आदिवासियों के साथ खिलवाड़! वीरांगना कालीबाई भील के बाद अब मानगढ़ धाम भी बच्चों की किताब से हटाया

राजस्थान शिक्षा परिषद ने चौथी कक्षा के पाठ्यक्रम से मानगढ़ धाम पाठ हटाया। आदिवासी शहीदों के बलिदान और अंग्रेजों द्वारा किए नरसंहार को अब बच्चों को नहीं पढ़ाया जाएगा।

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Nitin Kumar Bhal
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राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद (Rajasthan State Council of Educational Research and Training - RSCERT) ने 2025 के नए पाठ्यक्रम में चौथी कक्षा की अंग्रेजी विषय की किताब से मानगढ़ धाम के पाठ को हटा दिया है। अब बच्चे मानगढ़ धाम की ऐतिहासिक घटना और आदिवासियों के बलिदान के बारे में जानने से वंचित रह जाएंगे। बता दें, आदिवासी वीरांगना कालीबाई भील का पाठ भी राजस्थान के बच्चों की किताब से हटाया जा चुका है।

इस कदम को लेकर विभिन्न तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, कुछ लोग इसे इतिहास को छिपाने का प्रयास मानते हैं। पाठ्यक्रम से मानगढ़ धाम पाठ को हटाए जाने के बाद, यह सवाल उठता है कि क्या बच्चों को आदिवासी समाज के संघर्ष और बलिदान के बारे में जानने का अधिकार नहीं है?

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मानगढ़ धाम का ऐतिहासिक महत्व

राजस्थान का मानगढ़ धाम जो बांसवाड़ा जिले में स्थित है, आदिवासी समाज के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह स्थान उस समय का गवाह है जब 17 नवंबर 1913 को आदिवासी समाज के लोग संत गोविंद गुरु के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ एकत्र हुए थे। अंग्रेजी शासन के खिलाफ यह आंदोलन तब हिंसक रूप ले लिया था, जब अंग्रेजों ने आदिवासियों पर अंधाधुंध गोलीबारी की थी। इस गोलीबारी में करीब 2500 आदिवासी शहीद हो गए थे। इसे राजस्थान का जलियांवाला बाग हत्याकांड कहा जाता है।

इस घटना का महत्व इस लिहाज से भी है कि यह आदिवासियों के खिलाफ अंग्रेजी शासन द्वारा किए गए अत्याचारों का प्रतीक है। संत गोविंद गुरु आदिवासी समाज के सबसे बड़े प्रेरणास्त्रोत थे, और उनका योगदान आज भी आदिवासी समुदाय के लिए गौरवपूर्ण है।

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पाठ्यक्रम में बदलाव और सरकार की भूमिका

राजस्थान में पाठ्यक्रम में किए गए बदलावों का उद्देश्य छात्रों को एक नया दृष्टिकोण देने का है, लेकिन इसे लेकर आलोचना भी हो रही है। मानगढ़ धाम के पाठ को हटाने से यह सवाल उठता है कि क्या यह इतिहास को छिपाने का प्रयास है? क्या विद्यार्थियों को आदिवासी समाज के संघर्ष और उनकी कड़ी मेहनत और बलिदान के बारे में जानकारी नहीं मिलनी चाहिए?

सरकार ने इस बदलाव के स्थान पर 'छोटे सपने देखने वाले' नामक पाठ को शामिल किया है। यह कविता एक बच्चे के सपनों और उसकी कल्पनाओं पर आधारित है। हालांकि, इस कविता में कोई ऐतिहासिक संदर्भ नहीं है, और यह बच्चों को काल्पनिक दुनिया में ले जाती है, जहां जानवर बातें करते हैं और बादल रंग बदलते हैं।

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मानगढ़ धाम क्या है?

