राजस्थान विधानसभा भर्ती 10 साल से लंबित, खाली पदों से प्रभावित हो सकती है कार्यवाही

राजस्थान विधानसभा में लंबे समय से भर्ती न होने से 98% कनिष्ठ लिपिक और सभी स्टेनो पद रिक्त, विधानसभा कार्य प्रभावित हो सकता है। जल्द 16वीं विधानसभा का चौथा सत्र शुरू होने वाला है।

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Nitin Kumar Bhal
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Rajasthan Vidhan Sabha

Photograph: (The Sootr)

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राजस्थान विधानसभा (Rajasthan Vidhan Sabha) लंबे समय से भर्ती न होने के कारण कार्मिकों की कमी से जूझ रही है। कई पद रिक्त (Vacant Posts) पड़े हैं। जिससे विधानसभा के सुचारू संचालन (Smooth Functioning) पर गंभीर असर पड़ने वाला है। बता दें, जल्द ही 16वीं विधानसभा का चौथा सत्र शुरू होने वाला है। विधानसभा में खासतौर पर कनिष्ठ लिपिक ग्रेड द्वितीय (Junior Clerk Grade II) और स्टेनो (Stenographer) पद लगभग खाली हैं। इसका प्रभाव विधानसभा के आगामी सत्र (Upcoming Session) पर भी पड़ सकता है।

 

  • पिछले करीब दस वर्षों से विधानसभा में भर्तियाँ नहीं हुई हैं।

  • अंतिम बार 2015 में तत्कालीन अध्यक्ष कैलाश मेघवाल के समय भर्तियां हुई थीं।

  • नई सरकार बनने के बाद भर्ती प्रक्रियाएँ धीमी पड़ी हैं।

  • कर्मचारियों की कमी से विधानसभा के दैनिक कार्य प्रभावित हो रहे हैं।

राजस्थान विधानसभा में रिक्त पदों की वास्तविक स्थिति

वर्तमान में विधानसभा में कनिष्ठ लिपिक ग्रेड द्वितीय के लगभग 98 प्रतिशत पद रिक्त हैं। वहीं, स्टेनो के सारे पद खाली पड़े हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि बिना कर्मचारियों के विधानसभा अपना काम कैसे करेगा।

राजस्थान विधानसभा में रिक्त और कार्यरत पद

पद कुल पद रिक्त पद कार्यरत पद
व. उप सचिव 3 1 2
उप सचिव 9 3 6
सहायक सचिव 21 5 16
क्लर्क ग्रेड I 50 36 14
क्लर्क ग्रेड II 67 65 2
स्टेनो 20 20 0
संदर्भ सहायक 2 2 0
चतुर्थ श्रेणी 98 14 84
वाहन चालक 9 6 3

यह संख्या दर्शाती है कि विधानसभा के लगभग अहम पद खाली पड़े हैं, जिससे कार्य क्षमता पूरी तरह प्रभावित हो रही है।

विधानसभा संचालन में आड़े आएगी संसाधनों की कमी

दो साल पहले विधानसभा में भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किए गए थे, लेकिन अब तक प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष काल में निकाली गई भर्तियां भी लंबित हैं। मई-जून 2023 में विधानसभा के रिपोर्टर, ड्राइवर और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के 21 पदों के लिए भर्ती विज्ञापन जारी हुए। कई हजार आवेदन भी मिले, लेकिन सरकार और विधानसभा प्रशासन द्वारा इसमें कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। संसाधनों की कमी के कारण विधानसभा कार्य बाधित होने की आशंका जताई जा रही है।

रिक्त पदों का विधानसभा कार्यप्रणाली पर प्रभाव

बिना पर्याप्त कर्मचारियों के विधानसभा का संचालन मुश्किल होगा। लिपिक, स्टेनो, ड्राइवर जैसे कर्मचारी विधानसभा के पारंपरिक और प्रशासनिक कार्यों को सुचारू रूप से करते हैं। इन पदों की रिक्तता से विधानसभा के दस्तावेज, रिपोर्टों, संचालन, और फैसलों की प्रक्रिया में देरी हो सकती है। आगामी सत्र के दौरान यह समस्या और भी स्पष्ट दिखेगी।

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ऐसे सुलझेगी समस्या

विभिन्न राजनीतिक और प्रशासनिक कारणों से भर्ती प्रक्रिया में देरी हुई है। नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करने और पदों को भरने के लिए शीघ्र कदम उठाना आवश्यक है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि विधानसभा के सभी कर्मचारी पद भरे जाएं और कार्यव्यवस्था में स्थिरता आए।

 

