News Strike : अतिथि विद्वानों के लिए राहत की खबर, सुप्रीम कोर्ट का फैसला बना उम्मीद की किरण

मध्यप्रदेश के अतिथि विद्वानों के लिए सुप्रीम कोर्ट का हाल का फैसला राहत की उम्मीद बनकर सामने आया है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि अतिथि विद्वान और नियमित प्रोफेसर के काम में समानता है, इसलिए उन्हें समान वेतन और सुविधाएं मिलनी चाहिए।

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Harish Divekar
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news strike 1 september

Photograph: (The Sootr)

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NEWS STRIKE : मध्यप्रदेश में अतिथि विद्वानों का लंबा इंतजार खत्म होता नजर आ रहा है। आप अगर अतिथि विद्वान हैं या उनसे कोई ताल्लुक रखिए तो आज का ये सेगमेंट गौर से देखिए। क्योंकि आज हम आपको बताने वाले हैं सुप्रीम कोर्ट का एक ऐसा फैसला जो अतिथि विद्वानों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर आया है। 

आपको बता दें कि प्रदेश में कई हजार अतिथि विद्वान हैं जो बरसों से अपने हक के लिए आवाज उठा रहे हैं। कई बार उनकी नौकरी पर तलवार भी लटक चुकी है, लेकिन इन्होंने कभी हार नहीं मानी। समय से अपनी ड्यूटी करते हैं और फिर अपने आंदोलन के लिए भी वक्त निकाल लेते हैं। क्या इस बार सरकार उनकी गुहार सुनेगी।

अतिथि विद्वान के कंधों पर कई शिक्षण संस्थानों का भार

आज हम आपसे बात कर रहे हैं सुप्रीम कोर्ट के एक खास फैसले के बारे में। जो प्रदेशभर के अतिथि विद्वानों के भविष्य को बदल कर रख सकता है। मध्यप्रदेश में अतिथि विद्वान लंबे समय से अपने हक के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।

ये अतिथि विद्वान ही हैं जिनके कंधों पर प्रदेश के कई शिक्षण संस्थानों का भार टिका हुआ है जो समय से लेक्चर लेते हैं। भारी भरकम सैलेरी हासिल करने वाले सरकारी प्राध्यापकों जिन सुदूर इलाकों में जाने से कतराते हैं। उन स्कूलों में अतिथि विद्वानों की वजह से ही रोज क्लास लग पाती है और पढ़ाई होती है।

इसके बावजूद जब भी बात आती है वेतन या दूसरी सुविधाओं की, तब अतिथि विद्वानों को नियमित प्राध्यापकों से बहुत कम आंका जाता है। उनका मानदेय सरकारी प्राध्यापकों के मुकाबले बहुत कम है।

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17 विश्विद्यालयों में 1069 पद, इनमें 793 पद हैं खाली 

अतिथि विद्वान या अतिथि विद्वान लगातार ये मांग करते रहे हैं कि उन्हें भी सरकारी विद्वानों की तरह ही वेतन और भत्ते मिलना चाहिए। क्योंकि वो भी उतना ही काम करते हैं जितना सरकारी प्राध्यापक करते हैं। प्रदेश की शिक्षा का बड़ा जिम्मा यही अथिति विद्वान संभाल रहे हैं।

ये बात हाल ही में सरकार ने भी मानी है। विधानसभा के मानसून सत्र में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि 17 विश्विद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के 1069 पद हैं। जिसमें से 793 पद खाली पड़े हैं। सरकार ने ये भी माना कि अथिति विद्वानों के भरोसे पूरा काम सुचारू रूप से चल रहा है।

अतिथि विद्वानों की संख्या काफी बड़ी है। प्रदेश में करीब 47 सौ अतिथि विद्वान हैं। इस आंकड़े को सुनकर ही आप समझ सकते हैं कि गेस्ट फेकल्टी कितनी ज्यादा जरूरी है। सरकार भी ये बात समझती है। शायद इसलिए खुद शिवराज सिंह चौहान ने सीएम रहते हुए सितंबर 2023 में अतिथि विद्वानों से जुड़ी महापंचायत की थी। जिसमें वर्किंग डे पर 15 सौ रुपए मानदेय देने की जगह फिक्स 50 हजार वेतन देना का वादा किया गया था।