  • पवित्र स्थल: मानगढ़ धाम राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण पहाड़ी है, जो भील समुदाय और अन्य आदिवासी जनजातियों के लिए एक पवित्र स्थल है।

  • शहीदी स्थल: यह स्थल उन 2,500 से अधिक आदिवासियों की शहादत की याद दिलाता है, जो 17 नवंबर 1913 को ब्रिटिश सेना द्वारा मारे गए थे।

  • आदिवासी आस्था का केंद्र: यह राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदायों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ वे श्रद्धा और सम्मान के साथ आते हैं।

  • स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ाव: 1913 में हुए इस नरसंहार को आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में देखा जाता है।

  • सांस्कृतिक विरासत: यह स्थल गुरु गोविंद गुरु के आध्यात्मिक और देशभक्ति संदेशों को जीवित रखता है और आदिवासी संस्कृति का अहम हिस्सा है।

ऐतिहासिक घटना:

  • 17 नवंबर 1913 को, संत और समाज सुधारक गोविंद गुरु के नेतृत्व में हजारों भील आदिवासी मानगढ़ पहाड़ी पर उनके जन्मदिन का उत्सव मनाने के लिए एकत्रित हुए थे।

  • ब्रिटिश सेना ने इस उत्सव को गैरकानूनी घोषित करते हुए आदिवासियों पर गोलीबारी शुरू कर दी, जिससे बड़ी संख्या में लोग शहीद हो गए।

  • इस घटना को अक्सर 'राजस्थान का जलियांवाला बाग' कहा जाता है, क्योंकि इसमें जलियांवाला बाग के मुकाबले अधिक आदिवासी शहीद हुए थे।

शहीद कालीबाई भील का इतिहास भी हटाया

एक ओर राजस्थान सरकार वीर बालिका कालीबाई भील के नाम पर ‘कालीबाई भील मेधावी छात्रा स्कूटी योजना’ चला करोड़ों रुपए खर्च कर प्रदेश की मेधावी छात्राओं को उच्च शिक्षा की ओर प्रेरित कर रही है। वहीं, दूसरी ओर एक नया विवाद सामने आ गया है। दरअसल, राज्य सरकार ने पाठ्यक्रम (Curriculum) में एक महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए कालीबाई भील की गाथा को कक्षा 5वीं की अंग्रेजी (English) की किताब से हटा दिया है। राज्य की भाजपा सरकार ने हाल ही में कक्षा 5वीं के पाठ्यक्रम में बदलाव किया है और कालीबाई की गाथा को हटा दिया। शिक्षा सत्र 2025-26 से यह गाथा पाठ्यक्रम में नहीं होगी।

आदिवासी शहीदों को हर साल माघ पूर्णिमा पर देते हैं श्रद्धांजलि

मानगढ़ धाम पर हर साल माघ पूर्णिमा के दिन आदिवासी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। यह एक ऐसा अवसर है, जब आदिवासी समाज के लोग अपने शहीदों को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यहां पर आदिवासी समाज के विभिन्न लोग एकत्र होकर अपनी आवाज उठाते हैं और उनके संघर्ष को याद करते हैं।

राजस्थान में आदिवासी समाज का एक महत्वपूर्ण स्थान है और उनका योगदान इतिहास में अमूल्य है। मानगढ़ धाम को हटाने के बाद भी, आदिवासी समाज अपने शहीदों को याद करता रहेगा, लेकिन इस पाठ को हटाने से उनके संघर्ष को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का अवसर कम हो गया है।

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कालबाई भील की गाथा क्या है?

  • आजादी से पहले डूंगरपुर के महारावल अपने राज्य में शिक्षा को रोकना चाहते थे, क्योंकि उन्हें डर था कि यदि लोग शिक्षित हो जाएंगे तो वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जाएंगे।

  • कई शिक्षकों ने स्कूलों को चालू रखने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली। नानाभाई खांट और सेंगाभाई रोत ने महारावल के सैनिकों की चेतावनियों और हिंसक दमन के बावजूद रास्तापाल गाँव में एक स्कूल चलाया।

  • 17 जून, 1947 को एक पुलिस अधिकारी और सिपाही स्कूल में आए और स्कूल बंद करने का आदेश दिया।

  • नानाभाई और सेंगाभाई के विरोध करने पर उन्हें बेरहमी से पीटा गया। नानाभाई हिंसा के आगे झुक गए और सेंगाभाई को ट्रक से बांधकर घसीटा गया।

