दीया कुमारी के आगे राजस्थान सरकार बेबस, डिप्टी सीएम के कारनामों पर सीएम भजनलाल शर्मा ने क्यों साधी चुप्पी?

राजस्थान की डिप्टी सीएम दीया कुमारी पर आरोप हैं कि उन्होंने सरकारी जमीनों और संपत्तियों पर अवैध कब्जा किया है, जिसमें हाईकोर्ट ने भी उनके पक्ष में फैसला दिया। भजनलाल सरकार इस पर चुप्पी साधे हुए है, जिससे यह सवाल उठता है कि सरकार किस दबाव में है।

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Diya Kumari

Photograph: (THESOOTR)

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JAIPUR. राजनीति में सत्ता और संपत्ति का गठजोड़ कोई नई बात नहीं, लेकिन राजस्थान में यह खेल खुलेआम खेला जा रहा है। इस खेल की खिलाड़ी उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी हैं। हैरानी की बात ये है कि उनके सामने भजनलाल सरकार नतमस्तक है।

कहानी सिर्फ सत्ता के गलियारों की चालबाजियों की नहीं, बल्कि जयपुर की उन बेशकीमती सरकारी जमीनों और संपत्तियों की है, जिन पर दीया कुमारी और उनके परिवार का कब्जा लगातार बढ़ता जा रहा है। ये कब्जा कोई चुपके-चुपके नहीं, बल्कि सरकारी मशीनरी की खामोशी के बीच सरेआम हो रहा है।

'द सूत्र' अब तक पांच किस्तों में दीया कुमारी के कारनामों का परत-दर-परत खुलासा कर चुका है। इस खुलासे के बाद सियासी हलचल इतनी तेज हुई कि दीया कुमारी को अपने बचाव में सोशल मीडिया कैंपेन तक चलवाना पड़ा। इसके जरिए मैसेज देने की कोशिश हुई कि वे पाक-साफ हैं, लेकिन जनता सब समझ रही है और इसीलिए यह कैंपेन फुस्स हो गया।

असल मुद्दा ये है कि भजन सरकार ने जानबूझकर या मजबूरी में डिप्टी सीएम के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाया ​है। नतीजा ये कि सरकारी जमीनें, अरबों की संपत्तियां और जनता की विरासत धीरे-धीरे राजपरिवार की निजी जागीर में बदलती जा रही हैं।

गौरतलब है कि दीया कुमारी जयपुर के पूर्व राजघराने की वंशज हैं। रजवाड़ा खत्म हुए जमाना बीत गया, लेकिन रजवाड़े वाली सोच अब भी जिंदा है। अदालतों में उनके नाम से जुड़े एक-दो नहीं, बल्कि दर्जनभर से ज्यादा मामले चल रहे हैं, जिनमें दावा यही है सरकारी जमीन हमारी है। इन मामलों में चार बड़े केस ऐसे हैं, जो न सिर्फ दीया कुमारी की मंशा को उजागर करते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि राजस्थान की सरकार और प्रशासन उनके सामने कैसे बौने साबित हो रहे हैं।

केस 1: हथरोई की जमीन… कोर्ट में हार गई भजन सरकार 

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जयपुर के बीचों-बीच हथरोई क्षेत्र की सरकारी जमीन खसरा नंबर 227, 228 और 230 है। बरसों से यहां नर्सिंग काउंसिल, रेजिडेंसी स्कूल और सरकारी डिस्पेंसरी चल रही है, लेकिन अप्रैल 2025 में हाईकोर्ट ने यह जमीन दीया कुमारी के परिवार के नाम कर दी। इसके पीछे वजह यह रही कि भजन सरकार कोर्ट में केस हार गई। सरकार का वकील कोर्ट ही नहीं पहुंचा। समय पर फीस जमा नहीं हुई। समय बढ़ाने का आग्रह नहीं किया गया और एएजी ऑफिस व जेडीए में आपसी तालमेल न के बराबर रहा।

अब सवाल खड़ा होता है कि क्या यह सिर्फ लापरवाही थी या जानबूझकर केस कमजोर किया गया, ताकि जमीन सीधे डिप्टी सीएम की झोली में गिर जाए? सूत्र कहते हैं कि यह सीधे दबाव का नतीजा था।

हाईकोर्ट के बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती थी, लेकिन अब तक नहीं गई। फाइल लाल बस्ते में दबा दी गई है। जनता देख रही है कि कैसे लोकतंत्र के नाम पर खेल खेला जा रहा है और खेलने वाला कोई बाहरी नहीं, बल्कि सरकार के भीतर बैठे लोग ही हैं। 

