आरपीएस दिव्या मित्तल को क्लीन चिट, सरकार ने अभियोजन स्वीकृति देने से किया इनकार

राजस्थान में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने वाली एसीबी को एक बड़ा झटका लगा है। मामला आरपीएस दिव्या मित्तल से जुड़ा है। उन पर दो करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने का आरोप था। राज्य सरकार ने अभियोजन स्वीकृति देने से इनकार कर दिया है।

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Kamlesh Keshote
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान में एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई करने वाली एक महत्वपूर्ण जांच में सरकार की ओर से बड़ा झटका लगा है। यह मामला राजस्थान पुलिस सेवा की अधिकारी दिव्या मित्तल से जुड़ा है। दिव्या मित्तल पर दो करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने का आरोप था। जिसके बाद अब राज्य सरकार ने अभियोजन स्वीकृति देने से इनकार कर दिया है। जिसके कारण दिव्या मित्तल को क्लीन चिट मिल गई है।

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अदालत में ठोस सबूत पेश नहीं कर पाए

ACB ने पिछले तीन वर्षों में इस घूसखोरी के मामले की गहन जांच की। लेकिन अदालत में मामले को आगे बढ़ाने के लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाए। इसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार ने इस मामले को खारिज कर दिया। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या बिना किसी ठोस आधार के इतनी उच्च रैंक की अधिकारी को गिरफ्तार किया गया था। 

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16 करोड़ की नशीली दवाइयों का मामला

यह विवाद 2021 में शुरू हुआ, जब अजमेर और जयपुर में करीब 16 करोड़ रुपए की कीमत की अवैध नशीली दवाइयों की खेप पकड़ी गई थी। इस मामले की जांच की जिम्मेदारी दिव्या मित्तल को सौंपी गई थी। जांच के दौरान एक दवा कंपनी के मालिक से कथित रूप से रिश्वत की मांग की गई थी। इस घूसखोरी का मामला बाद में 50 लाख रुपए तक घटित हुआ।

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ट्रैप फेल होने के बावजूद गिरफ्तारी

रिश्वत की शिकायत मिलने पर ACB ने एक ट्रैप बिछाने की कोशिश की। लेकिन यह असफल रहा। इसके बावजूद 16 जनवरी, 2023 को RPS Divya Mittal को गिरफ्तार किया गया था। अब जब सरकारी अनुमति नहीं मिली है, तो ACB की कार्रवाई पर सवाल उठने लगे हैं। क्या बिना पर्याप्त साक्ष्यों के दिव्या मित्तल को गिरफ्तार किया गया था। 

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आइए जानते हैं दिव्या मित्तल कौन हैं 

आरपीएस दिव्या मित्तल राजस्थान पुलिस सेवा 2010 के बैच की अधिकारी हैं। दिव्या मित्तल भ्रष्टाचार के मामले को लेकर चर्चा में आई थी। साल 2023 में दो करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने के आरोप में एसीबी ने इन्हें अजमेर से गिरफ्तार किया था। दिव्या मित्तल तब अजमेर में एसओजी में एडिशनल एसपी के तौर पर तैनात थी।

आरपीएस दिव्या मित्तल का परिवार मूलतः चूरू जिले के राजगढ़ का रहने वाला है। दिव्या मित्तल ने 2007 में आरएएस परीक्षा में सफलता प्राप्त की थी। लेकिन अंतिम परिणाम पर कोर्ट स्टे आ गया था। जो 2010 में हट गया। दिव्या मित्तल ने इसी बैच से राजस्थान पुलिस सेवा ज्वाइन की थी।

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दिव्या मित्तल निलंबित क्यों हुई थीं 

एसओजी की तत्कालीन एडिशनल एसपी दिव्या मित्तल को रिश्वत मांगने के आरोप में साल 2023 में एसीबी ने गिरफ्तार किया था। एसीबी ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की धारा 17ए के तहत बिना स्वीकृति की आरपीएस दिव्या मित्तल को अरेस्ट कर लिया था। जमानत मिलने के बाद एसीबी ने आरपीएस दिव्या मित्तल के खिलाफ एक और केस दर्ज किया था। दिव्या मित्तल के खिलाफ एसीबी ने आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज किया था। अब साक्ष्यों के अभाव में आरपीएस दिव्या मित्तल को क्लीन चिट दी गई है।

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ACB पर उठ रहे सवाल

सरकारी सूत्रों के मुताबिक, अभियोजन स्वीकृति से इनकार करने के पीछे कानूनी खामियां प्रमुख कारण हैं। सबसे बड़ा सवाल भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 17A के तहत उच्च अधिकारियों से आवश्यक स्वीकृति की अनुपस्थिति पर उठ रहा है। ACB ने जो ऑडियो रिकॉर्डिंग पेश की थी। उस पर भी गंभीर आरोप लगे हैं। हालांकि फोरेंसिक साइंस लैब ने ऑडियो की सत्यता की पुष्टि की थी, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि रिकॉर्डिंग में आवाज किसकी थी।

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कार्मिक विभाग ने नहीं दी अभियोजन स्वीकृति 

अभियोजन स्वीकृति का मतलब है कि सरकार किसी लोक सेवक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की अनुमति देती है। इस मामले में कार्मिक विभाग ने दिव्या मित्तल के खिलाफ केस चलाने की अनुमति देने से इनकार किया। सरकार का यह निर्णय दर्शाता है कि ACB की जांच में पर्याप्त सबूत नहीं थे। जिससे यह मामला अदालत में मजबूती से पेश किया जा सकता।

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मुख्य बिंदु 

अभियोजन स्वीकृति: इसका मतलब है कि सरकार किसी लोक सेवक के खिलाफ कोर्ट में मामला चलाने की आधिकारिक अनुमति देती है। इसके बिना मामले को अदालत में आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।

रिश्वत का आरोप: दिव्या मित्तल पर आरोप था कि उन्होंने नशीली दवाइयों के मामले में एक दवा कंपनी के मालिक से 2 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगी थी। ताकि वे केस से उसका नाम हटा सकें।

सबूतों का अभाव: ACB की जांच पर सवाल इस कारण उठ रहे हैं। क्योंकि अधिकारियों ने आवश्यक स्वीकृति नहीं ली थी और सबूतों की विश्वसनीयता पर भी संदेह जताया गया है। इसके बाद राज्य सरकार ने अभियोजन स्वीकृति देने से इनकार कर दिया।

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