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Photograph: (TheSootr)
राजस्थान में हर महीने औसतन 20 मासूम बेटियों को झाड़ियों, अस्पतालों या फिर सर्द सन्नाटे में सड़क पर फेंक दिया जाता है। इसके बाद उनकी किस्मत का फैसला होता है, क्या वे बचेंगी, शिशुगृह जाएंगी या किसी परिवार का हिस्सा बनेंगी। यह स्थिति समाज और सरकार दोनों के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। चाइल्डलाइन इंडिया और यूनिसेफ की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में पिछले पांच वर्षों (2020-2024) में कुल 1,332 मासूम बच्चों को इधर-उधर छोड़ दिया गया है। इनमें से लगभग 90% (1,199) बच्चियां हैं।
इस समस्या का मुख्य कारण समाजिक दबाव और आर्थिक तंगी है, जिसके कारण माता-पिता, खासकर मां, बच्चियों को छोड़ देती हैं। जयपुर, उदयपुर और बीकानेर जिलों में इस प्रकार के मामले सबसे अधिक दर्ज किए गए हैं।
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राजस्थान में परित्याग के बढ़ते मामले
2024 की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में 1,332 बच्चों को परित्याग का शिकार होना पड़ा है। इनमें से अधिकांश बच्चे (90%) लड़कियां हैं। इन मामलों में 60% बच्चों का परित्याग अवैध संतानों या पारिवारिक विवादों के कारण हुआ है। सबसे ज्यादा मामले जयपुर, उदयपुर और बीकानेर जिलों में देखने को मिले हैं।
इस बारे में राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता मनन चतुर्वेदी ने कहा कि हमें सोचना होगा कि एक तरफ हम रक्षाबंधन मना रहे हैं। दूसरी तरफ बेटियों को सड़कों पर फेंक रहे हैं। यह दोहरा चरित्र रिश्तों को खोखला कर रहा है। लोग लड़कों से उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन खरी उतर रही बेटियां। लड़कियां अपनी चुप्पी को ताकत बनाकर आगे बढ़ रही हैं। समय सबसे बड़ा सबक है, इसे हर माता-पिता को समझना चाहिए।
बच्चों के परित्याग के प्रमुख कारण
सामाजिक दबाव और आर्थिक तंगी, इन दोनों के चलते अधिकांश माताएं अपनी बच्चियों को छोड़ देती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 60% मामलों में यह अवैध संतानों से जुड़ा हुआ है, जबकि 30% मामलों में पारिवारिक विवाद और लिंग आधारित भेदभाव (gender bias) कारण बने हैं।
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नहीं चल पाता बच्चे छोड़ने वाले माता-पिता का पता
2024 तक परित्याग किए गए बच्चों में से केवल 376 (28%) के माता-पिता का पता चला है। इनमें से 200 मामलों में जुविनायल जस्टिस एक्ट, 2015 की धारा 75 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। इन मामलों में 150 माता-पिता को 1-3 साल की सजा और 10,000-25,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया है।
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राजस्थान में गोद लेने की प्रक्रिया क्या है?
