सरकार ने लगाए साढ़े 3 करोड़ के पौधे, लापता हो गए सागौन,आंवला और बांस के 50 हजार पेड़

छत्तीसगढ़ सरकार ने साढ़े तीन करोड़ के पौधे लगाए। इनमें सागौन,आंवला और बांस जैसे मजबूत और लंबी उम्र वाले पौधे शामिल थे। इसका मकसद था वनों को फिर से हरा,भरा और घना बनाना। जब इन पौधों की पड़ताल की तो पता चला कि इनमें से 50 हजार पेड़ का तो पता ही नहीं है।

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Arun Tiwari
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रायपुर: सरकार ने उजड़े वनों को संवारने के लिए एक मिशन शुरु किया। इसकी शुरुवात राजनांदगांव से हुई। यहां पर सरकार ने साढ़े तीन करोड़ के पौधे लगाए। इनमें सागौन,आंवला और बांस जैसे मजबूत और लंबी उम्र वाले पौधे शामिल थे। इसका मकसद था वनों को फिर से हरा,भरा और घना बनाना। जब इन पौधों की पड़ताल की तो पता चला कि इनमें से 50 हजार पेड़ का तो पता ही नहीं है।

यानी लगने वाले पेड़ों में से एक चौथाई पेड़ गायब हैं। अब ये पौधे सूख गए हैं या फिर लगाए ही नहीं गए, यह एक बड़ा सवाल है क्योंकि सरकारी कागज भी बहुत उर्वरा होता है और इस कागज में भी पेड़ उग आते हैं। द सूत्र ने जब पड़ताल की तो पता चला कि जहां जहां पेड़ लगाए गए थे,वहां वहां के पैच में थोड़े थोड़े पेड़ सूख चुके बता दिए गए। आइए आपको बताते हैँ कि कहां गए 50 हजार पेड़।

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पेड़ लगाने या कमाई करने का मिशन 

 एक तरफ छत्तीसगढ़ में पेड़ों की कटाई जारी है तो दूसरी तरफ सरकार को उजड़े वनों को संवारने की चिंता हो रही है। इसके लिए एक मिशन शुरु किया गया है। इस मिशन के तहत राजनांदगांव में साढ़े तीन करोड़ रुपए खर्च कर करीब ढाई लाख पौधे रोपे गए। इन पौधों में सागौन, अर्जुन, बांस, करंज, शीशम, जामुन, आंवला, सीरस, कठहल, बहेड़ा, इमली और शीशम जैसे लंबी उम्र वाले और मजबूत पेड़ लगाए गए।

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जानकारों के मुताबिक इस तरह के पेड़ों के जीवित रहने का अनुपात ज्यादा होता है। इस तरह के पेड़ लगाए ही इसलिए जाते हैं ताकि वे जीवित रहें। वन विभाग ने पैसे तो पूरे खर्च कर दिए लेकिन जहां जहां पेड़ लगाए हैं वहां पर थोड़े थोड़े पेड़ गायब हैं। इनकी पूरी संख्या 50 हजार है। या तो लापरवाही के चलते सूख गए या फिर ये पेड़ लगाए ही नहीं गए और ये पैसा जेब में चला गया। ये पेड़ लगाए भी ऐसे गए हैं ताकि कोई इन गायब पेड़ों को ढूंढ भी न पाए।   

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यहां पर इतने खर्च में इतने पौधे लगाए गए 

 बाघनदी - 21 लाख खर्च, 17000 पौधे लगाए, 2 हजार पौधे सूख गए। 
भर्रोटोला - 27 लाख खर्च, 22 हजार पौधे लगाए, 5 हजार पौधे सूख गए।
घोघरेपी - 14 लाख खर्च, 7500 पौधे लगाए, 1200 पौधे सूख गए।
गेरुघाट - 5 लाख खर्च, 4 हजार पौधे लगाए, 1 हजार पौधे सूख गए।
गेरुघाट - 18 लाख खर्च, 15 हजार पौधे लगाए, 3 हजार पौधे सूख गए।
गेरुघाट - 1 करोड़ खर्च, 72 हजार पौधे लगाए, 14 हजार पौधे सूख गए।
खुज्जी - 42 लाख खर्च, 33 हजार पौधे लगाए, 7 हजार पौधे सूख गए।
पानाबरस - 13 लाख खर्च, 11 हजार पौधे लगाए, 5 हजार पौधे सूख गए।
बिटेझर - 13 लाख खर्च, 11 हजार पौधे लगाए, 4 हजार पौधे सूख गए।
बाघनदी - 80 लाख खर्च, 55 हजार पौधे लगाए, 5 हजार पौधे सूख गए।
बाघनदी - 20 लाख खर्च, 12 हजार पौधे लगाए, 2 हजार पौधे सूख गए।
चौकी - 48 लाख खर्च, 71 हजार पौधे लगाए, 7 हजार पौधे सूख गए।
कुल पौधे लगाए - 2.5 लाख
कुल पौधे सूखे या नहीं लगाए गए - 50 हजार
कुल खर्च - 3 करोड़ 58  लाख रुपए

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यहां पर यह सवाल खड़ा है कि यह पौधे सरकार को सूखे हुए बताए गए लेकिन असल में ये पौधे जमीन पर लगे हैँ या कागजों में लगे हैं यह पता नहीं है। इन पौधों के गायब होने का सीधा मतलब है कि इनका फंड कहीं और चला गया है। छोटे छोटे पैच में थोड़े थोड़े पेड़ इसलिए गायब किए गए हैं ताकि इसका कोई पता ही न लगा सके। द सूत्र इसीलिए यह रिपोर्ट लाया है ताकि पता चल सके कि किस पैच में सूखने के नाम पर कितने पौधे नहीं लगाए गए। यही है छत्तीसगढ़ का सुशासन।  

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