झालावाड़ स्कूल हादसा: और कितने बच्चों की लेंगे बलि? खुद शिक्षामंत्री के गृह जिले में 28 स्कूलों की हालत जर्जर

झालावाड़ स्कूल हादसे ने राजस्थान में सरकारी स्कूलों की जर्जर हालत को सबके सामने शर्मनाक तरीके से उजागर। सात बच्चों की मौत के बाद भी क्या सरकार जागेगी।

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Nitin Kumar Bhal
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Photograph: (The Sootr)

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राजस्थान (Rajasthan) के झालावाड़ के पिपलोदी गांव में 25 जुलाई 2025 को हुए स्कूल भवन ढहने के भयानक हादसे (Jhalawar School Collapse) ने राजस्थान में सरकारी स्कूलों की जर्जर हालत को सबके सामने शर्मनाक तरीके से उजागर कर दिया है। इस दुर्घटना में 7 मासूम बच्चों की मौत हो गई और दर्जनों बच्चे गंभीर रूप से घायल हुए। यह हादसा पूरे प्रदेश की सरकारी शिक्षा व्यवस्था की असंवेदनशीलता और लापरवाही का द्योतक है। हालात यह हैं कि राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर (Madan Dilawar) के अपने गृह जिले में ही करीब 28 स्कूलों को विभाग ने असुरक्षित घोषित कर दिया है, फिर भी इनका न तो पुनर्निर्माण हुआ है और न ही मरम्मत का प्रयास। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के जिले कोटा में प्रारंभिक शिक्षा विभाग के 16 और माध्यमिक शिक्षा के 12 स्कूलों को असुरक्षित मानते हुए ढहाने का आदेश जारी किया गया है, लेकिन गर्मी की छुट्टियों के दौरान इन खतरनाक भवनों की सुध नहीं ली गई। अब बच्चे मानसून के दौरान ऐसे जर्जर भवनों में पढ़ने को मजबूर हैं। उनकी सुरक्षा को लेकर अभिभावकों में गहरी चिंता बनी है। न सिर्फ बच्चों, बल्कि वहां काम करने वाले स्टाफ के लिए भी ये भवन खतरनाक बने हुए हैं, लेकिन संबंधित अधिकारी इस तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।

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शिकायतों के बावजूद नहीं होती कार्रवाई

राजस्थान में प्रशासन और शिक्षा विभाग की उदासीनता इस कदर है कि ग्रामीणों और शिक्षकों की शिकायतों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती है। विडंबना यह है कि झालावाड़ स्कूल हादसे के बाद तो अफसर हरकत में आए, लेकिन सवाल यह है कि इतने बड़े हादसे से पहले कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या बच्चों की जान खतरे में डालने वाली यह सरकारी लापरवाही किसी आपदा से कम है? असल में बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीरता कहीं दिख नहीं रही।

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राजस्थान में सरकारी स्कूलों के क्या हालात हैं? 

राज्य के सरकारी स्कूलों की हालत बेहद खस्ता है, विशेषकर प्रारंभिक शिक्षा वाले स्कूलों की हालत दयनीय है। अनेक स्कूलों में रसोईघर, कक्षाएं, टॉयलेट्स और बरामदे इतने जर्जर हालत में हैं कि उनके गिरने का खतरा बना हुआ है। कोटा जिले के ही हनुवंत खेड़ा, पामाखेड़ी, गुमानपुरा, हनोतिया, उम्मेदपुरा, सालेरा कला, गुड़ला, बूरनखेड़ी, फतेहपुर, डाबर, मेहंदी, कैथूदा, और खेड़ली नौनेरा गांवों में लंबे समय से स्कूल भवनों की मरम्मत या पुनर्निर्माण की जरूरत है। शिक्षा विभाग ने इन भवनों को असुरक्षित मानते हुए ध्वस्त करने के आदेश तो जारी कर दिए हैं, लेकिन कार्रवाई धरातल पर नहीं है।

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कोटा जिले के स्कूलों के हालात क्या हैं?

कोटा जिले मेंमाध्यमिक शिक्षा के भी कई स्कूलों जैसे राउमावि बजांरा बस्ती नांता, देवली अरब, छावनी, बालिता, ताथेड़, मानसगांव, सन्मानपुरा, रूपाहेड़ा, हींगी, मुंगेना तथा जाखोड़ा की स्थिति चिंताजनक है। इन स्कूलों की दीवारों, छतों में दरारों के कारण बच्चों की जान जोखिम में है। सरकारी दावों के विपरीत सुरक्षा मानकों की सरासर अनदेखी हो रही है। 

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झालावाड़ स्कूल हादसा क्या है?

राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में 25 जुलाई 2025 की सुबह स्कूल की छत गिरने से दर्दनाक हादसा हुआ। यहां एक सरकारी स्कूल की बिल्डिंग की छत अचानक गिर गई। इस घटना में 7 बच्चों की मौत हो गई है।  शिक्षा विभाग ने पांच शिक्षकों को निलंबित किया है। हादसे के समय स्कूल के शिक्षक भवन के बाहर थे। जबकि छात्र स्कूल भवन के अंदर प्रार्थना कर रहे थे। इस वजह से शिक्षक हादसे का शिकार नहीं हुए हैं। हादसे में मारे गए सात बच्चों के शवों का पोस्टमॉर्टम पूरा होने के बाद, 26 जुलाई 2025 को तड़के परिजनों को सौंप दिया गया। मनोहरथाना सीएचसी से शव पिपलोदी गांव और एक बच्चे का शव चांदपुर भीलन पहुंचाया गया। गांव में मातम का माहौल छाया रहा। सभी सात बच्चों का अंतिम संस्कार गमगीन माहौल में संपन्न हुआ।

 

कब तक बच्चों की जान जोखिम में डालेगी सरकार?

झालावाड़ के स्कूल हादसे के बाद सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक राजस्थान सरकार असंवेदनशीलता दिखाएगी और कब तक जर्जर स्कूल भवनों में पढ़ रहे बच्चों की जान जोखिम में डाली जाती रहेगी। प्रदेश के कई जिलों में अब भी हजारों स्कूल भवनों की स्थिति खतरनाक बनी हुई है और जिम्मेदार नेता—अधिकारी बिना किसी सख्त कदम के सिर्फ जुमलेबाजी कर रहे हैं।

शिक्षा विभाग का हजारों करोड़ का बजट कहां जाता है?

ऐसे वक्त में जब शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए बजट में आवंटित किए जा रहे हैं, तब भी सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति साफ दिखाती है कि ये संसाधन किस तरह अव्यवस्थित या भ्रष्ट तरीके से उपयोग हो रहे हैं। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के गृह जिले के साथ पूरे राजस्थान की स्थिति लगभग ऐसी ही है। स्कूल भवनों की मरम्मत, पुनर्निर्माण और बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है।

यह करें शिक्षामंत्री 

राजस्थान के शिक्षा क्षेत्र में बच्चों की सुरक्षा की इस गंभीर कमी के बीच शिक्षामंत्री को चाहिए कि वे केवल कार्यक्रमों तक सीमित न रहें, बल्कि जर्जर स्कूल भवनों की तत्काल मरम्मत और निर्माण में आवश्यक धन और संसाधनों का प्रबंध करें। इसके साथ ही बच्चों की सुरक्षा के लिए एक पारदर्शी और जवाबदेह निगरानी तंत्र बनाएं। ताकि भविष्य में ऐसे हादसों को रोका जा सके। बच्चों की जान बचाना केवल एक प्रशासनिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक नैतिक दायित्व भी है। अगर शिक्षा मंत्री तुरंत इस दिशा में समुचित और प्रभावी कदम नहीं उठाएंगे, तो राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था एक ऐसे गंभीर संकट में की ओर बढ़ जाएगी जहां मासूम बच्चे जान हथेली पर पढ़ने को विवश रहेंगे।

मृतक बच्चों के परिवार वालों को 10 लाख रुपए और संविदा पर नौकरी

उधर, शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में हुए स्कूल हादसे को लेकर बड़ा ऐलान किया है। शिक्षा मंत्री दिलावर ने कहा कि मृतक बच्चों के परिवार वालों को 10 लाख रुपए और संविदा पर नौकरी दी जाएगी। वहीं गांव में नए बनने वाले विद्यालय भवन में क्लास रूम का नाम मृतक बच्चों के नाम पर रखा जाएगा।

 

FAQ

1. राजस्थान में सरकारी स्कूल भवनों की जर्जर स्थिति के बारे में क्या कदम उठाए गए हैं?
राजस्थान सरकार ने कई स्कूल भवनों को असुरक्षित मानते हुए उन्हें ढहाने का आदेश तो दिया है, लेकिन इन भवनों की मरम्मत या निर्माण में कोई प्रगति नहीं हुई।
2. झालावाड़ स्कूल हादसे के बाद शिक्षा मंत्री ने क्या कदम उठाए?
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने मृतक बच्चों के परिवारों को 10 लाख रुपए देने और संविदा पर नौकरी देने का ऐलान किया। लेकिन, जर्जर भवनों की समस्या का समाधान अभी तक नहीं हुआ।
3. राजस्थान में सरकारी स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर क्या उपाय किए जाने चाहिए?
शिक्षा मंत्री को तत्काल जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत और निर्माण के लिए धन और संसाधनों का प्रबंध करना चाहिए। साथ ही, बच्चों की सुरक्षा के लिए पारदर्शी निगरानी तंत्र बनाना चाहिए।

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