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Photograph: (the sootr)
राजस्थान की भजनलाल सरकार में कानून एवं संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल मंत्री जोगाराम पटेल की पोती को जोधपुर एमबीएम विश्वविद्यालय द्वारा नकल मामले में क्लीन चिट मिल गई है। यह मामला 2024-25 के सत्र के दौरान की एक परीक्षा का है, जब मंत्री की पोती का नाम नकल के आरोप में सामने आया था। इस मामले के सामने आते ही विश्वविद्यालय की बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट की बैठक में हंगामा मच गया था। अब सियासी गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं।
क्या था पूरा मामला?
2024-25 की इंजीनियरिंग परीक्षा के दौरान मंत्री जोगाराम पटेल की पोती एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग की परीक्षा दे रही थी। फ्लाइंग टीम के निरीक्षण में उसके पास एक कैलकुलेटर के कवर पर पेंसिल से लिखे गए नोट्स पाए गए। इसके बाद नकल का मामला माना गया और रिपोर्ट जोधपुर विश्वविद्यालय प्रशासन को सौंपी गई थी।
क्या हुआ अगला कदम?
हालांकि केंद्र अधीक्षक डॉ. श्रवण राम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कैलकुलेटर पर लिखी गई चीजें अस्पष्ट थीं और नकल का मामला नहीं बनता है। पुलिस में भी इस मामले की शिकायत नहीं दी गई। इसके बाद विश्वविद्यालय की कमेटी ने मंत्री की पोती को दोषमुक्त कर दिया।
बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट की बैठक में हंगामा
इस मामले को लेकर बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट की बैठक में कुछ मुद्दों पर विरोध सामने आया। विशेष रूप से 2023-24 के सत्र के नकल मामले में नाम शामिल किए गए थे, लेकिन 2024-25 के मामले को गोपनीय रखा गया। जब सदस्यों ने इसका विरोध किया, तो कुलपति प्रोफेसर अजय शर्मा ने इसे नजरअंदाज कर दिया। बाद में परीक्षा नियंत्रक डॉ. अनिल गुप्ता ने लिफाफा खोलकर 2024-25 के नकल मामलों के नाम खुद ही सुनाए। जब मंत्री की पोती का नाम आया, तो डॉ. गुप्ता ने कहा कि फाउंड नो गिल्टी और उसे दोषमुक्त करार दिया।
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सियासी गलियारों में चर्चा तेज
मंत्री की पोती को दोषमुक्त करने के इस फैसले ने सियासी गलियारों में चर्चाओं का माहौल बना दिया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि यह एक राजनीतिक कदम हो सकता है, जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन इसे एक शुद्ध न्यायिक प्रक्रिया मानता है। इस पर तेजी से राजनीतिक विवाद हो रहा है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह मामला?
यह मामला केवल एक छात्रा के नकल मामले से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह राजनीति और शिक्षा व्यवस्था के बीच के कनेक्शन को भी उजागर करता है। जब एक प्रभावशाली व्यक्ति का परिवार इस तरह के आरोपों से बचता है, तो इससे समाज में अलग-अलग तरह के सवाल उठते हैं। इस मामले ने एक बार फिर से शिक्षा में पारदर्शिता और निष्पक्षता की आवश्यकता को साबित किया है।
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