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राजस्थान के कोटा शहर में इन दिनों मगरमच्छों की आवाजाही एक गंभीर समस्या बन चुकी है। नदियों, नहरों और नालों के रास्ते ये खतरनाक जंतु कॉलोनियों तक पहुंच रहे हैं, और कई बार घरों तक भी आ जाते हैं। खासकर चंबल नदी और उसके आसपास के क्षेत्रों में इनकी संख्या ज्यादा है। चंबल नदी, नहरीं और खाली पड़े भूखंडों में जमा पानी इन मगरमच्छों के रहने का मुख्य कारण बन रहे हैं।कोटा में घरों में भी पहुंच रहे मगरमच्छ।
कोटा के नागरिकों में क्यों है भय का माहौल
कोटा के चन्द्रेसल क्षेत्र में सैकड़ों मगरमच्छ नदी में पाए जाते हैं। बारिश के मौसम में इनकी संख्या और बढ़ जाती है। कई बार ये सड़क पर भी दिखाई देते हैं, जिससे नागरिकों में भय का माहौल बन जाता है। इन मगरमच्छों को काबू में करने के लिए वनकर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर इन्हें पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। चंबल नदी में मगरमच्छ बड़ी संख्या में हैं।
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रेस्क्यू टीम क्यों है परेशान
रेस्क्यू करने वाली टीम के पास पर्याप्त उपकरण नहीं हैं। लेकिन टीम ने टाट, रस्सियां और कुछ अन्य जुगाड़ से मगरमच्छों को काबू में करने की कोशिश की है। इन खतरनाक जंतुओं को पकड़ने के लिए टीम को दो से तीन रस्सियां और लाठी की जरूरत पड़ती है। इसके बावजूद, रेस्क्यू ऑपरेशन में जान का खतरा रहता है।
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पर्याप्त संसाधन नहीं
कोटा वन विभाग के वनकर्मियों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, जिसके कारण वे जुगाड़ के तौर पर रस्सियां, टाट और लाठी का इस्तेमाल करते हैं। हर साल करीब 100 से 150 मगरमच्छों को रेस्क्यू किया जाता है, लेकिन इन रेस्क्यू ऑपरेशनों में काफी जोखिम होता है। इस समय तक 10 मगरमच्छों को रेस्क्यू किया जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद संसाधनों की कमी महसूस हो रही है। मगरमच्छ रेस्क्यू करने में परेशानी हो रही है।
रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए फंड की कमी क्यों है
रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए सरकार के पास कोई विशेष फंड का प्रावधान नहीं है, और ये ऑपरेशन सिर्फ जुगाड़ पर निर्भर हैं। क्षेत्रीय वन अधिकारी इन्द्रेश यादव के अनुसार, रेस्क्यू के लिए किसी विशेष फंड की आवश्यकता है, ताकि वनकर्मी बेहतर संसाधनों के साथ मगरमच्छों को सुरक्षित तरीके से पकड़ सकें।
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