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Photograph: (The Sootr)
देश आज कारगिल विजय दिवस मना रहा है, और इस दिन को हम शहीदों की याद में समर्पित करते हैं। शहीदों की बहादुरी और कुर्बानी को सम्मानित करते हुए, हम उन वीरों की कहानियों को याद करते हैं जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी। इन्हीं शहीदों में से एक नाम राजस्थान (Rajasthan) के जोधपुर के कालूराम जाखड़ (Kaluram Jakhar) का है, जिनकी वीरता आज भी हर भारतीय के दिल में बसी हुई है।
4 जुलाई 1999: कालूराम का आखिरी पत्र
4 जुलाई 1999 का दिन था जब करगिल की ऊंची चोटियों पर युद्ध की गूंज सुनाई दे रही थी। भारतीय सेना पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा ले रही थी। इस समय जोधपुर के खेड़ी चारणान गांव के कालूराम जाखड़ भारतीय सेना के एक बहादुर सैनिक के रूप में शहीद हो गए। उस दिन उन्होंने अपने परिवार को एक पत्र लिखा, जो आज भी उनके परिवार के पास सुरक्षित है। यह पत्र सिर्फ शब्दों का एक समूह नहीं, बल्कि उस जज्बे का प्रतीक था जिसने भारतीय सेना को करगिल युद्ध में विजय दिलाई।
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कारगिल विजय दिवस क्यों मनाया जाता है?
26 जुलाई 1999 को आधिकारिक तौर पर कारगिल युद्ध की समाप्ति हुई थी। इस जंग में भारतीय सैनिकों की गौरवपूर्ण जीत और देश के लिए जवानों की शहादत इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर अमर गाथा बन गई।
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जान की परवाह किए बिना किया दुश्मन का बंकर नष्ट
कालूराम जाखड़ भारतीय सेना की 17 जाट बटालियन का हिस्सा थे। उनकी जिम्मेदारी मोर्टार चलाने की थी। पिम्पल टॉप पर पाक सैनिकों और घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया था। भारतीय सेना ने इस स्थान को पुनः प्राप्त करने के लिए युद्ध की रणनीति बनाई और कालूराम जाखड़ ने अपने साहस और वीरता से इस मिशन को सफल बनाया। पिम्पल पहाड़ी पर दो बंकरों को नष्ट कर दिया गया था, लेकिन एक बंकर शेष था। दुश्मन लगातार गोले दाग रहा था, लेकिन कालूराम ने अपनी जान की परवाह किए बिना बंकर को नष्ट करने की योजना को सफल बनाया। इसी दौरान एक गोला उनके शरीर में लग गया, लेकिन उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति को बनाए रखा। अंतिम बंकर नष्ट होने के बाद भारतीय सेना ने पिम्पल पॉइंट को जीत लिया, लेकिन इसी बीच कालूराम ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया।
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समझें पूरा कारगिल युद्ध
कारगिल युद्ध की कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ
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वीरता और देशप्रेम का प्रतीक कालूराम का अंतिम पत्र
कालूराम जाखड़ का अंतिम पत्र आज भी उनके परिवार के पास सुरक्षित है। यह पत्र उनकी वीरता और देशप्रेम का प्रतीक बन गया है। उनकी मां आज भी इस पत्र को अपने दिल से लगा कर देखती हैं और अपने बेटे की यादों में खो जाती हैं।
- कालूराम की वीरता: उनका साहस और बलिदान करगिल युद्ध के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।
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स्मरणीय पत्र: कालूराम का अंतिम पत्र उनके परिवार के लिए एक अमूल्य धरोहर है।
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शहीदों का सम्मान: कारगिल दिवस हमें अपने शहीदों को सम्मानित करने का अवसर देता है।
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