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Photograph: (the sootr)
जयपुर। राजस्थान में कांग्रेस के दो प्रमुख नेता, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच मेलजोल की खबरों ने पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया है। दोनों नेताओं को घुर विरोधी माना जाता था। चार साल से इन दोनों के बीच संवाद नहीं था। 11 जून को गहलोत और सचिन पायलट ने दौसा में राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर एक मंच साझा किया। तीन दिन पहले सचिन पायलट ने गहलोत के आवास पर पहुंचकर नई उम्मीदें जगाई हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार दोनों नेताओं का यह मिलन टूटे रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने के साथ ही प्रदेश की राजनीति का अहम घटनाक्रम माना जाएगा। वैसे, दोनों के रिश्ते को जमीनी स्तर पर परखना अभी बाकी है। प्रदेश में कुछ समय बाद शहरी निकायों के चुनाव होने हैं। दोनों नेताओं के साथ रहने पर कांग्रेस अपने लिए संभावनाएं तलाश सकती है। हालांकि, शहरों में कांग्रेस के लिए राह कठिन है, लेकिन यह माना जा सकता है कि वह सत्तारूढ़ भाजपा को मजबूत टक्कर दे सकती है।
अनदेखी और उपेक्षा से थे खफा
दोनों नेताओं के बीच रिश्तों में खटास की शुरुआत बहुत पहले हो गई थी। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस की जीत के बाद गहलोत सीएम बनने में कामयाब हुए, जबकि सचिन को उपमुख्यमंत्री के रूप में संतोष करना पड़ा। अपनी अनदेखी और उपेक्षा से खफा होकर 2020 में सचिन ने खुला विद्रोह कर गहलोत सरकार को अस्थिर करने का प्रयास किया था। करीब एक महीने तक दिल्ली-दौड़ की राजनीति चली। हालांकि, तब राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हुआ, लेकिन दोनों नेताओं के बीच तल्ख़ियां बनी रहीं।
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4 साल बाद पहुंचे थे गहलोत के आवास पर
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस का राजस्थान में उम्मीद से अच्छा प्रदर्शन रहा तो संगठनात्मक मजबूती पर फिर से ज़ोर देने की मांग उठनी लगी। तब से संकेत मिल रहे थे कि आखिर दोनों नेताओं को आपसी झगड़ें छोड़ कर सुलह के रास्ता पर आना पड़ेगा। इसी कड़ी में सचिन पायलट इसी जून में पिता दिवंगत नेता राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर होने वाले कार्यक्रम का न्योता देने के बहाने गहलोत के आवास पर पहुंचे। उनका पहुंचना इसलिए भी अहम था कि वह चार साल बाद गहलोत के आवास पर पहुंचे थे। बाद में कांग्रेस आलाकमान ने दोनों नेताओं की इस मुलाकात को सामंजस्य और संगठन की मजबूती का संकेत बताया।
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मीडिया वाले करते हैं अलग होने की बातें- गहलोत
सचिन की पहल के बाद दिवंगत राजेश पायलट की श्रद्धांजलि सभा में पहुंचे गहलोत ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि मैं और सचिन पायलट अलग कब थे। हम दोनों में खूब मोहब्बत है। ये तो मीडिया वाले अलग होने की बातें करते हैं। प्यार मोहब्बत हमेशा बनी रहती है। सवाल है कि क्या राजस्थान में गुटबाजी और आपसी झगड़ों के कारण 2023 में विधानसभा चुनाव हारने वाली कांग्रेस अब गलतियों को सुधारने की राह पर है। क्या यह संकेत है कि पार्टी अब गुटबाजी की कीमत नहीं चुकाना चाहती। पार्टी का बड़ा वर्ग दोनों नेताओं के मिलन को पार्टी हित में सकारात्मक मानता है।
राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में यह मिलन किसी संक्रमण कालीन नेतृत्व की शुरुआत भी हो सकती है, जिसमें गहलोत मार्गदर्शक की भूमिका निभाएं और पायलट संगठनात्मक जिम्मेदारी संभालें। राजस्थान में कांग्रेस के जमीनी स्तर पर कमजोर पड़े संगठन और संघर्षरत कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए उपयोगी हो सकता है।
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क्यों बढ़ी दोनों नेताओं की नजदीकियां
यह सवाल भी उठना लाजिमी है कि आखिरकार कौनसी परिस्थितियां दोनों नेताओं को नजदीक ले आई, क्योंकि ये चार साल से तो ट्रेन के एक डिब्बे में भी एकसाथ बैठने को राजी नहीं होते थे। इसके जवाब में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का कद बढ़ना गहलोत को पसंद नहीं आ रहा है। वह उसे ठिकाने लगाने के लिए गुप्त चाल से डोटासरा की कन्नी काटना चाहते हैं।
बताया जाता है कि डोटासरा का पार्टी में जन्म सचिन का पर कतरने की कवायद में हुआ। उनकी काट के लिए गहलोत ने डोटासरा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनवाया। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन के बाद डोटासरा का हाईकमान के सामने कद बढ़ गया। उनकी कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भी नजदीकियां बढ़ने लगी। कई मौकों पर डोटासरा का रवैया गहलोत को रास नहीं आया। सचिन और गहलोत की मुलाकात को इसी कड़ी से जोड़कर भी देखा जा सकता है।
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नीति नहीं महत्वाकांक्षा की थी जंग!
विश्लेषकों का मानना है कि गहलोत और सचिन की जंग नीतिगत से अधिक महत्वाकांक्षा आधारित रही है। यह मुलाकात न तो चमत्कार है, न ही चातुर्य से परे है। कांग्रेस में नेताओं के बनते बिगड़ते समीकरणों के साथ ही यह आलाकमान द्वारा निर्देशित ज़रूरत भी है, जिससे कांग्रेस का राजस्थान में वजूद बचाया जा सके। क्योंकि प्रदेश में पार्टी के लिए संगठनात्मक बिखराव को रोकना बड़ी चुनौती है। बहरहाल, देखना यह है कि गहलोत और सचिन की यह मिलाप वास्तव में कमाल करेगा या दिवंगत कांग्रेस नेता राजेश पायलट की पुण्यतिथि तक सिमटकर रह जाएगा। वैसे, पार्टी का बड़ा वर्ग दोनों नेताओं की एकता का पक्षधर है।
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