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अतिथि विद्वानों के आंदोलन से भी नहीं निकला कोई हल 

अतिथि विद्वानों को सरकारी कर्मचारियों के बराबर सुविधाएं देने, पद को स्थाई मानन और कभी भी नौकरी से बाहर न निकालने का वादा भी किया गया था। ये वादे कोरे आश्वासन ही साबित हुए क्योंकि अतिथि विद्वानों की नौकरी पर कभी भी तलवार लटक जाती है।

स्कूल और कॉलेज के प्रिसिंपल उनके भाग्य विधाता हैं जो कभी तबादलों की आड़ में नए प्रोफेसर्स नियुक्त कर देते हैं। कभी पीएससी के तहत नई नियुक्ति हो जाती है। जिसकी वजह से अतिथि विद्वानों का काम छिन जाता है।

अतिथि विद्वान कई बार ये गुहार लगा चुके हैं कि महापंचायत में किए गए वादों पर अमल होना चाहिए, लेकिन उनके आंदोलन कोई रंग नहीं ला सके। 

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योग्यता और काम समान तो वेतन क्यों नहीं: सुप्रीम कोर्ट 

अब सर्वोच्च अदालत का एक फैसला उन्हें राहत दिला सकता है। गुजरात में गेस्ट फैकल्टी यूनियन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है। याचिका में कहा गया था कि जब अतिथि संकाय भी नियमित प्रोफेसर्स की तरह ही काम करता है और उतनी ही योग्यता भी रखता है तो उनका वेतन इतना कम क्यों है और उन्हें सुविधाएं भी नहीं दी जाती हैं।

जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की कि योग्यता और अनुभव एक से हैं और काम भी एक समान है तो वेतन और सुविधाओं में असमानता क्यों होनी चाहिए। 

अतिथि विद्वानों के भविष्य की सुरक्षा सरकारों की जिम्मेदारी 

इस टिप्पणी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि प्राध्यापकों को सम्मानित वेतन न मिले तो ज्ञान का महत्व भी कम हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी भी की और कहा कि सिर्फ गुरुब्रह्मा गुरुविष्णु... जैसे मंत्र पढ़ना ही काफी नहीं है। उन पर अमल भी होना चाहिए। इसके बाद सर्वोच्च अदालत ने सरकार से ये देखने के लिए कहा कि कहीं अतिथि विद्वानों का अपमान तो नहीं हो रहा। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, अतिथि विद्वानों को निश्चित मासिक वेतन और भविष्य की सुरक्षा देना सरकारों की नैतिक जिम्मेदारी है।

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मध्यप्रदेश के अतिथि विद्वानों ने भी लगाई सरकार से गुहार 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर मध्यप्रदेश के अतिथि विद्वानों ने भी सरकार से गुहार लगाई है और इस मामले का हवाला दिया है। अतिथि विद्वान महासंघ के महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष डॉ. नीमा सिंह ने मीडिया से कहा कि प्रदेश में 20–25 साल से अतिथि विद्वान अनिश्चितताओं के बीच सेवाएं दे रहे हैं। सरकार से अपील की कि वो जल्द से जल्द उनकी परेशानियों की तरफ ध्यान दें।

फैसले के बाद MP के अतिथि विद्वानों को मिलेगा हक

अतिथि विद्वान कई बार हरियाणा का भी हवाला देते रहे हैं। जहां कुछ ही समय पहले अतिथि विद्वानों को नियमित करने के साथ ही उन्हें यूजीसी के नियमों के मुताबिक वेतनमान देने का फैसला किया गया है। ये भी इत्तेफाक की बात है कि हम जितने प्रदेशों की बात कर रहे हैं। सभी जगहों पर बीजेपी की ही सरकार है। चाहें गुजरात हो हरियाणा हो या फिर मध्यप्रदेश हो, लेकिन बाकी दो प्रदेशों में धीरे-धीरे अतिथि विद्वानों की कोशिश रंग लाती दिख रही हैं। पर मध्यप्रदेश में अब तक ठोस फैसला नहीं हो सकता है। क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मध्यप्रदेश की सरकार भी अतिथि विद्वानों के हक में कोई कदम उठाएगी।

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