रामदेवरा मेला 2025 : बाबा रामदेव के जयकारों से गूंजा सरहदी गांव, लाखों श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब

राजस्थान का रामदेवरा मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि इसे मारवाड़ का कुंभ भी कहा जाता है। यहां प्रतिदिन 25 से 30 हजार जातरू बाबा रामदेव के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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भादवा माह की बीज के दिन न केवल मारवाड़, बल्कि राजस्थान का कोना-कोना बाबा रामदेव के रंग में पूरी तरह रंग चुका। भादूड़े री बीज नै जब चंदो करे उजास, रामदेव बण आयसूं राखिजै विश्वास... जैसे भजनों और घणी-घणी खम्मा बाबा रामापीर ने... के जयकारों से इस समय पश्चिमी राजस्थान समेत पूरे प्रदेश के हर शहर-गांव की गलियां गूंज रही हैं।

देश के कोने-कोने से जातरू रामदेवरा की ओर बढ़ रहे हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, यूपी-बिहार से लेकर राजस्थान के हर जिले से श्रद्धालु पैदल ध्वज लिए, कंधों पर बैग और पैरों में छाले सहते हुए भी सिर्फ बाबा की भक्ति में लीन हैं। जोधपुर स्थित मसूरिया की पहाड़ी पर बाबा के मंदिर में तो पाक विस्थापितों की टोली 100 किलो चावल की बोरी सिर पर रखकर पहुंची। उन्होंने कहा कि एक बोरी भंडारे को, दूसरी बाबा के दरबार तक ले जाएंगे। 

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मन को छूता आस्था का स्वरूप

यह आस्था का वह स्वरूप है, जो हर किसी के मन को छू गया। मारवाड़ की धरती पर जातरुओं के स्वागत के लिए पलक पांवड़े बिछा दिए गए हैं। शहर और गांवों के रामरसोड़ों में हर किसी के लिए भोजन, दूध-चाय, नाश्ते और विश्राम की व्यवस्था है। कोई थके-बुजुर्ग जातरू आते हैं, तो उनके पांव दबाकर सेवा की जाती है। मानो यह पराया नहीं, घर आया मेहमान हो। कई जगह मुफ्त इलाज और दवाइयां भी उपलब्ध कराई जा रही हैं।

मान-मनुहार के साथ सेवा

भंडारों की सेवा में भी मान-मनुहार की झलक दिखती है। आने वाले हर जातरू को बड़ी विनती से रोका जाता है, खिलाया-पिलाया जाता है और विदाई के समय पाछा आवजो कहकर अपणायत से विदा किया जाता है। रामदेवरा मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि इसे मारवाड़ का कुंभ कहा जाता है। प्रतिदिन 25 से 30 हजार जातरू यहां दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। बाबा के जयकारों के बीच पसीने की बूंदें, पैरों के छाले और थकावट भी भक्तों की आस्था को डिगा नहीं पा रही। बाबा के जयकारों, भजनों और सेवाओं की इस गूंज में पूरा मारवाड़ ही नहीं, पूरा राजस्थान भाव-विभोर हो उठा है। यहां हर किसी की जुबां पर बस यही है रामदेव पीर की जय… बाबा रामापीर की जय...! 

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641वें रामदेवरा मेले का शुभारंभ

सरहदी जिले जैसलमेर के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल रामदेवरा में सोमवार को भादवा सुदी बीज के अवसर पर 641वें रामदेवरा मेले का शुभारंभ विधिवत रूप से मंगला आरती के साथ हुआ। तड़के सुबह जैसे ही मंदिर का मुख्य द्वार खुला, पूरा परिसर बाबा रामदेव के जयकारों से गूंज उठा। श्रद्धालुओं ने बाबा की समाधि पर पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद लिया। अतिरिक्त जिला कलेक्टर परसाराम सैनी ने श्रद्धालुओं को शुभकामनाएं दीं। वहीं पुजारी पंडित कमल किशोर छंगाणी ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच दूध, दही, शहद, इत्र और पंचामृत से बाबा रामदेव का अभिषेक कराया। 

