राजस्थान में बिजली खरीद के लिए अपने ही प्रोजेक्ट्स की अनदेखी, दूसरे राज्यों से खरीदेंगे 7500 करोड़ की बिजली

राजस्थान सरकार की 500 मेगावाट बिजली खरीद योजना पर विशेषज्ञों और आलोचकों ने गंभीर सवाल उठाए हैं। क्या यह योजना संसाधनों की बर्बादी साबित हो सकती है?

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Nitin Kumar Bhal
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Electricity Purchase in Rajasthan

Photograph: (The Sootr)

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राजस्थान (Rasthan) सरकार की 500 मेगावाट बिजली की खरीद योजना सवालों के घेरे में है। इसके लिए टेंडर डॉक्यूमेंट तैयार कर मंजूरी के लिए राज्य विद्युत विनियामक आयोग में याचिका लगाई गई है। दरअसल, ऊर्जा विकास निगम ने अगले पांच वर्षों में 500 मेगावाट बिजली खरीदने की योजना बनाई है, जिसकी अनुमानित लागत 7500 करोड़ रुपए है। यह खरीद 2030 तक राज्य की बिजली मांग पूरी करने के उद्देश्य से की जाएगी, लेकिन इस योजना की व्यावहारिकता, वित्तीय समझदारी और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि राजस्थान में पहले से ही थर्मल, सोलर और विंड ऊर्जा के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिनकी संयुक्त क्षमता 36,000 मेगावाट से अधिक है। इसके अलावा, 6,000 मेगावाट क्षमता का बैटरी स्टोरेज प्रोजेक्ट भी शुरू किया जा रहा है। ऐसे में 500 मेगावाट बिजली खरीदने की योजना कितनी व्यावहारिक है? इसी को लेकर विशेषज्ञों ने भी आपत्तियां जताई हैं। उन्होंने इस योजना का पुनर्मूल्यांकन और मौजूदा समझौतों की समीक्षा के लिए राज्य विद्युत नियामक आयोग में आपत्ति दर्ज कराई है। आपत्तियों में कहा गया है कि पहले संधारित एवं चल रहे प्रोजेक्टों के आधार पर ही बिजली की वास्तविक मांग और खरीद पर पुनर्विचार किया जाए।

क्या राजस्थान में संसाधनों की बर्बादी हो रही है?

राज्य के वर्तमान और प्रस्तावित परियोजनाओं को नजरअंदाज कर परोक्ष रूप से एक बड़ी राशि खर्च करने की अनुमति मांगना न केवल संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि यह राजकोषीय जिम्मेदारी एवं निगम के प्रबंधन की गंभीर लापरवाही को दर्शाता है। उदाहरण के तौर पर ऊर्जा विकास निगम ने इससे पहले 160, 266 और 294 मेगावाट की खरीद के लिए आयोग से अनुमति मांगी थी, जिनमें से केवल 160 मेगावाट को मंजूरी मिली थी। मई 2023 में 160 मेगावाट के टेंडर किए गए, लेकिन 5.30 रुपए प्रति यूनिट की अत्यधिक दर के कारण विद्युत खरीद आदेश लागू नहीं हो पाए। अब पुनः 500 मेगावाट की खरीद के लिए मंजूरी का प्रयास हो रहा है। लगता है नीति निर्धारक पिछले असफल प्रयासों से सीख लेना ही नहीं चाहते।

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नहीं किया समुचित मूल्यांकन

एनर्जी असेसमेंट कमेटी ने अप्रेल 2023 और मई 2025 की बैठकों में इस 500 मेगावाट बिजली खरीद को अनुमोदित तो किया, लेकिन इस कमेटी की रिपोर्ट में राजस्थान में विकासाधीन अन्य बड़े प्रोजेक्टों जैसे कुसुम सी, कुसुम ए, रूफटॉप सोलर, सरकारी भवनों पर सोलर प्लांट, बैटरी स्टोरेज, गैस-आधारित प्लांट और एनटीपीसी से बिजली खरीद के प्रस्तावों का समुचित मूल्यांकन शामिल नहीं था। अफसरों ने कमेटी की सिफारिशों का कुछ हद तक पालन किया, लेकिन मौजूदा और अपेक्षित बड़े प्रोजेक्टों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया। यह लापरवाही योजनाओं की गहन समीक्षा और बेहतर प्रबंधन की कमी का स्पष्ट उदाहरण है।