केस 2: सिविल लाइंस के अरबों के बंगलों पर किया कब्जा 

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डिप्टी सीएम दीया कुमारी ने जयपुर स्थित सिविल लाइंस के बेशकीमती बंगला नंबर 15 और 16 पर कब्जा जमा रखा है। ये वही बंगले हैं, जो मुख्यमंत्री निवास के ठीक बगल में हैं। इनकी कीमत अरबों रुपए में है, लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि राज्य सरकार इन बंगलों को खाली कराने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है।

यहां बात शुरू होती है आजादी के बाद की, जब जयपुर रियासत का भारत में विलय हुआ था। उस वक्त सरकार और पूर्व शासक के बीच एक संधि हुई थी, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया कि सिविल लाइंस के बंगला नंबर 15 और 16 सरकारी संपत्ति हैं। इनका मालिकाना हक सरकार के पास रहेगा। सरकार ही इनका रखरखाव करेगी।

इसके बाद तत्कालीन परिस्थितियों के हिसाब से राजपरिवार के कुछ घरेलू अधिकारियों को इन बंगलों में रहने की इजाजत दे दी गई थी, लेकिन शर्त थी कि जब इनकी जरूरत न रहे तो राजपरिवार इन्हें खाली कर देगा। लेकिन क्या हुआ? राजपरिवार ने इन बंगलों को खाली नहीं किया। इससे आगे बढ़कर अपने निजी दफ्तर खोल दिए। आज इन बंगलों में दीया कुमारी के परिवार के ऑफिस चल रहे हैं।

केस 3: जयगढ़ फोर्ट में सरकारी नियम, लेकिन निजी कमाई

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जयगढ़ फोर्ट नाहरगढ़ सेंचुरी के भीतर आता है। यहां कमर्शियल गतिविधियां वर्जित हैं, लेकिन यहां वीआईपी पार्टियां, फिल्म शूटिंग, इवेंट, सब धड़ल्ले से चल रहा है। क्यों? क्योंकि यह फोर्ट जयगढ़ पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के पास है और यह ट्रस्ट सीधे दीया कुमारी के परिवार का है।

सूत्रों के मुताबिक, यहां से सालाना 10 करोड़ की कमाई होती है। टिकट, कैमरा शुल्क, इवेंट रेंटल… सब निजी खाते में जाता है। अब यहां रोपवे प्रोजेक्ट लाने की तैयारी है, जो पहले नाहरगढ़ को जोड़ने वाला था, अब बदलकर इसे आमेर-जयगढ़ कनेक्शन बनाया गया है। इसकी अनुमानित लागत 400 करोड़ रुपए है। यहां भी सवाल यही है कि निजी संपत्ति को सरकारी पैसों से क्यों चमकाया जा रहा है?

केस 4: जलेब चौक पर खुलेआम कर लिया कब्जा 

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राजस्थान की डिप्टी सीएम के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने अपने पद की गरिमा और मर्यादा को तार-तार कर जयपुर में सरकार की मालिकाना हक वाली बेशकीमती जमीन जलेब चौक पर अवैध कब्जा कर लिया है। इन स्थानों पर जनता के आवागमन पर रोक लगा दी है।

दीया कुमारी के ये अवैध कब्जे और अतिक्रमण जयपुर के आराध्य गोविन्द देवजी मंदिर, जंतर-मंतर वेधशाला और निजी संग्रहालय सिटी पैलेस से सटे जलेब चौक परिसर में हो रहा है। पूरे जलेब चौक परिसर में 24 घंटे ट्रस्ट से जुड़े वर्दीधारी गार्ड घूमते रहते हैं।

दीया कुमारी और उनके परिवार की ओर से जलेब चौक की खाली जमीनों पर अवैध तरीके से ही पार्किंग स्थल बनाए जा रहे हैं। यहां पर्यटकों के वाहनों की पार्किंग करवाकर अवैध वसूली करने के लिए जमीन को समतल करने का काम जोरों पर है, वहीं टीनशेड के बड़े कियोस्क बना दिए गए हैं। 

भजन सरकार की खामोशी...समझौता या दबाव?

चारों केस सिर्फ उदाहरण हैं। इनके अलावा और भी मामले अदालतों में लंबित हैं, जिनमें पैटर्न एक जैसा है, सरकारी संपत्ति पर दावा, केस को लंबा खींचना और अंत में कब्जा पक्का करना। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल है कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा आखिर चुप क्यों हैं? क्या उन्हें डर है कि डिप्टी सीएम पर कार्रवाई करने से सरकार के भीतर बगावत हो जाएगी? या फिर यह पूरा खेल सत्ता के भीतर बैठकर ही खेला जा रहा है?

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