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Photograph: (The Sootr)
राजस्थान में झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में 25 जुलाई 2025 को सरकारी स्कूल की छत के भरभरा कर गिरने से आठ बच्चों की जान चली गई और लगभग 25 बच्चे घायल हो गए। सभी को झकझोर देने वाले इस हादसे ने शिक्षा विभाग की कार्यशैली और सरकारी स्कूलों के दशा पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। हादसे के बाद राजस्थान के शिक्षामंत्री मदन दिलावर का गैर जिम्मेदाना बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि यह पाप कांग्रेस का है, जिसे हमारी सरकार ढो रही है। यह बयान शिक्षा व्यवस्था के प्रति शिक्षा मंत्री की असंवेदनशीलता को दर्शाता है। एक मंत्री के रूप में ऐसी प्रतिक्रिया न केवल शिक्षा विभाग की विफलता को छिपाने की कोशिश है, बल्कि मृत बच्चों के परिवारों के प्रति अत्यंत अपमानजनक भी है।
दरअसल, राजस्थान में सरकारी स्कूलों की जर्जर स्थिति कई साल से चिंताजनक बनी हुई है। राज्य में सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की, कोई भी इस समस्या का हल करने में विफल रही है। वर्तमान में लगभग 8000 स्कूल ऐसे हैं, जो जर्जर हालत में हैं। किसी की छत टपक रही है तो किसी की दीवारों में दरारें हैं। शौचालय और बरामदे की स्थिति बेहाल है। बारिश में ये समस्याएं और भी गंभीर हो जाती हैं। मानसून के दौरान ऐसे स्कूल मौत को खुली दावत देते हैं।
यह हाल तब है, जब राज्य सरकार ने 2024-25 के बजट में शिक्षा विभाग के लिए 19 हजार करोड़ का प्रावधान किया है। यह कुल बजट का करीब पांच प्रतिशत है, जो सभी विभागों से अधिक है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि शिक्षा विभाग के इतने भारी-भरकम बजट की बड़ी राशि आधारभूत सुविधाओं में खर्च नहीं होकर आखिर कहां जा रही है। बताया जाता है कि इस बजट का एक बड़ा हिस्सा कर्मचारी-अधिकारियों के वेतन-भत्तों पर खर्च हो रहा है। अगर देखा जाए तो प्रत्येक स्कूल को उसकी स्टूडेंट स्ट्रेंथ के हिसाब से 25 हजार, 50 हजार या एक लाख रुपए सालाना ही मिलते हैं। यह राशि रोजमर्रा की स्टेशनरी, बिजली-पानी बिल और अन्य पर ही खर्च हो जाती है।
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राजस्थान में सरकारी स्कूलों के हालात
एक अनुमान के मुताबिक राजस्थान में करीब 80 प्रतिशत स्कूल भवनों को मरम्मत की दरकार है। सरकार स्कूल भवनों को दानदाताओं की दया पर छोड़ रखा है। आम तौर पर दानदाता नए भवन बनाने की पहल तो करते हैं, लेकिन मरम्मत के लिए सहयोग नहीं देते। शिक्षा विभाग ने 14 जुलाई 2025 को केवल 109 स्कूलों के लिए मरम्मत के लिए 1.75 करोड़ रुपए जारी किए गए, जबकि हजारों स्कूल मरम्मत के लिए तरस रहे हैं।
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अधिकारी बचा रहे अपनी खाल
हादसे के एक दिन पहले ही शिक्षा निदेशक सीताराम जाट ने राज्य के सभी जिलों से जर्जर स्कूलों की स्थिति की जानकारी जुटाने का आदेश दिया, लेकिन सालों से स्थिति में सुधार के बगैर यह केवल मानसून के समय एक औपचारिकताभर प्रतीत होता है। बताया जाता है कि झालावाड़ घटना के बाद शिक्षा विभाग के आला अधिकारी जोखिम प्रबंधन के लिए स्कूलों से सुरक्षा प्रमाणपत्र लेने की कवायद में लगे हैं, जिससे हादसे के लिए संस्था प्रधान और क्षेत्रीय अधिकारी जिम्मेदार ठहराए जा सकें। ऐसा ही एक आदेश शिक्षा निदेशालय की ओर से 25 जुलाई के हादसे से ठीक एक दिन पहले निकाला गया है। झालावाड़ स्कूल हादसे के बाद भी स्कूल की हेडमास्टर समेत पांच शिक्षकों को निलंबित कर मामले की इतिश्री करने की तैयारी कर ली है।
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ऐसे सुधरेगी स्थिति
- सरकारी बजट में बड़े पैमाने पर भवन निर्माण और मरम्मत के लिए प्रावधान किया जाए।
- नियमित निरीक्षण और सुरक्षा मानकों की सख्त पालना हो।
- शिक्षा मंत्रियों और अधिकारियों को जवाबदेह होना पड़ेगा।
- समाज और अभिभावकों को भी सहभागिता निभानी पड़ेगी।
कुछ आंकड़े, जो कहते हैं अलग कहानी
अनुमानित 8 हजार स्कूल क्षतिग्रस्त, जिनमें कोई न कोई हिस्सा जर्जर है। राजस्थान सरकार ने शिक्षा के लिए 2024-25 के बजट में 19000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया। इसमें बुनियादी संरचना के लिए प्रावधान थे, लेकिन नए भवनों के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। यानी इसके लिए बजट केंद्र सरकार से मिलना था।
डाइस 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में स्कूलों की स्थिति
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