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Photograph: (The Sootr)
राजस्थान के बाड़मेर जिला के बरियाड़ा और खोड़ाल गांव एक गहरे संकट में फंस गए हैं। यहां के लोग पिछले कई दिनों से अपनी सांस्कृतिक, पर्यावरणीय विरासत को बचाने के लिए हिम्मत के साथ आवाज उठा रहे हैं। दसअसल, यहां सोलर कंपनी धड़ल्ले से पेड़ों की कटाई कर रही हैं। इसके विरोध में शिव उपखंड के बरियाड़ा और खोड़ाल गांव के लोग धरना दे रहे हैं। शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी भी रविवार को धरना स्थल पर पहुंचे। उन्होंने वहीं रात गुजारी। पेड़ काटने के वीडियो भी सामने आए हैं। इनमें खेजड़ी के पेड़ों को जड़ से उखाड़ा जा रहा है।
इन गांवों की जमीन पर बड़ी सोलर कंपनियां ENGIE और JAKSON GREEN, अपने सौर ऊर्जा प्लांट के लिए पेड़ों को काटने में जुटी हैं। यह पारंपरिक खेजड़ी वृक्ष है, जो इस क्षेत्र के लिए सिर्फ पेड़ नहीं, बल्कि जीवन का आधार है।
सोलर कंपनियां काट रहीं धड़ल्ले से पेड़
बरियाड़ा और खोड़ाल में कटे जाने वाले पेड़ सिर्फ लकड़ी के टुकड़े नहीं हैं, वे तो यहाँ के जीवन, जल संरक्षण, पशु और पक्षियों की सुरक्षा का आधार हैं। खड़ीन क्षेत्र की भूमि पर ये पेड़ बरसात के मौसम में पानी को समेटते हैं और सूखे के समय जीवन देने का काम करते हैं। लेकिन कंपनी द्वारा इन पेड़-जमीन को उजाड़ने से अब किसान और वन्यजीव दोनों बेहाल हैं। खेतों तक पहुंचना मुश्किल हो चुका है क्योंकि प्लांट की बाउंड्री वॉल ने ग्रामीणों के रास्ते बंद कर दिए हैं।
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खेजड़ी बचाने 363 लोगों ने दी थी जानखेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए खेजड़ली आंदोलन, 12 सितंबर 1730 को, खेजड़ली गांव में हुआ था। जहाँ महाराजा अभय सिंह के आदेश पर महल बनाने के लिए खेजड़ी के पेड़ों को काटा जा रहा था। बिश्नोई समुदाय खेजड़ी के पेड़ को पवित्र मानता है और अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में, 363 बिश्नोई लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस घटना को खेजड़ली नरसंहार के रूप में जाना जाता है। इस घटना ने पूरे भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक आंदोलन को प्रेरित किया, और 12 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। खेजड़ली आंदोलन को दुनिया का पहला अहिंसक वृक्ष-बचाओ आंदोलन माना जाता है। |
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विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने धरनास्थल पर गुजारी रात
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार प्रशासन और कंपनी से कॉल किया, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। पेड़ों की कटाई जो पहले से चल रही थी, जब ग्रामीणों और विधायक को इसकी भनक लगी, तो कंपनियों ने नुकसान के सबूत मिटाने के लिए पेड़ों को आग लगा दिया। इसी घटना के बाद से लोग और भी ज्यादा गुस्से में आ गए और धरना प्रदर्शन शुरू किया। स्थानीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी भी इस आंदोलन में शामिल हुए। उन्होंने वहां धरना स्थल पर रात बिताई और प्रशासन से कार्रवाई की मांग की।
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शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने साफ कहा, "यहाँ की कंपनी सिर्फ मुनाफा कमाने के लिए प्रदेश के पर्यावरण और जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रही है। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
#खेजड़ी_बचाओ सोशल मीडिया पर ट्रेंड
ग्रामीणों की लड़ाई सोशल मीडिया तक पहुंच गई। #खेजड़ी_बचाओ के साथ यह मुद्दा ट्विटर और अन्य प्लेटफॉर्म पर एक ट्रेंड बन गया। अनेक पर्यावरण प्रेमी और नागरिक इस आंदोलन को जिंदादिली से समर्थन दे रहे हैं। यह ऑनलाइन समर्थन प्रशासन और कंपनी दोनों पर दबाव बनाने में सहायक साबित हो रहा है। स्थानीय लोगों का संघर्ष अब पूरे प्रदेश की चिंता बन गया है।
#खेजड़ी_बचाओ pic.twitter.com/1sC5nAGLbd
— Ravindra Singh Bhati (@RavindraBhati__) August 3, 2025
इस वृक्ष खेजड़ी को आज बेरहमी से काटा जा रहा है, उसकी जड़ों सहित उसको आग में जलाया जा रहा है,और हम चुपचाप देख रहे हैं,उठो, आवाज़ उठाओ, अपने वृक्ष को बचाओ, क्योंकि इसके बिना हमारी जड़ें सूख जाएंगी#खेजड़ी_बचाओ pic.twitter.com/1coA0oPUaw
— काका🐪 (@Kakaraj15) August 3, 2025
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खेजड़ी का पर्यावरण और सामाजिक महत्व
खेजड़ी पेड़ केवल किसानों के लिए जरुरी नहीं, बल्कि यह पूरे मरुस्थलीय इलाके के लिए अमूल्य है। यह पेड़ मिट्टी को कटाव से बचाता है, पानी को संगृहीत करता है और साथ ही शीतल छाया देता है। यह झाड़ी और पेड़ वन्यजीवों और पक्षियों के लिए भी आश्रय स्थल हैं। इसके बिना पर्यावरण संतुलन बिखर जाएगा गरीब किसान, जिनकी आय इन खेतों तक निर्भर है, वे इस कटाई से भारी परेशान हैं और इन पेड़ों के बिना वे पूरी तरह उजड़ सकते हैं।
पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या जरूरी है?
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स्थानीय पेड़ों और वनस्पतियों का संरक्षण।
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भूमि और जल संरक्षण के लिए पर्यावरण नियमों का कड़ाई से पालन।
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ग्रामीणों के साथ संवाद और उनके अधिकारों की रक्षा।
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कंपनियों की जिम्मेदारी का निर्धारण।
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सोशल मीडिया और समुदाय सहयोग से जागरूकता।
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