राजस्थान विधानसभा के बारे में जानें

  • राजस्थान विधानसभा का गठन 31 मार्च 1952 को हुआ।

  • यह स्वतंत्र भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत बनी।

  • राज्य का गठन 30 मार्च 1949 को हुआ था, लेकिन विधानसभा का गठन 1952 में हुआ।

  • पहले विधानसभा में 160 सदस्य थे, बाद में 200 कर दिए गए।

  • राजस्थान विधानसभा एक एकसदनीय विधानमंडल (Unicameral Legislature) है।

  • विधानसभा की जगह जयपुर, राज्य की राजधानी में स्थित है।

  • विधानसभा के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं।

  • सामान्यत: विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का होता है।

  • विधानसभा के पुराने भवन का स्थान जयपुर के चारदीवारी क्षेत्र में था, जिसे अब 'सवाई मान सिंह टाउन हॉल' कहा जाता है।

  • 2001 में नया, आधुनिक विधानसभा भवन बनवाया गया, जो देश के सबसे बड़े और आधुनिक विधानसभा भवनों में से एक है।

राजस्थान विधानसभा की सदस्य संख्या और संरचना

  • वर्तमान में विधानसभा में 200 सीटें हैं।

  • 1957 में सदस्य संख्या 160 से बढ़ाकर 176 की गई, क्योंकि अजमेर रियासत का विलय हुआ था।

  • 1967 में सदस्य संख्या बढ़कर 184 हुई।

  • 1977 में सदस्य संख्या 200 तक पहुंचाई गई।

  • सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव से चुने जाते हैं।

  • वर्तमान विधानसभा के अध्यक्ष भाजपा से वासुदेव देवनानी हैं।

  • विधानसभा में विपक्ष के नेता कांग्रेस से टीकाराम जूली हैं।

  • विधानसभा का संचालन प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व प्रणाली और गुप्त मतदान के आधार पर होता है।

राजस्थान विधानसभा के ऐतिहासिक तथ्य

  • राजस्थान विधानसभा का गठन विभिन्न रियासतों के विलय से हुआ।

  • अजमेर-मेरवाड़ा को भी राजस्थान में मिलाया गया था।

  • विधानसभा ने 1987 में सती (निवारण) अधिनियम पारित किया, जिससे सती प्रथा समाप्त हुई।

  • विधानसभा ने कई सामाजिक और राजस्व सुधारों में अहम भूमिका निभाई।

  • विधानसभा में कई बार अविश्वास और विश्वास प्रस्ताव आए हैं।

विधानसभा की कार्यप्रणाली

  • विधानसभा के सदस्य विधायी मुद्दों पर चर्चा करते हैं और कानून बनाते हैं।

  • वे राज्य के प्रशासन की समीक्षा भी करते हैं।

  • विधानसभा सत्र आमतौर पर साल में दो-तीन बार होते हैं।

  • सदन के कामकाज का प्रमुख हिस्सा अध्यक्ष हैं, जो नियमों का पालन सुनिश्चित करते हैं।

  • विधानसभा के बजट सत्र, मानसून सत्र और शीत सत्र प्रमुख होते हैं।

राजस्थान विधानसभा के अनूठे तथ्य

  • राजस्थान विधानसभा का पहला उद्घाटन 31 मार्च 1952 को हुआ था।

  • वर्तमान विधानसभा भवन 2001 में स्थापित हुआ, और यह पूरी तरह से आधुनिक है।

  • सदस्य संख्या 160 से बढ़कर 200 हो गई।

  • विधानसभा का स्थान जयपुर में है, जो राज्य की विधायी शक्तियों का केंद्र है।

 

विधानसभा में रिक्त पदों के प्रमुख कारण

  • लंबे समय से भर्ती न होना।

  • प्रशासनिक जटिलताएं और नई सरकार के बदलाव।

  • भर्ती प्रक्रिया में अनिश्चितता।

  • राजनीतिक कारण और संसाधनों का अभाव।

 

FAQ

राजस्थान विधानसभा में वर्तमान में कितने पद रिक्त हैं?
विधानसभा में लगभग 98% कनिष्ठ लिपिक ग्रेड द्वितीय पद और 100% स्टेनो पद रिक्त हैं।
राजस्थान विधानसभा में भर्ती प्रक्रिया कब पूरी होगी?
भर्ती प्रक्रिया अधूरी है और इसे जल्द पूरा करने के लिए अपेक्षित कदम उठाए जाने चाहिए, लेकिन अभी कोई निश्चित तारीख नहीं है।
राजस्थान में बिना स्टेनो और लिपिक के विधानसभा कैसे चलेगी?
बिना इन कर्मचारियों के कार्य संचालन प्रभावित होगा, जिससे रिपोर्ट तैयार करना, दस्तावेजी कार्य और बैठक संचालन में दिक्कत होगी।
क्या हाल ही में राजस्थान विधानसभा में कोई भर्ती हुई है?
नहीं, पिछले दस सालों में अंतिम भर्ती 2015 में हुई थी।
राजस्थान विधानसभा की भर्ती प्रक्रिया में देरी के पीछे मुख्य कारण क्या हैं?
इसमें सरकार परिवर्तन, प्रशासनिक प्रक्रियाओं में देरी, संसाधनों की कमी और अन्य राजनीतिक कारण शामिल हैं।

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