यवस्था की गई है।
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