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पट खुलते ही लंबी कतारें 

दर्शन के लिए मंदिर के पट खुलते ही श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लग गईं। मेले की व्यवस्थाओं का जायजा लेने पुलिस अधीक्षक अभिषेक शिवहरे, सीईओ रश्मि रानी, उपखंड अधिकारी लाखाराम, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रवीण सैन सहित कई अधिकारी मौजूद रहे। सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए दो हजार से अधिक पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। मंदिर परिसर में मेटल डिटेक्टर गेट लगाए गए हैं और समाधि स्थल को 24 घंटे दर्शनार्थियों के लिए खुला रखा गया है।

इतिहास और आस्था का संगम

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बाबा रामदेव का जन्म विक्रम संवत 1402 में बाड़मेर जिले के उण्डू गांव में हुआ था। वे छुआछूत, ऊंच-नीच और भेदभाव मिटाने के लिए लोकदेवता बने। पोकरण (Pokhran) में भैरव राक्षस का आतंक समाप्त कर उन्होंने लोककल्याण किया। विक्रम संवत 1442 की भादवा शुक्ल एकादशी को उन्होंने रामदेवरा में 40 वर्ष की आयु में समाधि ली। इसी समाधि पर हर साल यह मेला आयोजित होता है।

हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल

बाबा रामदेव ने पंचपीपली धाम पर पांच पीरों को परचा देकर साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया था। आज भी मेले में हिंदू और मुस्लिम समाज एक साथ बाबा की समाधि पर शीश नवाकर आशीर्वाद लेते हैं। रामदेवरा मेला अब 40 से 50 लाख श्रद्धालुओं का आस्था का केंद्र बन चुका है। राजस्थान के मारवाड़, मेवाड़, हाड़ौती, शेखावटी, ढूंढाड़, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली से लाखों श्रद्धालु पैदल यात्राएं, मोटरसाइकिल, बस, ट्रेन और अन्य साधनों से हर साल बाबा के दरबार पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं की संख्या हर वर्ष लगातार बढ़ रही है। अनुमान है कि आने वाले वर्षों में यह आंकड़ा और अधिक होगा।

रामसरोवर बना श्रद्धालुओं का डेरा

रामदेवरा की धर्मशालाओं और होटलों में जगह नहीं मिलने पर अधिकांश श्रद्धालु रामसरोवर की पाल व घाटों पर डेरा डालते हैं। यहां सुरक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के लिए प्रशासन ने पुलिस चौकी, स्वास्थ्य चौकी और एसडीआरएफ के तैराकों की व्यवस्था की है। आंकड़ों को आधार मानें तो साल 2015 के बाद से रामदेवरा में देश के विभिन्न प्रांतों से आने वाले श्रद्धालुओं का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। 

साल 2015 में यहां अनुमानित 25 लाख, साल 2016 में 35 लाख, साल 2017 में 37 लाख, साल 2018 में 40 लाख, साल 2019 में 42 लाख और कोरोना काल गुजरने के बाद साल 2022 में 35 लाख, साल 2023 में 40 लाख और साल 2024 में 42 लाख श्रद्धालु भादवा मेले में दर्शनों के लिए पहुंचे।

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छोटा गांव, बड़ा मेला

करीब 10 हजार की आबादी वाला रामदेवरा गांव मेले के दौरान किसी बड़े महानगर जैसा नजर आता है। सड़कों पर पदयात्रियों की भीड़, बाजारों में चहल-पहल और हर तरफ गूंजते जयकारों से पूरा वातावरण धर्ममय हो उठा है।

FAQ

Q1: रामदेवरा मेला कब शुरू हुआ?
रामदेवरा मेला हर साल भादवा माह की बीज के दिन शुरू होता है और यह 641वां मेला है, जो इस साल जोधपुर में आयोजित किया जा रहा है।
Q2: रामदेवरा मेला में कौन-कौन से प्रमुख आयोजन होते हैं?
मेला में मंगला आरती, पूजा-अर्चना, भंडारे, और श्रद्धालुओं के लिए सेवाएं जैसे नाश्ता, विश्राम की व्यवस्था होती है।
Q3: रामदेवरा मेला में हिंदू-मुस्लिम एकता का क्या संदेश है?
बाबा रामदेव ने पंचपीपली धाम पर पांच पीरों को परचा देकर साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया। मेले में हिंदू और मुस्लिम समाज एक साथ पूजा करने आते हैं।

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