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Photograph: (the sootr)
मुकेश शर्मा @ जयपुर
राजस्थान में दलित समुदाय से जुड़े पूर्व मुख्य सचिव निरंजन आर्य का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वे किसी कार्यक्रम में बोल रहे हैं कि गांव में मेरे दादा की जमीन पर सवर्णों का कब्जा है, लेकिन वे एक साल से इसे खाली नहीं करवा पा रहे हैं। उनके इस वीडियो ने राजस्थान में हलचल पैदा कर दी है।
वायरल वीडियो में पूर्व सीएस निरंजन आर्य बता रहे हैं कि पिछले दिनों पाली स्थित अपने गांव रास जाने पर उन्हें गांववालों से पता चला कि उनके दादाजी की जमीन पर गांव के ही सवर्ण समुदाय के परिवार ने कब्जा किया हुआ है। जानकारी करने पर पता चला कि दादाजी ने कोई 100-50 रुपए उधार लिए थे। वीडियो में वह कह रहे हैं कि पांच जिलों में कलेक्टर और मुख्य सचिव बनने तक उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी, लेकिन अब वह पिछले एक साल से कोशिश करने के बावजूद जमीन नहीं ले पाए हैं। आज भी उनके दादाजी की जमीन पर कब्जा जारी है।
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वीडियो चार दिन पहले का
'द सूत्र' ने इस वीडियो की सत्यता की पुष्टि करने के लिए मोबाइल फोन पर निरंजन आर्य से संपर्क किया, तो उस समय वे हैदराबाद में थे। उन्होंने फोन पर कहा कि यह उनका ही वीडियो है, जो 21 सितंबर, 2025 को जयपुर में दुर्गापुरा स्थित कृषि अनुसंधान केंद्र के सभागार में हुए कार्यक्रम का है। वे डॉ. अंबेडकर अनुसूचित जाति अधिकारी-कर्मचारी एसोसिएशन के सम्मेलन में बोल रहे थे।
अनुसूचित जाति की जमीनों पर कब्जा सच्चाई
1989 बैच के राजस्थान कैडर के आईएएस रहे निरंजन आर्य ने 'द सूत्र' को बताया कि जमीन पर मेरे दादाजी के समय से ही कब्जा है। दस्तावेज हमारे पास हैं, लेकिन दादाजी ने कितने पैसे लिए थे, यह पता नहीं है। इसकी जानकारी न हमको है और ना ही जमीन पर कब्जाधारी के परिवार को है, क्योंकि यह उनके भी दादाजी के समय की बात है। ​पूर्व मुख्य सचिव रहे आर्य का कहना है कि अनुसूचित जातियों की जमीनों पर कब्जा होना सच्चाई है। इसकी जानकारी आप तहसीलदार और एसडीओ कोर्ट से कर सकते हो और यह तो रिकॉर्डेड मामले हैं। ऐसे सैकड़ों मामले हैं, जिनकी कोई जानकारी ही नहीं है।
गहलोत सरकार के समय रहे मुख्य सचिव
निरंजन आर्य नवंबर, 2020 में अशोक गहलोत सरकार के समय राजस्थान के मुख्य सचिव बने थे। वे जनवरी, 2022 में रिटायर हो गए। हालांकि बाद में अशोक गहलोत ने सीएम रहते हुए उन्हें सरकार में सलाहकार नियुक्त किया था, जो 2023 के विधानसभा चुनाव तक रहे। निरंजन आर्य मूल रूप से राजस्थान में पाली जिले के रायपुर-मारवाड़ के रास गांव के रहने वाले हैं।
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जितनी बड़ी पोस्ट, उतना दबाव ज्यादा
