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Photograph: (the sootr)
राजस्थान हाई कोर्ट ने पंचायत सदस्यों को हटाने से जुड़े कई मामलों पर संज्ञान लेते हुए कहा है कि वर्ष 1996 के राजस्थान पंचायती राज नियमों के नियम 22 में निर्धारित अनिवार्य प्रक्रिया का पालन किए बिना हटाने के आदेश पारित किए जा रहे हैं। जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने कहा कि जांच अधिकारी इन नियमों से भली-भांति अवगत नहीं हैं। इस कारण आदेशों में गंभीर त्रुटियां हो रही हैं।
कोर्ट ने पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिव, संभागीय आयुक्तों और जिला कलेक्टरों को निर्देश दिया कि वे सभी पंचायत समितियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को नियम 22 के महत्व के बारे में सूचित करें, ताकि भविष्य में चुने हुए जनप्रतिनिधियों को हटाते समय ऐसी गलतियों से बचा जा सके।
जनता की आवाज हैं जनप्रतिनिधि
कोर्ट (Court Order) ने कहा कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुना हुआ प्रतिनिधि जनता की आवाज होता है। उसे उसके पद से हटाने में अत्यधिक सावधानी व निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। राजस्थान पंचायती राज नियम-1996 के नियम 22 के अनुसार, राज्य सरकार कार्रवाई से पहले मुख्य कार्यकारी अधिकारी या किसी अन्य अधिकारी से प्रारंभिक जांच करवा सकती है और एक महीने के भीतर रिपोर्ट मंगवाती है।
यदि राज्य सरकार को यह प्रतीत होता है कि धारा 38(1) के तहत कार्रवाई आवश्यक है, तो स्पष्ट आरोप तय किए जाते हैं और संबंधित सदस्य से जवाब मांगा जाता है। इसमें साक्ष्यों की जांच, गवाहों से पूछताछ, विस्तृत जांच रिपोर्ट और प्रत्येक आरोप पर स्पष्ट निष्कर्ष देने की प्रक्रिया शामिल है।
अदालत कई मामले देख रही
उच्च न्यायालय (High Court) ने टिप्पणी की कि अदालत देख रही है कि कई मामलों में पंचायत सदस्य को हटाने के आदेश नियम 22 की आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किए बिना पारित किए गए। ऐसा प्रतीत होता है कि जांच अधिकारी इन नियमों से भली-भांति परिचित नहीं हैं। इसलिए सभी संभागीय आयुक्तों, जिला कलेक्टरों और पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देशित किया जाता है कि वे सभी पंचायत समितियों के सीईओ को इस नियम का सख्ती से पालन कराने के निर्देश दें, ताकि भविष्य में इस प्रकार की त्रुटियों से बचा जा सके।
यह है पूरा मामला
यह आदेश ग्राम पंचायत पंवार, पंचायत समिति देवली के प्रशासक की याचिका में पारित किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों पर नियम 22 के तहत प्रक्रिया अपनाए बिना पद से हटा दिया गया। चार्जशीट दिए जाने के बाद कोई विधिवत जांच नहीं की गई, न गवाहों के बयान दर्ज किए गए और ना ही अन्य साक्ष्यों पर विचार किया गया। केवल याचिकाकर्ता के उत्तर के आधार पर उसे पद से हटा दिया गया।
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पूरी प्रक्रिया अपनाना अनिवार्य
राज्य सरकार के वकील ने भी स्वीकार किया कि न तो गवाहों के बयान दर्ज किए गए और ना ही अन्य दस्तावेजों पर विचार किया गया। कोर्ट ने कहा है कि लोकतंत्र में चुना हुआ प्रतिनिधि जनता की आवाज होता है और जब तक उसका आचरण निंदनीय सिद्ध न हो या उसने अपने पद का दुरुपयोग ना किया गया हो, तब तक उसे पूरे कार्यकाल तक पद पर बने रहने का अधिकार है।
यदि आरोप हैं, तो 1996 के नियम 22 के अंतर्गत पूरी प्रक्रिया अपनाना अनिवार्य है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हटाने का आदेश निरस्त कर दिया और राज्य सरकार को नियम 22 की पालना करते हुए मामले में पुनः विचार करने को कहा है। सवाल यह है कि क्या न्यायालय आदेश अधिकारियों को समझाने में कारगर साबित होंगे?
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