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Photograph: (The Sootr)
मुकेश शर्मा
बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करेगा। ठीक यही स्थिति राजस्थान (Rajasthan) के जयपुर (Jaipur) की नाहरगढ़ सेंचुरी (Nahargarh Senctuary) की है, जिसे सरकार ही बर्बाद करने पर तुली है। हम यह बात इसलिए कह रहे हैं कि सरकार ने जयपुर की नाहरगढ़ सेंचुरी के उस एरिया में औद्योगिक क्षेत्र बसा दिया, जहां जंगल के नियमों में किसी भी व्यवसायिक गतिविधियों पर पूरी तरह रोक है। यहां एक-दो नहीं, बल्कि सैंकड़ों कारखानों का प्रदूषण जंगल को नुकसान पहुंचा रहा है।
दरअसल, यह मामला विश्वकर्मा औद्योगिक क्षेत्र का है। सरकारी एजेंसी रीको (RIICO) ने नाहरगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य के बीड़ पापड़ गांव के खसरा नंबर 7-2 की जमीन पर इस औद्योगिक क्षेत्र के विस्तार के लिए न तो कोई भू-रुपांतरण कराया और न वन महकमे से कोई क्लियरेंस ली। उसने अपने स्तर पर मनमाने तरीके से इंडस्ट्रीज को इस खसरा नंबर की जमीनें बांट दी। इसके बाद यहां सघन औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो गया।
दूषित पानी से जंगल का बिगड़ा माहौल
पर्यावरण कार्यकर्ता कमल तिवारी का कहना है कि इन कारखानों ने जंगल के शांत माहौल को अशांत कर दिया है। कारखानों से जो दूषित पानी निकलता है, उसे पीकर जंगली जीव बीमार हो रहे हैं। यह दूषित पानी बरसात के पानी के साथ मिलकर पूरे जंगल को बर्बाद कर रहा है। जंगल की बर्बादी को लेकर न तो वन अफसर चिंतित हैं और न ही रीको।
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उद्योग लग गए, तब खुली वन विभाग की नींद
वन विभाग ने नाहरगढ़ के वन खंड आमेर-54 की जमीन को 15 मार्च, 1962 में गजट अधिसूचना के जरिए आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया था। जब रीको ने जमीन पर औद्योगिक इकाइ स्थापित होने लगी तो वन विभाग की नींद खुली। उसने पाया कि इन कारखानों के लगने से वन एवं वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 व वन संरक्षण अधिनियम 1980 की धारा-2 का उल्लंघन हो रहा है।
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स्पष्ट हैं जंगल की सीमाएं
वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 22 सितंबर,1980 के आदेश के साथ जारी अनुसूची में नाहरगढ़ सेंचुरी की सीमाओं का विवरण स्पष्ट कर दिया था। इसमें पश्चिम नाहरी का नाका आबादी क्षेत्र व राजस्व ग्राम किशनबाग, बीड पापड़ व नाला अमानीशाह से पश्चिम विश्वकर्मा औद्योगिक क्षेत्र और सीमा लाईन नजदीक के राजस्व गांव जैसल्या,आकेडा, शिश्यावास, बडा गांव, माण्ड्या के खसरा नंबर 82-85 और 83 का उत्तरी-पश्चिम कोना तथा सीमा वन क्षेत्र बीड़ तालेड़ा,समीपवर्ती गांव दौलतपुरा खसरा नंबर 1092-1093 शामिल किया गया। इसे वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा-18 के तहत सेंचुरी घोषित कर नाहरगढ़ नाम दिया गया। इसकी चारों सीमाएं स्पष्ट रूप से चिन्हित हैं।
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नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के बारे में महत्वपूर्ण बातें
वनस्पति और जीव-जंतु
नाहरगढ़ जैविक उद्यान
पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग
पर्यटन आकर्षण
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फर्द रिपोर्ट में माना, यह खसरा जंगल का
द सूत्र की पड़ताल में यह भी पता चला कि जयपुर के कलेक्टर ने 21 अगस्त,1998 के आदेश से इसे ईको सेंसेटिव क्षेत्र भी घोषित किया था। नाहरगढ़ सेंचुरी के गांव बीड़-पापड़ के खसरा नंबर 7-2 जमाबंदी में वन विभाग की जमीन हैं। उद्योग लगने पर जब वन अफसरों की नींद खुली तो जयपुर के चिडियाघर के उप वन संरक्षक ने 25 अप्रेल 2024 और 11 सितंबर 2024 को राजस्व अधिकारियों से मौका रिपोर्ट तलब की। इस पर भू-अभिलेख के तहसीलदार और वन विभाग के सर्वेयर गिरीश शर्मा के नेतृत्व में सर्वे और सीमाज्ञान करके फर्द मौका रिपोर्ट बनाई। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया कि खसरा नंबर 7-2 पर सघन उद्योग क्षेत्र विकसित हो चुका है।
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रीको का तर्क, रह गया नामांतरण होना
इस रिपोर्ट के आधार पर वन विभाग ने रीको से इसका कारण जानना चाहा तो उसने टालमटोल वाला जवाब दिया। रीको ने 14 फरवरी,2025 को अपने सलाहकार ईएम रीको को भेजी वस्तुस्थिति रिपोर्ट में दावा किया कि औद्योगिक क्षेत्र के लिए आवंटित जमीन के खसरा नंबर 7-2 की पार्ट भूमि का आवंटन हुआ था। यह जमीन औद्योगिक क्षेत्र के बीच स्थित है। इसका आवंटन और नामांतरण रीको के पक्ष में होने से रह गया है।
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यह सरकार का कैसा विरोधभास
पर्यावरण कार्यकर्ता कमल तिवारी ने कहा कि यह अजीबोगरीब स्थिति है कि राजधानी में सरकार की एजेंसियां ही वन क्षेत्र को बर्बाद करने में लगी हैं। एक तरफ इस मानसून सीजन में सरकार 10 करोड़ पौधे लगाने की बात कह रही हैं, वहीं पहले से मौजूद जंगलों को उजाड़ रही है। यह कैसा विरोधाभास है। उन्होंने कहा कि वे जंगल बचाने की इस लड़ाई को एनजीटी में लेकर जाएंगे। उन्होंने गैर वानिकी गतिविधियों को बंद करने और दोषियों के खिलाफ एक्शन लेने की मांग की है।
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अब बगलें झांक रहे अफसर
जब इस बारे में रीको के अधिकारियों से संपर्क किया गया तो वे पहले तो इस मामले को लेकर चौंके। फिर उन्होंने यह कहकर टालमटोल करने लगे कि पुराने कागजों को देखना पड़ेगा। उधर, वन विभाग के अधिकारी भी इस मामले में कोई स्प्ष्ट बात करने को तैयार नहीं हुआ।
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