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Photograph: (the sootr)
राजस्थान हाई कोर्ट ने झालावाड़ में स्कूल बिल्डिंग गिरने से सात बच्चों की मौत के मामले में कहा है कि सरकारी अफसर ना तो बच्चों को मूलभूत व संविधान के तहत मिली सुरक्षा दे पाए बल्कि उनके संवैधानिक अधिकारों व गारंटी की भी धज्जियां उड़ा दी। कोर्ट ने कहा है कि घटना ना केवल राज्य, बल्कि सभी संबंधित अधिकारी और व्यक्ति की घोर लापरवाही का नतीजा है। जस्टिस समीर जैन ने यह टिप्पणियां स्कूल बिल्डिंग गिरने की घटना पर स्व:प्रेरणा से दर्ज प्रसंज्ञान में की है।
पहले चेत जाते, तो यह घाव नहीं होता
राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र शांडिल्य ने कोर्ट को मीडिया में प्रकाशित खबरों के आधार पर बताया कि सरकार ने कुछ लोगों को निलंबित किया है, लेकिन बाकी जिम्मेदारों की पहचान भी जरूरी है। सरकार ने घटना के बाद 7500 स्कूलों की मरम्मत के लिए 150 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। साथ में निलंबन, हाईलेवल मीटिंग और अन्य आवंटन किए हैं। यदि यह काम पहले हो जाते, तो मासूम बच्चो की जान नहीं जाती और उनके माता-पिता को यह कभी नहीं भरने वाला घाव नहीं होता। अदालत ने एडवोकेट महेंद्र शांडिल्य को अदालत की सहायता के लिए न्याय मित्र नियुक्त किया है।
अभियानों की पालना पर ही संदेह
कोर्ट ने कहा है कि समवर्ती सूची के अनुसार शिक्षा केंद्र और राज्य दोनों का विषय है। केंद्र सरकार ने सर्व-शिक्षा अभियान, मिड-डे मील और आरटीई जैसे अभियान शुरू किए हैं, लेकिन इनकी प्रभावी पालना होने में संदेह है।
यह तो साफ ही है कि
कोर्ट ने कहा है कि यह स्पष्ट है कि यह घटना घटिया निर्माण सामग्री और पीडब्ल्यूडी की ओर से प्रभावी निरीक्षण या मॉनिटरिंग नहीं होने का नतीजा है, जबकि आरटीई एक्ट के बिल्डिंग व इंफ्रास्ट्रक्चर शिड्यूल के अनुसार ही स्कूल होने चाहिए। कानून के अनुसार पीडब्ल्यूडी का जेईएन स्तर का अफसर स्कूल भवन का निरीक्षण करके तय करेगा कि बिल्डिंग पूरी तरह सुरक्षित है या नहीं।
स्कूल गिर रहे हैं, तो आखिर पैसा जाता कहां है!
कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार आयकर दाताओं से 4 फीसदी स्वास्थ्य और एजुकेशन सेस लेती है। इसमें एक फीसदी सेस स्वास्थ्य के लिए है और बाकी तीन एजुकेशन के लिए। यह सेस अभियानों के लिए होता है, ना कि शैक्षणिक संस्थानों के लिए।
सरकारी स्कूलों को राज्य व केंद्र सरकार फंड देती है और विभिन्न नीतियों व अभियानों के तहत भी फंडिंग मिलती है। तीन फीसदी सेस राज्यों के स्कूलों की मरम्मत व देखरेख के लिए होता है। इसके अलावा राज्य सरकार शिक्षा को छह फीसदी बजट देती है। इसके बावजूद दूरदराज व और ग्रामीण क्षेत्र के स्कूल बिल्डिंग की हालत खराब हैं और इनमें मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश भी नहीं मान रहे
कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी स्कूलों में फायर सेफ्टी, फर्स्ट-ऐड, आपातकालीन निकासी प्लान और सर्टिफाइड इंजीनियर से मजबूती ऑडिट करवाने के निर्देश दिए हुए हैं। निरीक्षण अधिकारी को निरीक्षण करके रिपोर्ट संबंधित बीडीओ को देनी चाहिए, लेकिन इन कामों में भारी लापरवाही है। झालावाड़ की घटना प्रशासनिक उदासीनता व इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रति लापरवाही का नतीजा है। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने जरूरी हैं।
इनको जारी होंगे नोटिस
कोर्ट ने रजिस्ट्रार न्यायिक को मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष जनहित याचिका के तौर पर दर्ज करने के लिए पेश करने और अनुमति मिलने पर नोटिस जारी करने केा कहा है। कोर्ट ने केंद्रीय शिक्षा व मानव संसाधन सचिव, मुख्य सचिव राजस्थान, निदेशक प्रारंभिक शिक्षा, बीकानेर, चेयरमैन व प्रमुख सचिव, स्कूल शिक्षा, भाषा व लाइब्रेरी विभाग, पंचायती राज और प्रारंभिक शिक्षा विभाग को नोटिस जारी करने को कहा है।
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इन बिंदुओं पर मांगा है जवाब
- पिछले सालों की स्कूल भवनों की स्ट्रक्चरल सेफ्टी की रिपोर्ट व वर्तमान स्थिति की जानकारी।
- 7500 स्कूलों के अतिरिक्त असुरक्षित स्कूलों की पूरी सूची व इनके सुधार के लिए किए गए उपाय व प्रस्ताव।
- सभी सरकारी स्कूल भवनों, विशेषकर दूरदराज व ग्रामीण क्षेत्र के स्कूल बिल्डिंगों की स्वतंत्र ऑडिट रिपोर्ट।
- झालावाड़ की घटना के संबंध में अब तक की गई गिरफ्तारियां, निलंबन, अनुशानात्मक कार्यवाहियां व भविष्य में उठाए जाने वाले कदमों की रिपोर्ट।
सीजे राजेंद्रन भी बोले...
राजस्थान हाईकोर्ट के सीजे श्रीराम कल्पाती राजेंद्रन ने कहा कि मैं उम्मीद करता हूं कि कोर्ट की बिल्डिंग 50 साल तो खड़ी रहेगी, जिसके लिए पीडब्ल्यूडी विभाग ने प्रयास भी किए होंगे। मैंने अखबारों में पढ़ा कि सरकारी स्कूल का भवन गिर गया। यह बात हमारे दिमाग में होनी चाहिए कि हम जो भी काम करें, दिल लगाकर करें।
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