गोद लेने की प्रक्रिया अभी भी बहुत लंबी और जटिल है, जिससे बच्चियों को एक सुरक्षित परिवार मिलना मुश्किल हो जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, गोद लेने की प्रक्रिया में औसतन 2 से 3 साल की देरी हो जाती है। यह समय बच्चियों के जीवन में अनिश्चितता और तनाव पैदा करता है।
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राजस्थान में परित्याग के मामले: जिलों के हिसाब से आंकड़े
राजस्थान के विभिन्न जिलों में परित्याग के मामलों की संख्या अलग-अलग रही है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि कुछ जिलों में इस समस्या का ज्यादा प्रभाव देखने को मिला है।
जयपुर
जयपुर जिले में 450 मामले (34%) दर्ज हुए हैं। खासकर वैशाली नगर, टोंक रोड और शास्त्री नगर जैसे क्षेत्रों में बच्चियां अस्पतालों और मंदिरों के पास छोड़ी गई हैं।
उदयपुर
उदयपुर जिले में 300 मामले (23%) दर्ज हुए हैं। यहां के डबोक और हिरण मगरी क्षेत्र में गरीबी और सामाजिक दबाव के कारण इस समस्या का सामना किया गया है।
बीकानेर और कोटा
बीकानेर में 250 मामले (19%) और कोटा में 150 मामले (11%) दर्ज किए गए। इन जिलों में भी अवैध संतानों की संख्या अधिक रही है।
बाड़मेर और जोधपुर
बाड़मेर और जोधपुर में क्रमश: 100 और 80 मामले दर्ज हुए हैं, जहां अवैध संतानों के मामले ज्यादा देखने को मिले हैं।
राजस्थान में बेटियों का परित्याग कैसे रुके?राजस्थान में बेटियों का परित्याग एक गहरी सामाजिक समस्या बन चुकी है। इसके समाधान के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं:
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बच्चों को बचाने के सरकारी और सामाजिक प्रयास
राजस्थान सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठन इस समस्या से निपटने के लिए कई उपायों पर काम कर रहे हैं। सरकार ने 2024 में 50 करोड़ रुपए के बजट से 20 नए क्रैडल्स (Cradles) और 10 गोद लेने वाली एजेंसियां स्थापित की हैं। इसके अलावा, नमो ड्रोन दीदी योजना की तर्ज पर स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups - SHG) को बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।
क्रैडल्स और शेल्टर होम
राज्य सरकार ने 67 क्रैडल्स स्थापित किए हैं, लेकिन इनमें से केवल 20% प्रभावी पाए गए हैं। इसके बावजूद, चाइल्डलाइन इंडिया ने जयपुर और उदयपुर में 500 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया है।
चाइल्डलाइन इंडिया का योगदान
चाइल्डलाइन इंडिया ने राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में बच्चों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं। इसके अलावा, बाल कल्याण के लिए प्रशिक्षण और सहायता देने की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
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राजस्थान में पांच वर्ष में बच्चों के परित्याग के आंकड़े क्या हैं?
वर्ष | परित्यक्त बच्चे | लड़कियां (%) | माता-पिता का पता चला | गोद लिए गए बच्चे |
---|---|---|---|---|
2020 | 250 | 90% (225) | 75 (30%) | 100 (40%) |
2021 | 280 | 92% (258) | 78 (28%) | 110 (39%) |
2022 | 270 | 89% (240) | 80 (30%) | 120 (44%) |
2023 | 260 | 90% (234) | 70 (27%) | 115 (44%) |
2024 | 272 | 91% (247) | 73 (27%) | 125 (46%) |
स्रोत: यूनिसेफ, सेंट्रल एडॉप्शपन रिसोर्स, राजस्थान स्वास्थ्य विभाग
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बच्चों को बचाने में समाज की जिम्मेदारी
समाज को राजस्थान में बच्चों का परित्याग की इस गंभीर समस्या को लेकर जागरूक होना होगा। हमें यह समझना होगा कि एक ओर हम रक्षाबंधन जैसे त्योहार मना रहे हैं, दूसरी ओर हम अपनी बेटियों को सडक़ों पर फेंक रहे हैं। राजस्थान में बालिकाओं की स्थिति को लेकर यह दोहरा चरित्र हमारे रिश्तों को कमजोर कर रहा है। हमें समाज के हर वर्ग को इस मुद्दे के प्रति जागरूक करना होगा और एक मजबूत सामाजिक ढांचा तैयार करना होगा, जो बेटियों के लिए सुरक्षित और संरक्षित वातावरण तैयार करे। हालांकि, राजस्थान बाल आयोग और चाइल्ड हेल्पलाइन जैसे संगठन इस दिशा में कार्य कर रहे हैं।