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विशेषज्ञ डी.डी. अग्रवाल ने कहा कि ऊर्जा मांग का आकलन सिर्फ 2022-23 के आंकड़ों पर आधारित है, जबकि तीन साल की औसत मांग को आधार बनाते तो तर्कसंगत होता। हजारों मेगावाट के प्रोजेक्ट निर्माणाधीन हैं, जिन्हें नजरअंदाज किया गया। दिन में सौर ऊर्जा पर्याप्त मिल रही है, फिर भी 24 घंटे बिजली खरीदने की योजना क्यों? यदि सिर्फ 5 घंटे डिस्पैचेबल रिन्यूएबल एनर्जी खरीदी जाए, तो भी गैप पूरा हो सकता है। हैरानी है कि सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन से 4.98 रु. यूनिट में विकल्प उपलब्ध है, फिर इस पर बोर्ड में चर्चा क्यों नहीं हुई।

 

राजस्थान में 2029 तक कितनी बिजली की मांग होगी?

राजस्थान में 2025 से 2029 तक बिजली मांग लगातार बढ़ने का अनुमान है। वर्ष 2025 में 1,06,061 मेगावाट से 2029 तक यह 3,05,007 मेगावाट तक पहुंचने की संभावना है। हालांकि मांग बढ़ने की बात सही है, परंतु उत्पादन और खरीदी योजनाओं में संतुलन बना पाना जरूरी है। मौजूदा समय में थर्मल और नवीकरणीय ऊर्जा के बड़े प्रोजेक्ट्स तेजी से विकसित हो रहे हैं, जो स्वदेशी संसाधन और पर्यावरण प्राथमिकता के नजरिए से भी अधिक उपयुक्त हैं। फिर भी ऊर्जा विकास निगम के निर्णयों में संरक्षणवादी और पुनरावृत्ति के लक्षण दिखे हैं, जो लागत में बढ़ोतरी और संसाधनों की बर्बादी का कारण बन सकते हैं।

 

पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन की कमी

एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि 2023 में 160 मेगावाट की खरीदी के टेंडर में प्रति इकाई 5.30 रुपये की दर को अधिक मानते हुए आदेश नहीं जारी किया गया था। उस पर भी ध्यान दिए बिना अब 500 मेगावाट की खरीद के लिए बड़ी रकम की मांग उठाना आश्चर्यजनक है। यह दर्शाता है कि निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और वित्तीय अनुशासन की अनदेखी हो रही है।

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अक्षय ऊर्जा पर नहीं दिया ध्यान

राजस्थान सरकार ने अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने की कई महत्वाकांक्षी योजनाएं तो बनाई हैं, जैसे कि वर्ष 2030 तक 125 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य, साथ ही कुसुम योजना के माध्यम से रूफटॉप सोलर को प्रोत्साहित करना। हालांकि, ऊर्जा विकास निगम की योजना इस व्यापक ऊर्जा लक्ष्यों से मेल नहीं खा रही है। 

जनता पर ही तो आएगा 7500 करोड़ का भार

यह योजना न केवल 7500 करोड़ रुपए के बजट के साथ एक वित्तीय बोझ है, बल्कि यह ऊर्जा विकास निगम और राज्य सरकार की दक्षता, योजना बनाने की क्षमता और सार्वजनिक धन के प्रति जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न चिन्ह खड़े करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि योजनाएं पारदर्शी, कुशल और दीर्घकालिक हितों के अनुकूल हों। 

 

FAQ

1. राजस्थान सरकार द्वारा बिजली खरीद योजना क्या है?
राजस्थान सरकार द्वारा 500 मेगावाट बिजली खरीदने की योजना पर विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई है क्योंकि मौजूदा प्रोजेक्ट्स के आधार पर बिजली की मांग और खरीद का पुनर्मूल्यांकन जरूरी है।
2. क्या राजस्थान में बिजली की कमी हो रही है?
राजस्थान में बिजली की मांग बढ़ रही है, और 2025 से 2029 तक बिजली की मांग में भारी वृद्धि का अनुमान है। हालांकि, वर्तमान प्रोजेक्ट्स और उत्पादन क्षमता के आधार पर यह संतुलन बनाए रखने की जरूरत है।
3. राजस्थान में ऊर्जा विकास निगम की 500 मेगावाट बिजली खरीद योजना की आलोचना क्यों हो रही है?
ऊर्जा विकास निगम की इस योजना की आलोचना की जा रही है क्योंकि यह मौजूदा और प्रस्तावित ऊर्जा परियोजनाओं को नजरअंदाज कर एक बड़ी राशि खर्च करने का प्रस्ताव है, जो संसाधनों की बर्बादी और वित्तीय अनुशासन की कमी को दर्शाता है।

 

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