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Photograph: (The Sootr)
राजस्थान का चित्तौड़गढ़ दुर्ग भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह किला न केवल अपनी ऐतिहासिक गाथाओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ स्थित कुछ विशेष धार्मिक स्थल भी आकर्षण का केंद्र हैं। इन स्थानों में एक अत्यंत विशेष और दुर्लभ दृश्य देखने को मिलता है, जो भगवान गणेश (Ganesh) और कुबेर (Kuber) की मूर्तियों का संगम है। यह मूर्तियां चित्तौड़गढ़ दुर्ग के एक मकान में विराजमान हैं, जो आमतौर पर देखी जाने वाली गणेश जी की मूर्तियों से काफी अलग हैं।
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भगवान गणेश और कुबेर का संगम
धार्मिक परंपराओं में भगवान गणेश को ज्ञान (Knowledge), बुद्धि (Wisdom), और सफलता (Success) का प्रतीक माना जाता है, जबकि भगवान कुबेर को धन (Wealth), वैभव (Opulence), और समृद्धि (Prosperity) का देवता कहा जाता है। आमतौर पर गणेश जी की मूर्ति उनके दोनों पत्नियों रिद्धि (Riddhi) और सिद्धि (Siddhi) के साथ स्थापित की जाती है। लेकिन चित्तौड़गढ़ में विराजमान यह विशेष मूर्तियां एक साथ गणेश जी और कुबेर जी का संगम प्रस्तुत करती हैं। यह दृश्य न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन में सफलता और समृद्धि के संतुलन की आवश्यकता को भी दर्शाता है।
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भगवान गणेश और कुबेरजी की प्रतिमाएं स्थापित करने वाले परिवार के सतीश सुखवाल ने बताया कि यह मूर्तियां लगभग 200 से 250 साल पुरानी हैं और उनके पूर्वजों ने ही इन्हें स्थापित किया था। यह मूर्तियां शुरुआत में एक कच्चे मकान की दीवार में थीं। अब यह स्थान पक्का हो गया है, लेकिन मूर्तियां आज भी उसी स्थान पर मौजूद हैं। यह परंपरा उनके परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और पूरे श्रद्धा भाव से इनकी पूजा की जाती है।
भगवान गणेश और कुबेर मूर्तियों की उम्र और इतिहास
चित्तौड़गढ़ गणेश और कुबेर की मूर्तियां लगभग 200 से 250 साल पुरानी (200 to 250 years old) हैं। सतीश सुखवाल, जो इन मूर्तियों के मालिक हैं, बताते हैं कि यह मूर्तियां उनके पूर्वजों द्वारा स्थापित की गई थीं। शुरुआत में ये मूर्तियां एक कच्चे मकान की दीवार में रखी गई थीं, लेकिन अब यह स्थान पक्का हो गया है। इसके बावजूद, मूर्तियां उसी स्थान पर स्थापित हैं, जहां परंपरा के अनुसार पीढ़ी दर पीढ़ी इनकी पूजा की जाती है। यह परंपरा आज भी पूरे परिवार द्वारा श्रद्धा भाव से निभाई जाती है।
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गणेश चतुर्थी की विशेष पूजा
हर वर्ष गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के अवसर पर यहाँ विशेष पूजा और श्रृंगार का आयोजन किया जाता है। इस दिन पूरे परिवार के लोग मिलकर दीप जलाते हैं, भोग चढ़ाते हैं, और भजन-कीर्तन (Bhajan-Kirtan) करते हैं। इस अवसर पर यह स्थान एक धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बन जाता है, जहां सभी परिवार के सदस्य मिलकर भगवान गणेश और कुबेर की पूजा करते हैं। इस पूजा का उद्देश्य न केवल धार्मिक आस्थाओं को जागृत करना है, बल्कि सफलता और समृद्धि की कामना करना भी है।
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चित्तौड़गढ़ का किला क्या है?चित्तौड़गढ़ किला, जिसे राजस्थान का सिरमौर और भारत का सबसे बड़ा किला कहा जाता है, राजस्थान की गौरवमयी धरोहर का प्रतीक है। यह किला न केवल अपनी ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह शक्ति, भक्ति, त्याग और बलिदान के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। मुख्य बिंदु:
किले के अंदर देखने योग्य स्थान:
किले की प्रसिद्धि:
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भगवान गणेश और कुबेर की मूर्तियों का महत्व क्या है?
सफलता और समृद्धि का प्रतीक
यह विशेष जोड़ी का दर्शन केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि यह जीवन में सफलता (Success) और समृद्धि (Prosperity) के संतुलन की आवश्यकता को भी दर्शाता है। गणेश जी का आशीर्वाद बुद्धि और ज्ञान के लिए है, जबकि कुबेर जी का आशीर्वाद धन और वैभव के लिए है। जब दोनों देवता एक साथ विराजमान होते हैं, तो यह संकेत है कि जीवन में ये दोनों पहलू – ज्ञान और धन – एक दूसरे के साथ चलने चाहिए।
जीवन में संतुलन का संदेश
यह संगम यह संदेश देता है कि केवल धन या केवल बुद्धि से सफलता प्राप्त नहीं होती, बल्कि दोनों का संतुलन बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। गणेश जी और कुबेर जी की जोड़ी जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलुओं – बुद्धि और धन – का प्रतीक मानी जाती है, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में सफलता और समृद्धि लाने के लिए आवश्यक हैं।
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चित्तौड़गढ़ में यह दुर्लभ दृश्य
चित्तौड़गढ़ में इस अद्भुत संगम को देखना उन लोगों के लिए एक दुर्लभ और भाग्यशाली अनुभव होता है जो इस स्थान पर जाते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व ने इसे एक पर्यटन स्थल भी बना दिया है। जो लोग यहां यात्रा करते हैं, वे न केवल भगवान गणेश और कुबेर के आशीर्वाद से समृद्ध होते हैं, बल्कि वे इस प्राचीन परंपरा का हिस्सा भी बनते हैं, जो सदियों से चली आ रही है।
यह परंपरा कैसे जारी है
परिवार के सदस्य अब भी इस परंपरा को बनाए रखते हैं और श्रद्धा भाव से मूर्तियों की पूजा करते हैं। इस परंपरा का निर्वाह करने से उन्हें जीवन में मानसिक शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह एक सांस्कृतिक धरोहर है जो न केवल परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है।
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