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Photograph: (the sootr)
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिए फैसले में कहा है कि राजस्थान सरकार को खेतड़ी के पूर्व राजपरिवार के आखिरी वारिस राजा बहादुर सरदार सिंह की वसीयत की प्रोबेट को चुनौती देने का अधिकार नहीं है। खेतड़ी ट्रस्ट के पक्ष में 30 अक्टूबर, 1985 को की गई इस वसीयत को सही मानकर जयपुर, कोटपूतली, आबू रोड तथा खेतड़ी स्थित संपत्तियों पर ट्रस्ट का अधिकार माना जा चुका है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने जुलाई, 2023 में ट्रस्ट की संपत्तियों के बंटवारे के लिए प्रोबेट स्वीकृत की थी। राजस्थान सरकार ने इसी प्रोबेट को चुनौती देकर ट्रस्ट की संपत्तियों पर सरकार का अधिकार बताया था, लेकिन जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की स्पेशल बेंच ने राजस्थान सरकार की एसएलपी खारिज कर दी।
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निजी वसीयत में सरकार का दखल खतरनाक
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने खेतड़ी ट्रस्ट के पक्ष में जारी प्रोबेट की स्वीकृति पर तो मोहर लगी ही दी है, साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सरकार को वसीयत के जरिए दी गई निजी संपत्तियों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने खेतड़ी ट्रस्ट को प्रोबेट के तहत आने वाली संपत्तियों का एकमात्र और कानूनी अधिकारी मानते हुए निजी वसीयत के मामलों में सरकारी दखल को खतरनाक बताया है।
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40 साल से सरकार कर रही थी कोशिश
राजस्थान सरकार करीब 40 साल से राजस्थान राजगमन कानून-1956 के तहत खेतड़ी के पूर्व राजपरिवार की संपत्तियों को अपना बताकर कब्जा करने की कोशिश कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजगमन कानून के तहत सरकार तभी संपत्तियों पर कब्जा ले सकती है, जब कोई पहचान किए जाने योग्य उत्तराधिकारी नहीं हो।
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62 संपत्तियों का है मामला
खेतड़ी के आखिरी शासक राजा बहादुर सरदार सिंह ने शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए खेतड़ी ट्रस्ट की स्थापना की थी। उनकी मृत्यु के बाद राजस्थान सरकार ने उनके निर्वसियती होने के आधार पर संपत्तियों पर कब्जा ले लिया था। सरकार ने उत्तराधिकार कानून के तहत दिवंगत सिंह की वसीयत को चुनौती दी थी, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने जुलाई, 2023 में वसीयत को सही मानते हुए राजस्थान सरकार के दावे को खारिज कर दिया था।
क्या होगा आगे?
अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राजस्थान सरकार के लिए खेतड़ी ट्रस्ट की संपत्तियों पर कब्जा करना असंभव हो गया है। यह फैसला उन नागरिकों और संस्थाओं के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है, जो निजी संपत्तियों के मामले में सरकारी दखल के खिलाफ हैं।
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