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Photograph: (TheSootr)
राजस्थान में राजस्थान पुलिस एटीएस (ATS) ने करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी कर फरार चल रहे एक होम्योपैथिक डॉक्टर और उसके भाई को मरीज बन कर गिरफ्तार किया है।
यह गिरफ्तारी ऑपरेशन 'डेविल लॉयन' (Operation Devil Lion) और ऑपरेशन 'टंडन' (Operation Tandon) के तहत की गई। गिरफ्तार किए गए आरोपी 2017 से सर्वोदय क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी में निवेश के नाम पर धोखाधड़ी कर फरार थे। इन दोनों पर 25-25 हजार रुपए का इनाम घोषित था। इन दोनों आरोपियों का नाम शैलेंद्र सिंह (Shailendra Singh) और उसका भाई ऋषिराज (Rishiraj) है, जो मूल रूप से बाड़मेर (Barmer) के गिरवा गांव के रहने वाले हैं।
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ऑपरेशन 'डेविल लॉयन' और 'टंडन' क्या है?
अपराधियों को पकड़ने के लिए एटीएस टीम ने एक बेहद सुनियोजित योजना बनाई। शैलेंद्र और ऋषिराज दोनों ही 2017 से पुलिस की नजरों से बचकर फरार थे। इनकी गिरफ्तारी के लिए एटीएस ने एक खास ऑपरेशन शुरू किया था। इस ऑपरेशन के तहत टीम ने पहले इन आरोपियों से संपर्क किया और इलाज के बहाने उनके फ्लैट तक पहुंचे। इसके बाद, एटीएस टीम ने दोनों आरोपियों को धर दबोचा।
अद्भुत बात यह है कि दोनों आरोपी भाई झोटवाड़ा (Jaipur) के एमडी रेजीडेंसी (MD Residency) में अपनी पहचान छुपाकर रह रहे थे। पुलिस की यह गिरफ्तारी उनके खिलाफ चल रही जांच का अहम मोड़ था, क्योंकि इससे न सिर्फ इन आरोपियों के अपराधों का पर्दाफाश हुआ, बल्कि इसके पीछे छिपे अन्य काले धंधों को भी उजागर किया गया।
ATS के IG, IPS विकास कुमार (IPS Vikas Kumar) ने बताया कि एटीएस को हवाला कारोबार पर भी नजर थी, क्योंकि पिछले कुछ समय से हवाला से जुड़े लेन-देन के संकेत मिल रहे थे। इसकी जानकारी मिलने के बाद एटीएस ने झोटवाड़ा में छानबीन की और पाया कि दोनों आरोपियों का नाम हवाला कारोबार से भी जुड़ा हुआ था। यह न केवल धोखाधड़ी का मामला था, बल्कि आतंकवादी फंडिंग की आशंका भी थी, जिसपर एटीएस ने खास ध्यान दिया।
सर्वोदय क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी का घोटाला क्या है?
शैलेंद्र सिंह और ऋषिराज पर आरोप है कि इन दोनों ने सर्वोदय क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी के माध्यम से निवेशकों से करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी की। साल 2009 में इन्होंने सर्वोदय क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी की शुरुआत की थी, और इसकी 28 शाखाएं सिरोही, पाली और जालोर जिलों में खोली थीं। यह सोसाइटी मूलतः निवेशकों से पैसे लेकर उनकी रकम में लाभ देने का दावा करती थी, लेकिन 2012-13 तक सोसाइटी ने अपने निवेशकों को उनकी मूल राशि और लाभ देना बंद कर दिया।
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निवेशकों का गुस्सा और केस की शुरुआत
इसके बाद, पीड़ित निवेशकों ने अपने पैसे वापस पाने के लिए पुलिस से शिकायत करना शुरू किया और मामला धीरे-धीरे अदालत तक पहुंच गया। इस धोखाधड़ी के शिकार हुए लोग इन आरोपियों के खिलाफ अपनी शिकायतें लेकर न्यायालय पहुंचे थे, जिसके कारण मामला और बढ़ता चला गया।
ATS की सक्रियता
एटीएस की सक्रियता और तत्परता ने सर्वोदय क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी धोखाधड़ी मामला को एक नया मोड़ दिया। जांच के दौरान एटीएस ने पता लगाया कि शैलेंद्र सिंह और ऋषिराज मेडिकल कैंपों में भी सक्रिय थे। इसका मतलब यह था कि ये दोनों भाई अपने पेशेवर काम का फायदा उठाकर न सिर्फ निवेशकों से धोखाधड़ी कर रहे थे, बल्कि मेडिकल सेवाओं के माध्यम से भी जनता को गुमराह कर रहे थे।
गिरफ्तार आरोपियों की जानकारी
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एटीएस ने शैलेंद्र सिंह और ऋषिराज को गिरफ्तार किया, वे मूल रूप से बाड़मेर (Barmer) के गिरवा गांव (Girva Village) के निवासी हैं। इनका परिवार सिरोही की PWD कॉलोनी में भी रहता था। इन दोनों भाइयों के पिता पहले ही पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जा चुके थे। उनका पिता देना बैंक (Dena Bank) का कर्मचारी था और इन दोनों भाइयों के द्वारा किए गए अपराधों में शामिल था।
विकास कुमार ने कहा कि यह गिरफ्तारी राज्य पुलिस के लिए बड़ी सफलता थी, क्योंकि इससे न सिर्फ निवेशकों के पैसे लौटाने की उम्मीद जगी, बल्कि इससे जुड़े अन्य अपराधों के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी मिली।
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एटीएस की भूमिका और समर्पण
एटीएस (Anti Terrorist Squad) का काम सिर्फ आतंकवाद से निपटना नहीं है, बल्कि ऐसे मामलों पर भी नजर रखना है, जहां आर्थिक अपराधों का कनेक्शन आतंकवाद से जुड़ा हो सकता है। राजस्थान एटीएस ने इस केस में अद्भुत कार्य किया, क्योंकि इस मामले में न सिर्फ आर्थिक धोखाधड़ी को उजागर किया गया, बल्कि हवाला नेटवर्क और आतंकवाद से जुड़ी संभावनाओं पर भी काम किया गया।
इस घटना से यह भी साबित होता है कि एटीएस की टीम सिर्फ आतंकवादियों तक सीमित नहीं है, बल्कि राज्य में अन्य प्रकार के अपराधों पर भी गहरी नजर रखती है।
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