पूर्व आईएएस आर्य ने सम्मेलन में उपस्थित एससी अधिकारियों और कर्मचारियों से कहा था कि सफेदपोश नौकरी करना अलग बात है, जबकि सच्चाई यह है कि आज भी हमें हमारी जमीनों पर घुसने नहीं दिया जाता और आए दिन कब्जे हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने और हमारे पुरखों ने 100 फीसदी जातिगत आधार पर प्रताड़ना झेली है। आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों पर चोट सहन की है। जितनी बड़ी नौकरी होती है, उतना ही दबाव ज्यादा होता है। उन्होंने कहा कि मुख्य सचिव रहते हुए उन्होंने देखा कि आप जो करना चाहते हैं, सिस्टम आपको वह करने नहीं देता।
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राजस्थान के मारवाड़ में प्रताड़ना ज्यादा
आर्य ने कहा कि मारवाड़ विशेषकर पाली, सिरोही और जालोर में अनुसूचित जातियों के साथ प्रताड़ना के मामले में सबसे ज्यादा होते हैं। सरकारों ने इस पर काबू करने के लिए एससी के एसपी और कलेक्टर लगाए, लेकिन कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ क्योंकि सिस्टम बहुत बड़ा है। इस सिस्टम को बदलने के लिए अनुसूचित जातियों को सिस्टम का हिस्सा बनना ही होगा। उन्होंने कहा कि मैंने मुख्य सचिव रहते हुए कार्यस्थल के भेदभाव को नजदीक से देखा है। फाइल पर हम जो चाहते हैं, वह नहीं कर पा रहे हैं। किस सेक्शन में किसे लगाना है, कौनसी पत्रावली किसे दी जाए, किसके इंटरव्यू में किसे बिठाना है, किसका फाइनल निर्णय कौन करेगा जैसे मुद्दों पर जाति के आधार पर भेदभाव होता है और यह बड़ी चुनौती है।
सीएस की जमीन पर सवर्णों का कब्जा
— TheSootr (@TheSootr) September 26, 2025
➡ ये हैं निरंजन आर्य है। राजस्थान के मुख्य सचिव रह चुके हैं। इनके दादाजी की जमीन पर सवर्णों का कब्जा है। वे इसे एक साल से खाली नहीं करा रहे हैं। #Rajasthan#rajasthannews#NiranjanArya#Land#TheSootr |@BhajanlalBjp@RajCMO@RajGovOfficial… pic.twitter.com/vomLymxzL4
सिर्फ किताबी हैं हमारे साथ एकता की बातें
आर्य ने स्वयं के साथ जातिगत भेदभाव होना बताया। उन्होंने बताया कि वह पिछले दिनों एक वकील साहब से मिलने गए थे। वकील साहब ने खूब सत्कार किया और बाहर तक छोड़ने भी आए, लेकिन दूसरी बार गया तो वकील साहब ने मेरी रैंक पूछी तो मैंने उनके मनोभाव को समझते हुए कहा कि रैंक तो मेरी 380 थी, लेकिन डॉ. अंबेडकर के कारण आईएएस बन गया अन्यथा आईपीएस या आईआरएस ही बनता। यह एक ऐसी ग्रंथि है, जिससे साबित है कि हमारे साथ समाज में आज भी भावनात्मक और रागात्मक एकता नहीं हुई है। एकता की बातें सिर्फ किताबों, भाषणों और सिद्धांत तक ही सीमित है। कभी उनके भाव हमसे नहीं मिले। जब तक यह नहीं होगा, तब तक एकता ही बात करना बेमानी है।
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जूता बनाना हमारा काम, तो पोद्दार का नाम क्यों
अनूसूचित जातियों के साथ भेदभाव और प्रताड़ना पर उन्होंने कहा कि हम आर्थिक रूप कमजोर हैं। हमें कहा जाता है कि जूता बनाना हमारा काम है, तो जूतों पर पोद्दार का नाम क्यों है! सफाई को हमारा काम बताया जाता है, तो फिर बीवीजी जैसी कंपनियां यह काम क्यों कर रही हैं! गाने-बजाने को हमारा काम बताया जाता है, तो फिर हिंदू जिया बैंड का मालिक सिंधी क्यों है? लेकिन इनमें मजदूरी हमारे ही लोग कर रहे हैं। इसका कारण है कि अनुसूचित जातियों में व्यावसायिक साहस और पैसे ही कमी है, तो कहीं से उन्हें संरक्षण भी नहीं मिलता।