  • इस दौरान 13 साल की काली बाई दरांती लेकर सिपाहियों से पूछताछ करने आईं। जब उन्हें पता चला कि शिक्षकों को सजा दी जा रही है, तो वह साहस के साथ अधिकारी का सामना करने गईं और कहा, "शिक्षा कोई अपराध नहीं है।"

  • काली बाई के साहस से प्रेरित होकर, गाँववालों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।

  • गुस्से में आकर अधिकारी ने काली बाई को गोली मार दी, जिससे वह घायल हो गईं।

  • क्रोधित ग्रामीणों ने सैनिकों पर हमला किया और उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया।

  • सेंगाभाई को बचा लिया गया और अस्पताल ले जाया गया, लेकिन काली बाई 20 जून, 1947 को शिक्षा और स्वतंत्रता के लिए शहीद हो गईं।

नई शिक्षा नीति और पाठ्यक्रम में बदलाव

नई शिक्षा नीति (New Education Policy) के तहत, राजस्थान के शिक्षा विभाग ने पहली से पांचवीं कक्षा तक के पाठ्यक्रम में बदलाव किए हैं। इस बदलाव का उद्देश्य बच्चों को एक संतुलित शिक्षा प्रदान करना है, जो उनकी सोच और कल्पना को बढ़ावा दे। हालांकि, यह बदलाव कुछ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पाठों के लिए हानिकारक हो सकता है।

मानगढ़ धाम का पाठ हटाए जाने से यह सवाल उठता है कि क्या यह बदलाव सचमुच बच्चों के भले के लिए है, या फिर यह एक खास विचारधारा को बढ़ावा देने की कोशिश है। राजस्थान सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षा प्रणाली में ऐतिहासिक तथ्यों और घटनाओं को सही तरीके से प्रस्तुत किया जाए, ताकि बच्चों को अपने इतिहास का सही ज्ञान मिल सके।

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मानगढ़ धाम के पाठ को हटाने के नुकसान

  1. इतिहास को छिपाना - मानगढ़ धाम का पाठ हटाने से बच्चों को उस महत्वपूर्ण घटना के बारे में जानने का अवसर नहीं मिलेगा, जो आदिवासी समाज की वीरता और बलिदान को दर्शाता है।

  2. सांस्कृतिक धरोहर का ह्रास - आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर को यदि बच्चों के पाठ्यक्रम से हटा दिया जाएगा, तो यह उनके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को कमजोर करेगा।

FAQ

मानगढ़ धाम के पाठ को क्यों हटाया गया है?
मानगढ़ धाम का पाठ नई शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम में किए गए बदलावों के कारण हटाया गया है। इसके स्थान पर बच्चों को एक नई कविता 'छोटे सपने देखने वाले' पढ़ने को दी गई है।
मानगढ़ धाम की घटना क्या थी?
17 नवंबर 1913 को आदिवासी समाज के लोग संत गोविंद गुरु के नेतृत्व में मानगढ़ पहाड़ी पर एकत्र हुए थे, जहां अंग्रेजों ने अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें लगभग 2500 आदिवासी शहीद हो गए थे।
क्या मानगढ़ धाम की घटना राजस्थान का जलियांवाला बाग था?
हां, मानगढ़ धाम की घटना को राजस्थान का जलियांवाला बाग हत्याकांड भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें अंग्रेजों द्वारा की गई गोलीबारी में भारी संख्या में आदिवासी शहीद हुए थे।
नई शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम में क्या बदलाव किए गए हैं?
नई शिक्षा नीति के तहत पहली से पांचवीं कक्षा तक के पाठ्यक्रम में बदलाव किए गए हैं, जिसमें आदिवासी संघर्षों और इतिहास से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण पाठों को हटाया गया है।

संत और समाज सुधारक गोविंद गुरु मानगढ़ धाम क्या है RSCERT राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद कालीबाई भील राजस्थान का मानगढ़ धाम मानगढ़ धाम
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