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Photograph: (the sootr)
अलवर। राजस्थान की मशहूर बाघ परियोजना सरिस्का में क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (सीटीएच) के बदलाव को लेकर विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस सीमा बदलाव को वैज्ञानिक आधार पर सही माना है। लेकिन, द सूत्र ने ग्राउंड जीरो पर जाकर उन क्षेत्रों की हकीकत जानीं, जिन्हें बाघ परियोजना से बाहर किया जा रहा है। सीमा में बदलाव की खबरों के बाद से वहां पत्थरों से भरे डंपर खूब दौड़ने लगे हैं।
मिलेगा 57 खदानों को जीवनदान
यह तथ्य सामने आया कि इस बदलाव से जिन इलाकों को हटाया जा रहा है, वहां बंद पड़ी 57 मार्बल खदानों को जीवन मिल सकता है। अगर इन खदानों में फिेर से खनन होने लगा तो टाइगर रिजर्व को बड़ा नुकसान हो सकता है। सरिस्का पहले ही 2004 में बाघों के सफाया होने के दुर्दिन देख चुका है। तब सरकार ने माना था कि सरिस्का में बाघ खत्म हो चुके हैं।
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बदलाव वाले इलाके में टाइगर का मूवमेंट
केंद्रीय वाइल्डलाइफ बोर्ड से अनुमोदित हो चुके प्रस्ताव में सरिस्का के जिन 6 खंडों को अलग करने की बात कही गई है, वे बाघों के मूवमेंट के हिसाब से काफी संवेदनशील माने जाते हैं। इनमें कुंडला जयसिंहपुरा, बल्लाना, खोह दरीबा, दबकन और गोवर्धनपुरा है। ग्रामीणों का कहना है कि यहां बाघों का काफी मूवमेंट रहता है। कुंडला में टाइगर काफी संख्या में है। सुप्रीम कोर्ट ने 1 साल पहले यहां 57 खानों को सीटीएच के 1 किलोमीटर दायरे में मानकर बंद कर दिया गया था
बानसूर की तरफ बढ़ा रहे सीमा
सरिस्का के एक अधिकारी का कहना है कि सीटीएच का दायरा बदलकर उसे बानसूर की तरफ बढ़ाया गया है। टहला रेंज से जहां 48.3 किलोमीटर एरिया को कम कर उसको बानसूर की ओर 90 किलोमीटर तक बढ़ाने का प्रस्ताव है। यह सही है कि जिस टहला रेंज से सीटीएच खत्म करने की बात है, वहां करीब आधा दर्जन से अधिक बाघों का मूवमेंट लगातार रहता है।
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डंपरों की आवाजाही बढ़ी
द सूत्र ने ग्राउंड जीरो पर देखा कि हटाए जा रहे खंडों में रोक के बावजूद पत्थरों से भरे डंपर धड़ल्ले से चल रहे हैं। सीटीएच घटाने के प्रस्ताव के बाद डंपरों का मूवमेंट बढ़ा है। टहला घाटी से लेकर पराशर धाम, जयसिंहपुरा और बल्लाना के रास्ते में बीसों डंपर आते—जाते दिखते हैं। गांव वाले यह सवाल भी करते हैं कि जब इलाके में खदानें बंद हैं तो ये डंपर कहां से पत्थर ला रहे हैं। वे कहते हैं कि दाल में सब कुछ काला है।
हर दिन आते हैं टाइगर
कंडला के एक ग्रामीण के अनुसार खदानें बंद होने के बाद यह इलाका टाइगर के लिए सबसे सुरक्षित क्षेत्र हो गया है। यहां हर दिन टाइगर के मूवमेंट की सूचना मिलती है। नारायणी धाम के पास हाल ही में सड़क किनारे पानी के एक होद में एक मादा टाइगर अपने दो शावकों के साथ पानी पीती हुई दिखाई दी थी। यह वही एरिया है, जो प्रस्ताव में सीटीएच से हटाए जाने की सिफारिश की गई है।
इसलिए हो रहा संदेह
टहला रेंज के वनकर्मी बताते हैं कि यहां मेल टाइगर एसटी 23, एसटी 27 फीमेल टाइगर बच्चे साथ में हैं। एसटी 25, एसटी 2305, एसटी 24 और एसटी 30 मादा टाइगर का मूवमेंट है। 10 दिन पहले यहां भालू भी दिखाई दिया था। बताया जा रहा है कि सरकार इस दायरे को 2 किलोमीटर करना चाहती है, जिससे खान और होटल मालिकों को सीधा-सीधा इसका फायदा मिल सके।
होटलों की भरमार
टहला के आसपास लगभग 150 होटल और रिजॉर्ट है। प्रस्ताव में जिस एरिया को हटाया जा रहा है, वह दौसा से लगता हुआ है। कई बार टाइगर यहां से दोसा क्षेत्र में भी अपना मूवमेंट करके आए हैं। यहां सबसे बड़ी बात यह है कि जहां टाइगरों का पूर्ण स्वतंत्र आवास है। इस इलाके में खदानों पर प्रतिबंध के बावजूद पत्थरों की निकासी हो रही है।
समिति में शामिल नहीं किए लोकल पर्यावरणविद
पर्यावरणविद् राजेश कृष्ण सिद्ध का आरोप है कि डबल इंजन सरकार का प्रयास है कि सरिस्का नेशनल टाइगर रिजर्व फिर से टाइगर विहीन हो जाए। खदानें फिर से आबाद हो जाएं। उन्होंने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री के उसे दावे पर भी आपत्ति जताई है कि बदलाव की यह रिपोर्ट वैज्ञानिक तरीके से तैयार की गई है। सीटीएच बदलने की समिति में बाघ विशेषज्ञ और लोकल पर्यावरण कार्यकर्ताओं को बाहर रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद यहां से पत्थरों की निकासी हो रही है। यहां लगातार होटल बनती जा रही हैं।
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