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Photograph: (TheSootr)
स्वायत्त शासन विभाग राजस्थान (डीएलबी) द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद 30 कर्मचारियों का प्रमोशन कर उन्हें सहायक अभियंता (AEN) से अधिशासी अभियंता (XEN) बना दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने 2005 के बाद डिस्टेंस एजुकेशन से प्राप्त किसी भी तकनीकी डिग्री को प्रमोशन के लिए मान्य नहीं किया था। इसके बावजूद इन कर्मचारियों ने डिस्टेंस एजुकेशन से बीटेक/बीई की डिग्री लेकर जल्दी प्रमोशन हासिल किया।
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डिस्टेंस एजुकेशन से टेक्निकल एजुकेशन डिग्री पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
बता दें, सुप्रीम कोर्ट के पास उड़ीसा लिफ्ट इरीगेशन कॉर्पोरेशन बनाम रविशंकर पात्रों सहित करीब 40 से ज्यादा लोगों के मामले में डिस्टेंस एजुकेशन से टेक्निकल एजुकेशन की डिग्री को लेकर याचिका लगी थी। उड़ीसा हाईकोर्ट ने इन टेक्निकल डिग्रियों को सही माना तथा रविशंकर पात्रों को पदोन्नति के लिए सही माना। वहीं पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य की पीआईएल में डिस्टेंस एजुकेशन से टेक्निकल एजुकेशन की डिग्रियों पर सवाल उठाया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 40 याचिकाओं पर सुनवाई की। कोर्ट ने फैसले में कहा- जिन छात्रों ने डिस्टेंस एजुकेशन में तकनीकी शिक्षा से जो डिग्री ली है, उन्हें तत्काल रद्द किया जाता है। ऐसे कर्मचारियों और लोगों के प्रमोशन व अन्य लाभ को वापस लेने का आदेश दिया है।
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डिस्टेंस एजुकेशन से डिग्री लेने वाले कर्मचारी
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि 2011 से 2015 के बीच, कई कर्मचारियों ने पंजाब के लुधियाना और उदयपुर की जेआरएन राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड) यूनिवर्सिटी से डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से बीटेक/बीई की डिग्री प्राप्त की थी। इनमें से कई कर्मचारी अब उच्च पदों जैसे अधिशासी अभियंता (XEN) और मुख्य अभियंता (CE) के रूप में कार्य कर रहे हैं।
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लुधियाना और उदयपुर से डिग्री प्राप्त कर्मचारियों की सूची
लुधियाना से डिग्री: 15 कर्मचारियों ने लुधियाना के द इंस्टीट्यूशन ऑफ सिविल इंजीनियर्स (इंडिया) से डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से डिग्री प्राप्त की थी। इन कर्मचारियों में कमलेश जैमन, राधाकिशन जाट, सुबोध माथुर, पूर्णिमा यादव, बंशीधर पुरोहित, ओमप्रकाश साहू आदि शामिल थे।
उदयपुर से डिग्री: 7 कर्मचारियों ने उदयपुर की जेआरएन राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड) यूनिवर्सिटी से डिग्री ली थी। इनमें रमेश कुमार शर्मा, महेंद्र सिंह, नरेंद्र गुप्ता, मनोज शर्मा आदि प्रमुख थे।
कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी से डिग्री
आलोक श्रीवास्तव ने कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी से 2014 में डिग्री ली थी।
इस बारे में राजस्थान के यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा का कहना है कि मुझे मामले की जानकारी नहीं है। प्रमोशन कैसे मिला इसकी जांच कराई जाएगी। गलती पाई जाने पर कार्रवाई की जाएगी।
आरटीआई से खुलासा और विभाग की कार्यवाही
सूचना के अधिकार (RTI) के तहत एडवोकेट यादवेंद्र सिंह जादौन ने कर्मचारियों के प्रमोशन और डिग्री की डिटेल मांगी थी। इसके जवाब में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। 2019 में प्रमोशन से संबंधित विभाग की बैठक में डिप्लोमाधारी कर्मचारियों के लिए 15 साल का अनुभव और डिग्रीधारी कर्मचारियों के लिए 5 साल का अनुभव प्रमोशन का आधार माना गया था। इसके अलावा, मीटिंग में यह निर्णय लिया गया कि डिप्लोमाधारी कर्मचारियों के सेवा के एक तिहाई अनुभव को डिग्री के अनुभव में जोड़ा जाए, जो कि नियमों के खिलाफ था।
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नियमों का उल्लंघन और अधिकारियों का प्रमोशन
इस प्रकार, डिप्लोमा धारकों को अनुभव के बिना प्रमोशन मिल गया, जबकि डिग्री धारकों को केवल 5 साल के अनुभव पर प्रमोशन दिया गया था। इस प्रक्रिया में कई कर्मचारियों को बिना जरूरी अनुभव के पदोन्नति मिल गई।
सूर्यप्रकाश संचेती ने 2014 में डिग्री की और 3 साल 7 महीने के अनुभव पर 2018-19 में एक्सईएन बन गए।
सुनील व्यास ने 2014 में डिग्री की और केवल 4 साल के अनुभव के आधार पर एक्सईएन बन गए।
सुभाषचंद बंसल और करमचंद अरोड़ा जैसे कर्मचारियों को भी डिग्री के आधार पर प्रमोशन दिया गया, जबकि डिप्लोमा और डिग्री का अनुभव जोड़कर उन्हें पदोन्नति दी गई।
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